ये तो तय है कि राजस्थान के सात दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव और 11 दिसंबर को आने वाले परिणाम के बाद राज्य की नौकरशाही में भारी बदलाव होगा। लिहाजा कई आईएएस और आईपीएस अफसर भी नतीजों के इंतजार में हैं। भाजपा और कांग्रेस के करीबी अफसरों ने नेताओं से संपर्क साधना शुरू कर दिया है। लेकिन कोई भी खुलकर किसी का समर्थन नहीं कर रहा है। हालांकि कुछ विपक्षी कांग्रेस के नेताओं के तेवर को देखते हुए नौकरशाहों में खलबली है। कांग्रेस के नेता खुलेतौर पर नौकरशाहों को चेतावनी दे रहे हैं। उन पर भाजपा के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया जा रहा है। 

अगर राज्य में भाजपा सत्ता पर फिर से काबिज होती है तो ज्यादातर अफसरों को फिर से अच्छे पद मिल जाएंगे। लेकिन अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनती है तो नौकरशाही की तस्वीर पूरी तरह बदल जाएगी। राज्य में नौकरशाही के सबसे बड़े पद मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक से लेकर जिलों के कलेक्टर और पुलिस कप्तान को बदला जाएगा। नई सरकार अपने मनमुताबिक अफसरों को विभिन्न पदों पर नियुक्त करेगी। आमतौर पर नई सरकार बनने के बाद अफसरों को ट्रांसफर किया ही जाता है। असल में कांग्रेस को लेकर नौकरशाही ऊहापोह की स्थिति में है। कांग्रेस में मुख्यमंत्री की दौड़ में कई नाम चल रहे हैं। लिहाजा अफसरों के सामने अभी स्थिति साफ नहीं हैं। कांग्रेस आलाकमान भी मुख्यमंत्री के पद के लिए स्पष्ट कर चुकी है कि कई लोगों के नाम मुख्यमंत्री के पद के लिए हैं। हालांकि मुख्य लड़ाई पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच मानी जा रही है। 

अशोक गहलोत के खास माने जाने वाले ज्यादातर अफसर रिटायर हो चुके हैं। सचिव पायलट के करीबी अफसर या उनके प्रति झुकाव रखने वाले अफसर कम ही हैं। राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान अशोक गहलोत खुलेतौर पर नौकरशाही के खिलाफ बयान दे चुके हैं। गहलोत का कहना है कि नौकरशाही खुलेतौर पर मौजूदा भाजपा सरकार के पक्ष में काम कर रही है। उन्होंने मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रमुख सचिव 1993 बैच के आईएएस अफसर तन्मय कुमार को कठघरे में खड़ा किया। गहलोत ने चुनाव आयोग से भी  अफसर की शिकायत की। हालांकि राज्य के ज्यादातर अफसर भाजपा सरकार के पक्ष में हैं। 

ऐसा भी माना जा रहा है कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो केंद्र में तैनात राजस्थान कैडर के अफसरों को भी वापस लाया जाएगा और ऐसे में राज्य में तैनात अफसरों के चीफ सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त होने की संभावना कम ही होगी। ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस के सत्ता पर काबिज होने की स्थिति में नवीन महाजन, सुधांश पंत, समित शर्मा, संजय मल्होत्रा, नीलकमल दरबारी और ऊषा शर्मा को अहम जिम्मेदारी मिल सकती है। दरबारी, उषा शर्मा और पंत फिलहाल केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर हैं। राज्य के मौजूदा चीफ सेक्रेटरी 1983 बैच के आईएएस डीबी गुप्ता का अभी करीब डेढ़ साल से ज्यादा का समय है और अगर राज्य में बदलाव होता है तो गुप्ता को किसी शंटिंग पोस्टिंग में भेजा जाएगा। लेकिन अगर राज्य में भाजपा की सरकार फिर बनती है तो गुप्ता अगले डेढ़ साल तक इसी पद पर काम करते रहेंगे और तन्मय कुमार और ज्यादा मजबूत होकर उभरेंगे। लेकिन अगर कांग्रेस की सरकार आती है 1984 और 1985 बैच के अफसरों में से किसी को राज्य का चीफ सेक्रेटरी नियुक्त किया जाएगा।

वसुंधरा सरकार में इस समय अहम जिम्मेदारी संभाल रहे डीबी गुप्ता 1983 बैच के अधिकारी हैं। उनके बैच के ही अशोक सिंघवी भी इस समय राज्य में तैनात हैं। लेकिन एक मामले में सीबीआई जांच के कारण उनके चीफ सेक्रेटरी बनने की संभावना कम है। 1985 बैच के अधिकारियों में खेमराज चौधरी, राजीव स्वरूप, रविशंकर श्रीवास्तव और गिरिराज सिंह हैं। जबकि 1984 बैच से महज एमके शर्मा ही अभी राज्य में तैनात हैं। 

हाल ही में गहलोत के खास माने जाने वाले दो आईएएस अफसरों को राजे सरकार ने अहम पदों पर नियुक्त किया है। गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव और 1986 बैच के आईएएस अधिकारी दीपक उप्रेती को आरपीएससी के अध्यक्ष पद पर और श्रीमत पांडे को बिजली नियामक आयोग का अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। ये दोनों अफसर गहलोत के शासनकाल में अहम पदों पर नियुक्त रहे। उप्रेती वित्त सचिव, एमडी रोडवेज, सेल टैक्स कमिशनर, ट्रांसपोर्ट कमिशनर, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव और खान विभाग के प्रमुख सचिव और गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव जैसे प्रभावशाली पदों पर रह चुके हैं। ऐसे में इन अफसरों की कांग्रेस की सरकार बनने पर प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर बात मानी जाएगी।