नई दिल्‍ली। भारत और चीन के बीच लद्दाख क्षेत्र में चल रहे लंबे समय से विवाद को सुलझाने में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की कूटनीतिक कौशल ने एक अहम भूमिका निभाई है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चल रहे तनाव को समाप्त करने की दिशा में यह एक बड़ी जीत मानी जा रही है। हाल के घटनाक्रम में चीन ने अपने सैनिकों को लद्दाख क्षेत्र से हटाने पर सहमति दी है, जिससे दोनों देशों के बीच 2020 से पहले की स्थिति बहाल हो सकेगी। आइए इसके पीछे की खास वजह समझते हैं।

LAC विवाद: 2020 से पहले की स्थिति होगी बहाल

लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत और चीन के बीच साल 2020 से जारी तनाव ने दोनों देशों के संबंधों में खटास पैदा कर दी थी। लेकिन हाल ही में चीन ने यह स्वीकार किया कि वह दिपसांग और डेमचोक जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में 2020 से पहले की स्थिति को बहाल करेगा। इसका सीधा मतलब है कि भारतीय सेना अब पहले की तरह इन इलाकों में पेट्रोलिंग कर सकेगी और चीन की गतिविधियों पर पैनी नजर रख सकेगी।

31 दौर की कूटनीतिक वार्ता, आखिरकार समझा चीन

एस. जयशंकर के विदेश मंत्री बनने के बाद LAC विवाद को सुलझाने में उनकी कूटनीति का अहम योगदान रहा है। जयशंकर के कार्यकाल में भारत और चीन के बीच कई महत्वपूर्ण बातचीत और बैठकें हुईं। इन बैठकों का मकसद सिर्फ सेना की तैनाती को हल करना नहीं था, बल्कि विश्वास को भी बहाल करना था। LAC विवाद को सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच 31 दौर की कूटनीतिक वार्ताएं हुईं। इसमें एस. जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ दो महत्वपूर्ण बैठकें कीं। इन बैठकों में जयशंकर ने कूटनीतिक अनुभव और भारत की स्थिति को स्पष्ट रूप से सामने रखा। वह चीन को यह समझाने में कामयाब रहें कि लद्दाख क्षेत्र में सेना को पीछे हटाना ही दोनों देशों के लिए सही कदम होगा।

4 साल चीन में रहने का अनुभव आया काम

एस. जयशंकर के लिए चीन के साथ यह बातचीत आसान नहीं थी। दरअसल, जयशंकर चीन को बहुत गहराई से समझते हैं। वे 2009 से 2013 तक चीन में भारत के राजदूत रह चुके हैं, जहां उन्होंने चीन की सरकार और ब्‍यूरोक्रेसी को बेहद नजदीक से जाना। यही अनुभव मौजूदा LAC विवाद को सुलझाने में मददगार साबित हुआ। मोदी सरकार में जयशंकर को विदेश सचिव (2015-18) बनाया गया था। इस दौरान उन्होंने अरुणाचल प्रदेश से लेकर लद्दाख तक के सभी विवादों को नजदीक से देखा। जयशंकर का यही अनुभव और समझ चीन के साथ कूटनीतिक वार्ता में बेहद फायदेमंद साबित हुआ।

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