पुणे (महाराष्ट्र)। फरवरी 2022 में रूस और यूक्रेन के बीच वॉर शुरू हुआ तो सोशल मीडिया वहां रह रहे हजारो भारतीय नागरिकों के वतन वापसी की गुहार से पटा पड़ा था। यूक्रेन में मिसाइलों की बारिश के बीच चारो तरफ धमाकों और सायरन की आवाज गूंज रही थी। मदद के लिए लोगों की चीख पुकार पूरी दुनिया ने सुनी। उस परिस्थिति में भी भारत अपने 20,000 नागरिकों को वतन वापस लाया। पूरी दुनिया ने भारत के इस साहस को देखा। 

डिप्लोमेट्स ही नहीं आम लोगों पर भी विदेश नीति का असर

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि विदेश नीति सिर्फ डिप्लोमेट्स ही नहीं, बल्कि हर भारतीय नागरिक के जीवन को प्रभावित करती है। वह पुणे में एक पुस्तक के मराठी अनुवाद के लॉन्च के मौके पर युवाओं के साथ बातचीत कर रहे थे। कोविड महामारी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कौन जानता था कि यह महामारी भारत तक पहुंचेगी और हमारे जीवन को बदल देगी। उस दौरान भी हम उन लोगों को नहीं रोक सके जो कोविड प्रभावित होकर भारत वापस आए और इसी वजह से कोविड फैलता रहा।

अमेरिकी दबाव में रूस से तेल न लेते तो बढ़ती महंगाई

जयशंकर ने कहा कि कभी-कभी हमारे नागरिक दूसरे देशों में यात्रा करते समय किसी संघर्ष या तनाव में फंस जाते हैं। जैसे साल 2022 में यूक्रेन वॉर के बीच हमारे करीबन 20 हजार स्टूडेंट्स यूक्रेन में फंसे हुए थे। यह युद्ध शुरू होने के बाद पश्चिमी देशों ने भी भारत पर रूस से तेल का आयात बंद करने का प्रेशर डाला। पर ऐसी स्थिति में भारत ने रूस से तेल आयात किया। यदि हम दबाव में आकर रूस से तेल का आयात बंद कर देते तो हमारे देश में पेट्रोल और उससे जुड़ी चीजों के दाम बढ़ जाते। पिछले सप्ताह बीकानेर में भी एक प्रेस कांफ्रेंस में एस जयशंकर ने कहा था कि देश में पेट्रोल की कीमतें कम हैं, क्योंकि भारत ने रूस से तेल खरीदने की हिम्मत दिखाई।

वैक्सीन के लिए अमेरिका तक गए

जयशंकर ने कहा कि भारत और अमेरिका के संबंध मजबूत हुए तो उसकी बड़ी वजह पीएम नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता है। कोविड महामारी के समय वैक्सीन बनाने और सप्लाई करने वालों से हेल्थ मिनिस्टर के साथ जानकारी ली कि यह कहां से आ रही है। उस समय अमेरिका ने वैक्सीन दूसरे देशों को भेजने पर रोक लगाई थी कि जब तक उनके यहां काम पूरा नहीं हो जाता। वह अन्य देशों को वैक्सीन नहीं भेजेंगे। फिर हमने अमेरिका जाकर अनुरोध किया कि यह सबके हित में है। राज्यमंत्री वी मुरलीधरन के मुताबिक, इजराइल-हमास युद्ध के दौरान कुल 1,343 लोगों को निकाला गया था।

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