नई दिल्ली:  राजधानी दिल्ली के बड़े सरकारी अस्पतालों में इंफ्रास्ट्रक्चर, मेन पॉवर और दवाइयों की सप्लाई में हुए कथित भ्रष्टाचार के मामले की जांच के लिए दिल्ली हाइकोर्ट ने 8 सदस्यों वाली टीम का गठन किया है। यह कमेटी दिल्ली के अस्पतालों की सुविधाओं की जांच करेगी। 

दिल्ली हाइकोर्ट ने रिटायर्ड प्रिंसिपल सेक्रेटरी डी एस नेगी के नेतृत्व में यह टीम गठित की है। जिसमें उनके अलावा में जीबी पंत अस्पताल की पूर्व निदेशक डॉ. वीना चौधरी, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की निदेशक प्रोफेसर डॉ. संगीता गुप्ता, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस के असिस्टेंट प्रोफेसर मोहम्मद तारिक, दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर मीनू आनंद, दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) और लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के प्रधान सचिव  (सेवा) को शामिल किया गया है। 

यह कमेटी दिल्ली के 35 बड़े अस्पतालों की जांच करेगी। हाईकोर्ट ने कमेटी से चार महीने में जांच करके रिपोर्ट देने को कहा है। अदालत 28 अगस्त को कमेटी के कामों की समीक्षा करेगी। इसके अलावा कोर्ट ने दिल्ली सरकार व सभी अस्पतालों के प्रशासन को निर्देश दिया कि वे विशेषज्ञ कमेटी के निरीक्षण के दौरान सहयोग करें। कोर्ट ने कहा उन्हें संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने को कहा है। 

अदालत ने इस जांच कमेटी में शामिल दो सेवारत सरकारी अधिकारियों को छोड़कर समिति के अन्य पांच सदस्यों को दो-दो लाख रुपये वेतन के रूप में भुगतान करने का निर्देश दिल्ली सरकार को दिया है। 

कमेटी जिन अस्पतालों की जांच करेगी उसमें जीबी पंत अस्पताल, लोकनायक अस्पताल, जीटीबी अस्पताल, दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल, इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलिरी साइंसेस, बााबा साहेब अंबेडकर अस्पताल, लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल, मौलाना आजाद इंस्टाटीट्यू डेंटल साइंस समेत 35 अस्पताल शामिल हैं। 

यह मामला तब सामने आया जब एक गर्भवती महिला मधुबाला के बच्चे की मौत जीटीबी अस्पताल में ऑपरेशन थिएटर नहीं मिलने के कारण गर्भ में ही हो गई थी। अस्पताल की लापरवाही के कारण तीन दिन तक मृत बच्चा उनके पेट मे ही रहा और उनकी जान को खतरा हो गया। हालांकि बाद में बड़ी मुश्किल से उसकी जान बची। इसके बाद मधुबाला ने वकील प्रशांत मनचंदा के माध्यम से जीटीबी अस्पताल समेत पांच बड़े सरकारी अस्पताल के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी।