ईसाइयों के बड़े त्योहार ईस्टर के मौके पर श्रीलंका में चर्चों पर हमला हुआ। जो कि इतना भीषण था कि मरने वालों की संख्या दो सौ पार कर गई है। अभी तक मिली जानकारी के मुताबिक इस हमले के पीछे श्रीलंका के ही एक कट्टरपंथी संगठन नेशनल तौहीद जमात का हाथ है, जो आईएस की तर्ज पर काम करता है। इससे पहले न्यूजीलैण्ड में मस्जिद पर हमला हुआ था। लेकिन इन दोनों हमलों ने एक नए तरह की चिंता खड़ी कर दी। क्या इन दोनों विस्फोटों का आपस में कोई कनेक्शन है? क्या दुनिया फिर से धार्मिक नरसंहारों के खतरे की ओर बढ़ रही है? 

ईस्टर के मौके पर श्रीलंका के चर्चों में आठ बड़े सीरियल धमाके हुए। इसमें 207 लोगों की मौत हुई जबकि 500 से ज्यादा घायल हैं। श्रीलंका पुलिस की तरफ से जारी बयान के मुताबिक अब तक आठ धमाकों की सूचना मिली है। श्रीलंका के कोलंबो में सेंट एन्थनी चर्च, नौगोम्बो में सेंट सेबेस्टियन चर्च और बट्टिकलाओ में एक चर्च धमाके हुए हैं। इसके अलावा तीन फाइव स्टार होटलों शांग्री-ला, सिनामोन ग्रैंड और किंग्सबरी में भी विस्फोट हुआ। 

 यह धमाके तब शुरु हुए जब चर्च में ईस्टर के मौके पर प्रार्थना सभा चल रही थी। अभी तक मिली सूचना के मुताबिक यह एक फिदायीन यानी आत्मघाती हमला था। जिसके जिम्मेदार दो संदिग्धों के नाम सामने आए हैं जेहरान हाशिम और अबू मोहम्मद। 

जहां हाशिम ने खुद को होटल शांग्री ला में उड़ा लिया तो अबू मोहम्मद ने पूर्वी शहर बट्टीकालोवा में चर्च में फिदायीन धमाका किया। 

श्रीलंका में हुआ यह भीषण हमला आत्मघाती हमला बताया जा रहा है। खबर आ रही है कि श्रीलंका के पुलिस प्रमुख को 10 दिन पहले किसी बड़े हमले का इंटेलीजेंस इनपुट मिला था। इसमें कहा गया था कि फिदायीन हमलावर देश के प्रमुख चर्चों को निशाना बना सकते हैं। पुलिस प्रमुख पुजुथ जयसुंदर ने 11 अप्रैल को देश के आला पुलिस अधिकारियों को इनपुट भेजा था जिसमें हमले के प्रति आगाह किया गया था। श्रीलंका में फिदायीन हमले से संबंधित यह रिपोर्ट गल्फ न्यूज ने एएफपी के हवाले से छापी है। 

इस अलर्ट में एक विदेशी इंटेलिजेंस एजेंसी का भी इनपुट जोड़ा गया था और कहा गया था कि नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) नाम का आतंकी संगठन श्रीलंका में ईसायों के केन्द्र यानी चर्चों को निशाना बनाने की फिराक में है। एनटीजे यानी नेशनल तौहीद जमात वही संगठन है, जिसने पिछले साल कुछ बौद्ध धार्मिक स्थलों पर हमला किया था। 

हालांकि अभी तक इस संगठन ने श्रीलंका में हुए हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। 

उधर धमाके के बाद पूरे श्रीलंका में अफरातफरी का माहौल बना हुआ है। रक्षा विशेषज्ञ इस घटना के पीछे साथ तौर पर इस्लामी आतंकवादियों का हाथ देख रहे हैं। 

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श्रीलंका में ईसाइयों पर हमले के लगभग एक महीने पहले यानी 15 मार्च को न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च की दो मस्जिदों में गोलीबारी हुई। जिसमें 49 लोग मारे गए और 20 से ज़्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए। 

न्यूजीलैण्ड में मरने वालों में अधिकतर मुस्लिम आप्रवासी थे, जबकि हमलावर एक श्वेत ईसाई व्यक्ति था। ब्रिटिश मूल के 28 साल के हमलावर ब्रेंटन टैरेंट ने इस हमले से पहले अपना वीडियो भी बनाया, जिसमें उसने नस्लीय घृणा से संबंधित बातें कही थी। 

इसके बाद श्रीलंका में ईसाईयो पर हमला हो गया। आशंका है कि जिस एनटीजे यानी नेशनल तौहीद जमात पर इस हमले का शक जताया जा रहा है उसका संबंध मध्य पूर्व की  बदनाम आईएस से भी है। 

यह दोनों ही हमले बेहद खतरनाक संकेत दे रहे हैं। यह दुनिया के दो प्रमुख धर्मों इस्लाम और ईसाईयत के अंदर छिपे अतिवादियों के बीच बढ़ते वैमनस्य का इशारा दे रहा है। जिसपर समय रहते रोक नहीं लगाई गई तो स्थिति गंभीर हो सकती है।  क्योंकि दोनों ही धर्मों के दुनिया भर में करोड़ो अनुयायी हैं। ऐसे में अगर इनके बीच दुश्मनी और फैली तो नतीजा खतरनाक हो सकता है। 

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