प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 जुलाई को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शिरकत करने दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग पहुंचेंगे। प्रधानमंत्री के इस अहम दौरे के साथ भारत और दक्षिण अफ्रीका ना सिर्फ आने वाले कल की मजबूत इबारत लिखेंगे बल्कि दोनों देशों के स्याह-सफेद रिश्तों का इतिहास भी सामने होगा।
दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के पहुंचने की कहानी असाधारण रूप से प्रतिष्ठित होने और दुखद रूप से काले अध्याय जैसा भी रहा है।
1893 में, 23 साल के मोहनदास करमचंद गांधी एक युवा वकील के रूप में डरबन पहुंचे। इसके बाद दुनिया को एक महात्मा मिला।
पूरी एक शताब्दी बाद 1993 में, 24 साल का एक युवक भारतीय राज्य उत्तरप्रदेश के एक छोटे से शहर सहारनपुर से बिज़नेस करने दक्षिण अफ्रीका पहुंचा जिसका नाम अतुल गुप्ता था। अतुल ने अपने भाइयों के साथ जल्दी ही कंप्यूटर उपकरण, मीडिया और खनन में बड़े साम्राज्य को जमा लिया।
गुप्ता भाइयों की कहानी ना सिर्फ दक्षिण अफ्रीका बल्कि भारत में भी एक काले कालखंड के रूप में सामने आई। जिसमें राजनीतिक और वित्तीय संस्थानों के दुरुपयोग, घोटाले और विवाद शामिल रहे।
जैकब जुमा के शासनकाल में गुप्ताओं के प्रभाव को आप इस बात से ही समझ सकते हैं कि उन्हें ‘जुप्ता’ कहा गया। उन्होंने अरबों डॉलर के ठेके तो हासिल किए ही एक तरह से जुमा के कैबिनेट संचालक की भूमिका में आ गए।
भ्रष्टाचार गुप्ता और जुमा दोनों रसूखदार परिवारों को ले डूबा। ये भारत में होने वाले भ्रष्टाचार और चारणवाद से अलग नहीं रहा, ऐसा भारत में कई उच्च सियासी घरानों के साथ हो चुका है।
पीएम मोदी की दक्षिण अफ्रीका की यात्रा, यूपीए-युग के बेकार "फोन बैंकिंग" के बारे में संसद में बोलने के ठीक बाद हो रही है, जिसमें उन्होंने पिछली सरकार की एक निष्क्रियता का जिक्र करते हुए कहा था कि लाखों-करोड़ों की नॉन परफॉर्मिंग एसेट की समस्या ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली को अपंग कर दिया था। इसका जीता जागता मिसाल गुप्ता बंधुओं द्वारा पब्लिक सेक्टर की संस्थाओं का दुरुपयोग और घरेलू बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा से ट्रांजिक्शन में नियमों की धज्जियां उड़ाना है।
द हिंदू ने फरवरी में बताया कि "संवाददाताओं द्वारा मिले साक्षात्कार और दस्तावेजों से पता चलता है कि बैंक की दक्षिण अफ़्रीकी शाखाओं ने अनुमोदित ऋण गारंटी जारी की, आंतरिक अनुपालन प्रयासों की अवहेलना की, और नियामकों को संदिग्ध लेनदेन के बारे में सीखने से रोका जिससे गुप्ता के नेटवर्क को फायदा हुआ"।
इसी साल मार्च में इनकम टैक्स विभाग ने बड़ी कार्रवाई करते हुए गुप्तओं के सहारनपुर और देहरादून की संपत्तियों पर कई छापे मारे। उधर वित्तीय घोटाले के चलते बैंक ऑफ बड़ौदा दक्षिण अफ्रीका में अपने संचालन को समेट रहा है।
सबसे दिलचस्प बात तो ये कि दक्षिण अफ्रीकी पत्रकारों और कुछ भारतीय मीडिया कर्मियों की खोजी रिपोर्टों ने यूपीए काल के मंत्री, वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के गुप्ता बंधुओं के साथ कथित करीबी संबंधों को उजागर किया।
ओपइंडिया डॉट कॉम ने हाल ही में गुप्ताओं की काली करतूतों में सहयोगी रहे पियूष गोयल, कपिल सिब्बल और उनकी पत्नी की व्यापारिक संबंधों को उजागर करती एक रिपोर्ट छापी। जिसमें सिब्बल और उनकी पत्नी का गोयल से एक कंपनी हासिल करने की बात छापी गई है जिसकी कीमत 89 करोड़ आंकी गई थी।
ओपइंडिया डॉट कॉम की संपादक नुपुर शर्मा ये भी लिखती हैं कि "दस्तावेज बताते हैं कि 31 मार्च, 2017 तक कपिल सिब्बल और प्रोमिला सिब्बल ने ग्रांडे कैस्टेलो प्राइवेट लिमिटेड नामक एक कंपनी में 50% शेयरों का स्वामित्व किया था। ये कंपनी वर्ल्ड विंडो इम्पेक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की सहायक कंपनी थी, जिसकी पूर्ण मिलकियत पियूष गोयल की थी। दक्षिण अफ्रीकी मीडिया के मुताबिक यही पियूष गोयल गुप्ता के लिए मनी लॉन्ड्रिग में शामिल था। हालांकि, कपिल सिब्बल का वर्ल्ड विंडो इम्पेक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से डील में गुप्ताओं से कोई सीधा संपर्क नहीं हुआ”।
दक्षिण अफ्रीकी खोजी मीडिया संस्थान अमाबुनगे के मुताबिक सिब्बल परिवार की दखल से 2011 क्रिकेट विश्व कप के दौरान गुप्ता बंधु चार्टर्ड विमानों से दिल्ली और मुंबई में मैच देखने पहुंचे और लग्जरी होटल में ठहरे।
अमाबुनगे लिखता है कि "कपिल सिब्बल ने वर्ल्ड विंडो के साथ व्यापार समझौते पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। ये वही फर्म था जिसके बदौलत दक्षिण अफ़्रीका में बसे गुप्ताओं ने दुनिया भर में सैकड़ों,लाखों लोगों को ठगा। अमाबुनगे के मुताबिक इस बात का कोई सबूत नहीं है कि सिब्बल मनी लॉन्ड्रिंग या करप्शन में शामिल रहे लेकिन वर्ल्ड विंडो के साथ संबंधों पर बोलने से मना करना संदेह पैदा करता है।
2010 से 2015 के बीच गुप्ता की कंपनियों और वर्ल्ड विंडो के बीच अरबों की लेनदेन हुई। ट्रांसनेट क्रेन और लोकोमोटिव अनुबंधों के लिए दबाकर रिश्वत दी गई जिसमें चीनी रिश्वतखोर सक्रिय रहे। इस ट्रांजिक्शन से दक्षिण अफ्रीका, चीन, यूएई और भारत में धन का प्रवाह हुआ।
सिब्बल ने ये स्वीकार किया कि “गुप्ताओं के साथ मेरा कभी कोई वित्तीय लेनदेन या डीलिंग नहीं रही। हां मैं उनसे विश्व कप क्रिकेट मैच के दौरान अपने मित्र पियूष गोयल के माध्यम से दिल्ली में मिला था, जिन्होंने मुझे मैच देखने के लिए बुलाया था”।
यूपीए शासनकाल के दौरान गोयल और गुप्ताओं की भारतीय आर्थिक व्यवस्था में पैठ को इस तरह समझा जा सकता है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के डिप्टी मैनेजर 75 करोड़ के लोन को क्लियर करने के लिए रिश्वत लेने के आरोप में सीबीआई जांच का सामना कर रहे हैं। आरोप है कि पियूष गोयल की कंपनी वर्ल्ड विंडो ग्रुप को इतनी बड़ी लोन देने के एवज में 2013 में उन्होंने रोलेक्स, सिटिजन की महंगी घड़ियों के साथ बड़ा कैश लिया।
अचंभा नहीं होता कि इस तरह के क्रोनिज्म और करप्शन की वजह से भारतीय बैंक एनपीए के बोझ तले दबे हैं।
भारत में इन्सॉलवेंसी और बैंककरप्सी कानूनों को प्रभावी करने के साथ प्रधानमंत्री मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जो बड़े आर्थिक सुधारों के साथ दक्षिण अफ्रीका पहुंच रहे हैं। दक्षिण अफ्रीकी खुशी के साथ उनका स्वागत करेंगे।
शांत हिंद महासागर के किनारे बसे दोनों देश एक भारतीय परिवार द्वारा दक्षिण अफ्रीका में किए गए भ्रष्टाचार के भूल-भूलैया के बाद आने वाले कल में एक ईमानदार, समृद्ध और शानदार व्यवसायिक यात्रा की उम्मीद कर सकते हैं।