लोकसभा चुनाव 2024 में लोकतंत्र के उत्सव की सबसे अनोखी तस्वीर कश्मीर से आई है। जिसने पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है। विदेशी आतंकियों के बंदूकों की नोक को स्थानीय लोगों ने नकार दिया है।

नयी दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 में लोकतंत्र के उत्सव की सबसे अनोखी तस्वीर कश्मीर से आई है। जिसने पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है। विदेशी आतंकियों के बंदूकों की नोक को स्थानीय लोगों ने नकार दिया है। बारामूला में 59.01 प्रतिशत, अनंतनाग-राजौरी में 54.46 और श्रीनगर में 38.49 फीसदी वोटिंग से आतंक के आका घबरा उठे हैं। 1989 में इन्हीं जगहों पर 5 प्रतिशत के करीबन वोट पड़े थे। श्रीनगर में तो निर्विरोध निर्वाचन हो गया था। कश्मीरियों ने लोकतंत्र के उत्सव में मतदान कर 35 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। नतीजतन, पाकिस्तान के आतंकी इरादे भी  मिट्टी में मिल गए। 

कभी गोली के डर से सहमा रहता था लोकतंत्र

पूरे देश में इसकी चर्चा है, क्यों​कि एक समय ऐसा था। जब कश्मीर में अलगाववादियों की गोली के डर से लोकतंत्र सहमा रहता था। पर अब स्थानीय नेता मान रहे हैं कि यह नया कश्मीर है। पहले इलेक्शन से पहले ही बॉयकाट की खबरें आम हो जाती थीं। मौजूदा इलेक्शन में वोटिंग ने उन आवाजों की बोलती बंद कर दी है। 

कश्मीरी डेमोक्रेटिक तरीके से चाहते हैं बदलाव

एक न्यूज चैनल से बातचीत में स्थानीय लोगों ने स्वीकारा भी है कि कश्मीरी डेमोक्रेटिक तरीके से बदलाव चाहते हैं। लोग लोकतंत्र का हिस्सा बनकर राज्य को पूर्ण स्टेट का दर्जा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया जा रहा है। क्षेत्रीय दलों की अपील का भी असर पड़ा। जिसमें उन्होंने लोगों से कहा था कि आप अपने वोट की चोट से अपने हालात बदल सकते हैं। 

पहले आतंकवाद के लिए जाना जाता था बारामूला

जम्मू कश्मीर का बारामूला पहले आतंकवाद के लिए जाना जाता था। पिछले कई साल से तनाव की वजह से स्थानीय लोग लोकतंत्र का हिस्सा बनने से झिझकते थे। वहां अक्सर वो​टर टर्नआउट काफी कम रहता है। इसके पहले 1984 में बारामूला में सबसे अधिक 59.90 फीसदी मतदान हुआ था। वर्तमान चुनाव में 22 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं। उनमें पूर्व सीएम फारूख अब्दुल्ला और पीपुल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद गनी लोन भी हैं। 

तीन दशकों में पहली बार: न आतंकी धमकी-न चुनाव बहिष्कार

मतदान में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था थी। आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद पहली बार मतदान हो रहा था। तीन दशकों के इतिहास में पहली बार न ही आतंकी धमकी और न ही चुनाव बहिष्कार का ऐलान हुआ। नतीजतन लोगों के मन में किसी तरह का डर नहीं था और लोग मतदान में शामिल हुए। कश्मीर में मतदान से एक बार फिर यहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया की वापसी हुई है। पॉलिटिकल पार्टियों के कार्यकर्ताओं में भी उत्साह है।

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