अमेरिका-चीन ट्रेड वार की भारत पर कितनी मार

First Published Jul 6, 2018, 8:51 AM IST
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अमेरिकी कंपनियों द्वारा चीन में बनाए जाने वाले सामान की लागत बढ़ने से पड़ेगा अप्रत्यक्ष असर। डॉलर की मजबूती भी चिंता का सबब। हालांकि घरेलू खपत पर निर्भरता और 7.5%  से अधिक विकास दर बन सकती है ढाल

अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वार का भारत पर अप्रत्यक्ष असर पड़ सकता है। भारत में कई वस्तुओं महंगी हो सकती हैं। इन दोनों ही देशों ने एक-दूसरे के यहां से आयात होने वाले सामान पर शुल्क बढ़ा दिया है। खासकर, चीन-अमेरिका में उत्पादन के बाद खुदरा बाजार में पहुंचने वाली वस्तुओं को लेकर चिंताएं बढ़ गई है।    
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने चीन के 200 अरब डॉलर के सामान पर अतिरिक्त शुल्क लगाने का ऐलान कया है। दोनों के बीच ट्रेड वार के इस नए दौर से 50% वस्तुओं की लागत बढ़ सकती है। खासतौर पर ऐसी वस्तुओं का उत्पादन प्रभावित हो सकता है जिन्हें लागत घटाने के लिए चीन से आउटसोर्स किया जाता है। इन वस्तुओं का निर्यात पूरी दुनिया में होता है। भारत भी इनका खरीदार है। 
अमेरिका ने चीन से आयात होने वाले 800 उत्पादों पर 25% का शुल्क लगाया है। इनमें इलेक्ट्रिक कारें और इंडस्ट्रियल रोबोट शामिल हैं। यह भारत के श्रमबल के लिए वरदान साबित हो सकता है, क्योंकि ऑटोमेशन के चलते रोजगार के अवसर घटने का अंदेशा था। अब यह महंगा हो जाएगा। वहीं चीन ने अमेरिकी आयात पर जो शुल्क लगाया है, उससे सोयाबीन, बीफ और व्हिस्की जैसे खाने का सामान और ब्रेवरेज के दाम प्रभावित होंगे। यह भारत तो नहीं लेकिन अमेरिका के लिए चिंता का सबब बन सकता है।  

मजबूत होता डॉलर डालेगा असर

भारत को अमेरिकी डॉलर की मजबूती भी प्रभावित कर सकती है क्योंकि इस बात का खतरा है कि चीनी सामान पर लगने वाले अमेरिकी शुल्क का असर दुनियाभर में होगा। निर्यात से ज्यादा आयात पर निर्भर रहने वाले भारत को दुनिया के दूसरे देशों के सामान खरीदने के लिए ज्यादा पैसा खर्च करना होगा। इससे भारत में कई वस्तुओं की लागत प्रभावित होगी। 
हालांकि भारत की विकास दर इसके असर को कम करने में मददगार हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के मुताबिक भारत 7.5% की दर से विकास करेगा वहीं पूरी दुनिया की विकास दर 3.5% के आसपास रहने वाली है। 
यहां यह भी देखने वाली बात है कि 2008 की मंदी का भारत पर आंशिक असर हुआ था। भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था मोटे तौर पर घरेलू खपत पर निर्भर है, यही इसे अंतरराष्ट्रीय झटकों से काफी हद तक बचाए रखती है। 

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