उत्तर प्रदेश में 17 जातियों को एससी में शामिल करने करने के उत्तर प्रदेश सरकार की योगी आदित्यनाथ सरकार के फैसले पर केन्द्र सरकार ने ब्रेक लगा दिया है। ये योगी सरकार के लिए बड़ा झटका है। क्योंकि राज्य में जल्द ही विधानसभा की 12 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। लिहाजा इन जातियों के जरिए अपने वोट बैंक को मजबूत करने की योगी सरकार की कोशिश पर केन्द्र सरकार ने पानी फेर दिया है।

पिछले हफ्ते ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रदेश की 17 अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फैसला किया था। इस फैसले के बाद बहुजन समाज पार्टी समेत अन्य राजनैतिक दलों ने इसे योगी सरकार का चुनाव जीतने के लिए बड़ा स्टंट बताया था। लेकिन योगी सरकार ने इस पर फैसला करने के बाद केन्द्र सरकार को भेज दिया था। जिसे आज केन्द्र सरकार ने असंवैधानिक करार दिया है।

असल में आज राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान नेता सदन और केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने बताया कि राज्य सरकार सिर्फ प्रस्ताव भेज सकती है। वह इस पर कोई फैसला नहीं ले सकती है। लेकिन राज्य सरकार का ये फैसला असंवैधानिक है। राज्यसभा में बीएसपी के नेताओं ने इस पर सवाल उठाए थे। क्योंकि बीएसपी योगी सरकार के इस फैसले का शुरू से ही विरोध कर रही  थी।

क्योंकि बीएसपी को डर के ही इस फैसले के बाद उसका वोट बैंक उससे खिसक जाएगा।  गहलोत ने योगी सरकार से इस फैसले को वापस लेने को कहा है।  यही नहीं केन्द्र की मोदी सरकार ने योगी सरकार को 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र जारी करने से रोकने के निर्देश भी दिए हैं। क्योंकि योगी सरकार ने सभी जिलाधिकारियों से इसके लिए प्रमाण पत्र देने के आदेश दिए थे।

असल में यूपी की योगी सरकार ने 24 जून को 17 पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल करने के निर्देश दिए। इन जातियों में कश्यप, राजभर, धीवर, बिंद, कुम्हार, कहार, केवट, निषाद, भर, मल्लाह, प्रजापति, धीमर, मांझी, बाथम, तुरहा, गोदिया, मछुआ शामिल हैं। बीएसपी का कहना था कि संविधान की धारा 341 के अनुच्छेद के तहत जातियों को आरक्षण देने का यह अधिकार केवल संसद को प्राप्त है।