भारत का यह आत्मविश्वास विजित हुआ है कि हमारे पायलट विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमान की रिहाई सुनिश्चित है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी संसद में घोषणा करते हुए इसे शांति पहल का कदम बताया। यह शांति की दिशा का कदम कैसे हो जाएगा? हालांकि इमरान ने यह भी कह दिया कि पाकिस्तान के इस कदम को भारत उसकी कमजोरी नहीं समझे, पर सच यही है कि भारत के तेवर और बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान के पास अभिनंदन को रिहा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने सशर्त रिहाई की पेशकश की तो भारत ने दो टूक कह दिया कि उसे अपने पायलट की रिहाई से कम कुछ भी मंजूर नहीं। इमरान खान ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन पर बातचीत करने की भी कोशिश की लेकिन भारत तैयार नहीं हुआ। होना भी नहीं चाहिए था। पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया गया था कि अगर अभिनंदन को कुछ होता है या उनको यातना दी जाती है तो भारत किसी भी स्तर पर जाकर कार्रवाई कर सकता है।
किसी स्तर पर जाने का मतलब सैन्य कार्रवाई का विकल्प अपनाना भी होता है। आखिर विदेश मंत्रालय दुनिया के देशों से इस मुद्दे पर संपर्क कर जनमत तैयार कर रहा था। भारत ने यह भी कह स्पष्ट कर दिया था कि वह अभिनंदन के लिए राजनयिक पहुंच नहीं मांगेगा। इसका अर्थ था कि भारत उसे पाकिस्तान के अंदर गिरफ्तार किसी कैदी के रुप में देखने के पक्ष में था ही नहीं। यही वह तेवर है जिसे देखने की उम्मीद आम भारतीय लंबे समय से कर रहा था।
इसी तेवर ने दुनिया के प्रमुख देशों को पाकिस्तान को यह नसीहत देने को बाध्य किया कि आप कोई गलत कदम मत उठाओ। पाकिस्तान के लिए 28 फरवरी को बुरी खबर आई जब अमेरिका, फ्रांस और बिट्रेन संयुक्त राष्ट्र परिषद में जैश-ए-मोहम्मद को ब्लैक लिस्ट करने का प्रस्ताव पेश किया। इस पर दस दिन के अंदर विचार होगा। उसके सवा घंटे बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने देर रात अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से से बात की। पोम्पियो ने पाकिस्तान विदेश मंत्री को फोन किया तो जाहिर है आगाह करने के लिए ही।
अमेरिका पहले ही आतंकवादियों पर भारत की कार्रवाई को आत्मरक्षा के लिए उठाया कदम करार दे चुका है। चीन तक ने पाकिस्तान को आतंकवादियों से दूरी बनाने की सार्वजनिक सलाह दे दिया। इसमें उसके पास दूसरा विकल्प बचा ही नहीं था। आरंभ में पायलट अभिनंदन का फोटो एवं वीडियो जारी कर उसने जरुर अपनी बड़ी सफलता साबित का मूर्खतापूर्ण प्रदर्शन किया। किंतु इस पर भारत की आपत्ति एवं दुनिया की नाराजगी के बाद अभिनंदन के साथ हिंसा के वीडियो को यू ट्यूब ने हटा दिया। उसके बाद से लगने लगा था कि पाकिस्तान किसी भी समय अभिनंदन की रिहाई की घोषणा कर सकता है।
हालांकि अभिनंदन के पाकिस्तानी हाथ में पड़ जाने से भारत में माहौल थोड़ा संशय का बन गया था। जब कोई देश हमारे सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने आए तो उसे खदेड़ने या नष्ट करने की कार्रवाई करनी होगी और उसमें हर प्रकार का जोखिम है।
मिग 21 तो वैसे भी उड़ता हुआ ताबूत है। यह उसके पायलटों का साहस है कि उससे उन्होंने पाकिस्तान के एफ 16 विमान का मुकाबला कर एक को ध्वस्त कर दिया तथा दूसरे को भागने को मजबूर। किंतु इस टकराव में एक मिग 21 के निशाना बनते ही पायलट अभिनंदन पैराशूट से कूदे और पाक अधिकृत कश्मीर में पहुंच गए। पाकिस्तानी मीडिया ने पाकिस्तानी लोगों से घिर जाने के बाद अभिनंदन की भूमिका को जो विवरण दिया है उससे हर भारतीय की छाती गर्व से चौड़ी हो जाती है।
ऐसे वीर को बचाने के लिए आज का बदला हुआ भारत किसी सीमा तक वाकई जा सकता था। भारत ने बिना घोषणा संदेश दे दिया था कि यदि हमारे पायलट का बाल भी बांका करता है तो उसकी दशा इतनी खराब कर देगा जिसका उसको आभास भी नही होगा। वैसे तो जिनेवा संधि के तहत पाकिस्तान अभिनंदन की समुचित देखभाल, उसकी सुरक्षा तथा उसका सम्मान करने के लिए विवश था। युद्ध बंदियों का सरंक्षण (पीओडब्ल्यू) करने वाले नियम विशिष्ट हैं। इन्हें पहले 1929 में जिनेवा संधि के जरिए ब्यौरेवार किया गया था और द्वितीय विश्व युद्ध के कटु अनुभवों के आलोक में 1949 में तीसरी जिनेवा संधि में उनमें संशोधन किया गया था।
जिनेवा संधि में कुल चार संधियां शामिल हैं। पहली संधि जमीनी युद्ध में शामिल सैनिकों की रक्षा से संबंधित है तो दूसरी, समुद्र में होने वाले युद्ध में शामिल सैनिकों की। तीसरी युद्धबंदियों से जुड़ी है, तो चौथी, युद्ध के समय ‘सिविलियन पर्संस’ यानी आम नागरिकों की सुरक्षा से जुड़ी है। जो यह तर्क दे रहे थे कि युद्ध हो ही नहीं रहा कि अभिनंदन युद्धबंदी की श्रेणी में आएगा उन्हें यह जानना चाहिए कि इस संधि के अनुसार यदि युद्ध की स्थिति न हो और हिरासत में लिया गया व्यक्ति सुरक्षा बल का जवान हो, तब भी उसे जिनेवा संधि के तहत सभी तरह की रियायतें और सुविधाएं मिलेंगी।
जिनेवा संधि का उद्देश्य सुरक्षा बलों को युद्ध के दुष्प्रभावों से बचाना है। युद्ध में घायल या आत्मसमर्पण किए सैनिकों के सम्मान की रक्षा के लिए दुश्मन देश बाध्य हैं। घायल को तुरंत उपचार उपलब्ध करना तथा मानवाधिकारों की रक्षा का ध्यान रखना होगा। जिनेवा संधि के प्रावधान एक तरह से परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय कानून बन गए हैं। इसका सीधा मतलब है आपने उस पर हस्ताक्षर किया हो या नहीं, आपको उसका पालन करना होगा।
जिनेवा संधि- तीन की धारा-4 में युद्धबंदियों की परिभाषा और उनके अधिकारों का विवरण है। जिनेवा संधि यही कहती है कि यदि घोषित युद्ध में देश उलझे हों, तो युद्ध-समाप्ति के बाद या किसी समझौते की सूरत में सभी युद्धबंदियों को रिहा कर देना चाहिए। इस संधि में साफ लिखा है कि घायल सैनिक की उचित देखरेख की जानी चाहिए। उसके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए। इसमें उसे खाना पीना और जरूरत की सभी चीजें प्रदान करने की बात है। इस संधि में एकदम साफ शब्दों में लिखा है कि किसी भी युद्धबंदी के साथ अमानवीय बर्ताव नहीं किया जा सकता, उसे न डराया धमकाया जा सकता है और न जाति, धर्म, जन्म आदि के बारे में पूछा जा सकता है। इसके अलावा युद्ध के बाद युद्धबंदी को वापस लैटाना होता है। केवल युद्धबंदी से उनके नाम, सैन्य पद, नंबर और यूनिट के बारे में ही पूछा जा सकता है।
हिरासत में लेने वाली शक्ति उसके खिलाफ संभावित युद्ध अपराध के लिए मुकदमा चला सकती है लेकिन हिंसा की कार्रवाई के लिए नहीं जो अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों के तहत विधिपूर्ण है। इसके मुताबिक, उनकी हिरासत सज़ा के तौर पर नहीं होती है बल्कि इसका मकसद संघर्ष में उसे फिर से हिस्सा लेने से रोकना होता है। इसकी धारा-13 युद्धबंदी के साथ मानवीय व्यवहार की वकालत करती है। इसके लिए जरुरी नहीं कि उसके स्टेटस की जानकारी यानी पूरी पहचान हो ही गई हो।
अगर अभिनंदन आम नागरिक के वस्त्र पहने होते या उनके पास पहचान पत्र आदि नहीं होता तो पाकिस्तान शायद इसे दूसरा रुप देने की कोशिश करता। किंतु अभिनंदन के पास सैन्यकर्मी होने की पहचान से संबंधित दस्तावेज थे। वैसे जेनेवा संधि के अलावा मानवाधिकार कानून भी किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों के सम्मान की बात करता है। इसलिए यदि ऐसे अपराधी गिरफ्त में हो जो वकील नहीं कर सकता तो उसे कानूनी सुविधायें प्रदान की जातीं हैं। भारत ऐसा देश है जिसके पायलट के साथ पाकिस्तान कुछ भी गलत करता तो उसे जेनेवा के साथ अन्य अंतर्राष्ट्रीय संधियों के उल्लंघन का दोषी माना जाता और इसका असर क्या होता इसका केवल अनुमान लगाया जा सकता है।
पाकिस्तान को तय करना था कि वह संधि का पालन कर विश्व समुदाय के बीच अपनी छवि सुधारना चाहता है या उनका कोपभाजन। उसने घायल सैनिक का जिस तरह फोटो तथा बाद में वीडियो जारी किया वह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून तथा जेनेवा संधि दोनो का उल्लंघन था। भारत ने इस पर तुरंत आपत्ति उठाई थी।
करगिल युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना द्वारा चलाए गए ऑपरेशन सफेद सागर में शामिल फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता 27 मई, 1999 के मिग-27 विमान के इंजन में खराबी आ जाने से आग लग गई और पैराशूट से विमान छोड़ना पड़ा। वे पाकिस्तान के अधिकार वाले स्कार्दू क्षेत्र में पहुंच गए। उन्हें पाकिस्तान की सेना ने घेर लिया और गिरफ्तार कर पूछताछ की गई। इस दौरान भारतीय वायुसेना की खुफिया जानकारियां हासिल करने के लिए उन्हें खूब प्रताड़ित किया गया लेकिन उन्होंने मुंह नहीं खोला।
इस मुद्दे पर भी भारत ने कड़ा रुख अपनाया और कूटनीतिक अभियान चलाया था। जिसके बाद दबाव बढ़ने पर पाकिस्तान ने उन्हें रेडक्रॉस सोसायटी को सौंप दिया। एक सप्ताह बाद 3 जून को वे भारत लौट आए थे। इसलिए उम्मीद थी कि आज की स्थिति में जब भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ज्यादा समर्थन है पाकिस्तान वैसा ही करेगा।
किंतु मूल प्रश्न इसके परे है। क्या हम यह मानते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में सफलता हमें बिना कीमत चुकाये मिल जाएगी? भारतीय वायुसेना के 14 विमान पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादी ठिकानों को लक्ष्य कर बमबारी करके वापस आ जाएं और वह चुपचाप बैठा रह जाए यह संभव ही नहीं था। पाकिस्तान को अपनी अवाम को दिखाने के लिए कुछ कार्रवाई तो करनी ही थी। वह आगे भी कर सकता है। और जब करेगा तो भारत को उसको करारा प्रत्युत्तर देना ही होगा।
उसमें अभिनंदन की तरह दूसरी घटनायें भी हो सकतीं हैं। हमारे जवानों की जानें भी जा सकतीं हैं। अगर आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध लड़ना है तो भारत के लोगों को मानवीय और अन्य प्रकार की क्षति के लिए मानसिक रुप से तैयार होगा। दृढ़ संकल्प तथा हर संभावित क्षति को सहने एवं डटे रहने की सामूहिक मानसिकता वाला देश ही आतंकवाद को खत्म करने का लक्ष्य पा सकता है। पाकिस्तान में शेष संस्थायें अवश्य संकट में है लेकिन वहां की सेना का रुतबा एवं उसकी ताकत बची हुई है। तुलना करें तो वह हर मामले में हमसे कम है लेकिन है तो।
जम्मू कश्मीर में एफ 16 विमानों से सैनिक ठिकानों पर हमला करने का उसका दुस्साहस बिल्कुल अपेक्षित था। यह तो हमारे पायलटों की बहादुरी है कि उनने मिग 21 जैसे उड़ने वाले ताबूतों से भी उनको हमें बड़ी क्षति पहुंचाने का लक्ष्य हासिल किए बना भागने के लिए मजबूर कर दिया तथा एक विमान को ध्वस्त भी।
आकाश में जब टकराव होगा तो क्षति हमारी भी हो सकती है। वैसे भी मिग 29 के नीचे के सारे विमानों को वायुसेना से वापस करने की मांग लंबे समय से है। एचएएल उनके उन्नयन का काम कर नहीं पा रहा है। लेकिन जब खटारा मिग 21 पाकिस्तान के एफ 16 को भागने के लिए मजबूर कर सकते हैं तो बड़े विमान क्या करेंगे इसकी कल्पना करिए।
कल मिराज और सुखोई तथा आने के बाद राफेल हमला करें तो पाकिस्तान की क्या दशा होगी इसकी भी कल्पना कर लीजिए। भारत ने आतंकवादी अड्डों पर बमबारी से यह संदेश दिया है हम अपने घर में सीमा पार संसाधन और योजना से होने वाले आतंकवादी हमलों के कारणों को सीमा पार करके नष्ट करने की हर संभव कोशिश करेंगे। सबूत देने, डोजियर सौंपने, कार्रवाई का आग्रह करते रहने और कुछ न किए जाने का मूकदर्शक अब भारत नहीं बनेगा। अब जब यह भारत की सुविचारित रणनीति हो गई है तो आगे भी ऐसी कार्रवाई होगी और इसके जवाब में पाकिस्तान जो भी करेगा उससे निपटना और उन सबका परिणाम भी भुगतना होगा।
भारत अब पुरानी ग्रंथि से बाहर निकल गया है तो केन्द्र में सत्ता में जो भी आएगा वह इस रास्ते से पीछे नहीं हट सकता। यह बिल्कुल युगांतकारी बदलाव है। साफ है कि बदलाव बिना किसी बलिदान या कीमत के अंतिम लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकता।
हालांकि पाकिस्तान की कार्रवाई को युद्ध भी माना जा सकता है। भारत ने केवल आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया, पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों या आम नागरिक को नहीं। पाकिस्तान की कार्रवाई का लक्ष्य भारतीय सैन्य ठिकाने थे। यह बात अलग है कि वे सफल नहीं रहे। विदेश मंत्रालय ने भारत में पाकिस्तान के कार्यवाहक उच्चायुक्त सैयद हैदर शाह को बुलाकर बिना उकसावे के भारतीय वायु सीमा का अतिक्रमण करने पर आपत्ति पत्र (डिमार्शे) सौंप दिया है। इसमें बिल्कुल साफ लिखा है कि भारत इस प्रकार के आक्रमण या सीमापार आतंकवाद से अपने देश की सुरक्षा, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने के लिए ठोस एवं निर्णायक कदम उठाने का अधिकार रखता है।
इस तरह भारत ने मान्य तरीके के अनुरुप पहला कदम उठाया है। इसके बाद पाकिस्तान कोई हरकत करेगा तो फिर सीधे जवाब का विकल्प सुरक्षित है। प्रधानमंत्री ने स्वयं तीनों सेना प्रमुखों के साथ बैठक कर उनको कार्रवाई की स्वतंत्रता की दोबारा घोषणा कर दी है।
अभिनंदन की रिहाई के बाद राजनीतिक नेतृत्व के निर्णय और प्रतिबद्धता तथा सेना की क्षमता पर देश का विश्वास और गहरा हुआ होगा। किंतु अगर हम छोटी-मोटी क्षति, किसी कदम के तत्काल प्रतिकूल परिणाम आने, एक समय तक सफलता न मिलने या फिर कुछ समय के लिए प्रतिद्वंद्वी की सफलता मिलने भर से विचलित होने लगेंगे तो विजय हासिल नहीं कर सकते। अंतर्राष्ट्रीय नियमों और मर्यादाओं का पालन करने वाले देश के नाते भारत की हर कार्रवाई और हर कदम के साथ कुछ सीमायें रहेंगी, जबकि आतंकवाद पर हमारे आरोप को न स्वीकार करने वाला पाकिस्तान किसी सीमा तक जा सकता है। आखिर इमरान ने सेंट्रल कमान की बैठक क्यों बुलाई जिसमें नाभिकीय कमान ढांचा भी शामिल है? यह व्यवहार इमरान के भाषण में आए शांति प्रस्ताव के विपरीत है।
अवधेश कुमार(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं)