नई दिल्ली। कोरोना महामारी ने यह सिखाया कि हवा में मौजूद खतरनाक वायरसों का जल्द से जल्द पता लगाना कितना जरूरी है। यदि वायरस की हवा में मौजूदगी का पता लगाने वाले उपकरण पहले से होते, तो संक्रमण के फैलने को काफी हद तक रोका जा सकता था। इसी कमी को दूर करने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक तेजी से काम कर रहे हैं।

हाईटेक बनायी जा रही यह टेक्नोलॉजी

अमेरिका और रूस जैसे देशों में कोरोना महामारी के दौरान इन सेंसरों को विकसित किया गया। अब इन तकनीकों को और हाईटेक बनाया जा रहा है ताकि फ्यूचर में किसी भी नए वायरस से निपटा जा सके। मियामी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. प्रतिम विश्वास ने हाल ही में इस तकनीक की डिटेल में जानकारी दी। दरअसल, इन सेंसरों से हवा में मौजूद वायरस की सटीक पहचान होती है। वायरस की खतरनाक क्षमता का आकलन करके इसे तुरंत खत्म करने के उपाय किए जाते हैं।

भारत भी इस तकनीक के विकास में पीछे नहीं

आईआईटी चेन्नई और अन्य बड़े संस्थान इन सेंसरों को विकसित करने में लगे हैं। दून यूनिवर्सिटी में आयोजित राष्ट्रीय एयरोसोल कॉन्फ्रेंस में, प्रोफेसर डॉ. विजय श्रीधर ने बताया कि इन सेंसरों का उपयोग जल्द ही प्रमुख शहरों और अस्पतालों में किया जाएगा। वायरस का पता चलने पर तुरंत चेतावनी जारी होगी, जो इंफेक्शन को फैलने से रोकने में मदद करेगी। अस्पतालों और घनी आबादी वाले इलाकों में इंफेक्शन कंट्रोल करने के लिए यह टेक्नोलॉजी अहम साबित होगी।

कैसे काम करते हैं ये सेंसर?

ये अत्याधुनिक सेंसर हवा में तैरते खतरनाक कणों और वायरसों की मौजूदगी को पहचानने में सक्षम हैं। सेंसर न केवल वायरस की मौजूदगी का पता लगाते हैं, बल्कि उनकी खतरनाक कैपेसिटी का भी विश्लेषण करते हैं। वायरस का सोर्स पता लगाकर इंफेक्शन को रोकने के लिए उचित कदम उठाए जाते हैं। वायरस का पता लगने पर तुरंत अलर्ट मिलता है। सेंसर से प्राप्त डेटा से वायरस फैलने की गति और दिशा का एनालिसिस किया जा सकता है।

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