Award Winning Village of India: बिहार के मधुबनी के जितवारपुर गांव को पुरस्कार विजेताओं का गांव कहा जाता है। गांव की तीन हस्तियों को अब तक पद्मश्री से नवाजा जा चुका है। 10 लोगों को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है, जबकि लगभग 60 कलाकार राज्य पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं। कला के प्रति स्थानीय लोगों का प्रेम ही गांव की सबसे बड़ी खासियत है, जिसकी वजह से जितवारपुर गांव आज दुनिया भर में जाना जाता है। 

कब-किसको मिला पद्मश्री?

जानकारों के मुताबिक, जितवारपुर पहला ऐसा गांव है, जहां के तीन लोगों को पद्मश्री पुरस्कार मिला है। यह पुरस्कार मिलना गांव के साथ बिहार के लिए भी गौरव की बात है। इससे क्षेत्र के साथ जिले का सम्मान भी देश भर में बढ़ा है। आइए जानते हैं कि कब किसको मिला पद्यश्री पुरस्कार?

जगदंबा देवी

जगदम्बा देवी के माध्यम से पहली बार मिथिला पेंटिंग वैश्विक पटल पर उभरा। साल 1975 में मिथिला पेंटिंग में पद्म श्री प्राप्त करने वाली पहली कलाकार थीं। 25 फरवरी, 1901 को मधुबनी जिले के भोजपंडौल गांव में जन्म हुआ था। अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड ने 4 जनवरी 1969 को उन्हें सम्मानित किया। 26वें वैशाली महोत्सव (18-20 अप्रैल, 1970) पर उद्योग विभाग ने भी सम्मान दिया।

 

सीता देवी

साल 1981 में मधुबनी जिला के जितवारपुर गांव की सीता देवी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनका जम्न 1914 में सुपौल जिले के वसाहा गांव में हुआ था। 12 साल की उम्र में जितवारपुर गाँव के शोभाकान्त झा से शादी हो गई। अपनी मॉं और दादी से मिथिला पेंटिंग बनाना सीखा था। 1972 में दिल्ली के प्रगति मैदान में ग्राम झांकी का आयोजन हुआ था। जिसमें देश भर के लोग उनकी पेंटिंग देखने पहुंचे थे। उनकी कला को इतना सराहा गया कि नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के मुख्य प्रवेश द्वार के अंदर उनकी पेंटिंग सजी थी। 1969, 1971 और 1974 में बिहार सरकार ने उन्हें सम्मानित किया।

बौआ देवी

जितवारपुर गांव की बौआ देवी को साल 2017 में मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मश्री से नवाजा गया। साल 1986 में राज्य और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार भी मिले। आपको जानकर हैरानी होगी कि अप्रैल, 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी जर्मनी यात्रा के दौरान मेयर स्टीफन शोस्तक को उन्हीं की एक पेंटिंग सौंपी थी। इसके अलावा गांव के ही 10 लोगों केा राष्ट्रीय अवार्ड और करीबन 60 कलाकारों को राज्य पुरस्कार भी मिल चुका है, जो इस गांव को विशेष बनाता है। 

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