विश्व प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर केरल में स्थित है। यह विश्व के सम्मानित स्थलों में से एक है। हिंदू धर्म में भी इसे पवित्र स्थल का दर्जा दिया गया है। यह सबसे बडा धार्मिक स्थान है, जिसमें दुनिया से 30 लाख से अधिक भक्त हर साल दर्शन के लिए आते हैं।
स्वाभाविक रुप से यह संख्या दूसरी विचारधारा और विश्वास वाले लोगों में डर पैदा करती है। जो कि अपने पूर्वाभास की वजह से इसकी प्रतिष्ठा से भयभीत रहते हैं। 

हमें केरल की वामपंथी सरकार से जानकारी मिलती है कि सबरीमला मंदिर एक ‘धर्मनिरपेक्ष स्थल’ है- और इसलिए सरकार और अदालत को यह तय करने का अधिकार मिल जाता है कि यह कैसे संचालित हो।  

यह बात स्वाभाविक रूप से कई सवाल उठाती है क्योंकि पश्चिम बंगाल में धर्म के लिए धर्मनिरपेक्षता शामिल नहीं होती है। उनके लिए धर्म सबसे पहले आता है। सबरीमाला एक धर्मनिरपेक्ष मंदिर है, वह केवल कुछ ही धार्मिक समुदायों के लिए नहीं है। सबरीमला मंदिर 1976 के बाद स्थापित किया गया था जब भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया था। 

सबरीमला के भक्तों को मंदिर में प्रवेश करने के लिए विशेष रुप से आध्यात्मिक और धार्मिक नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। उन्हें मंदिर में प्रवेश करने के लिए एक तपस्वी की तरह जीवन जीने का अभ्यास करना होता है। क्या इस तरह की तपस्वी प्रथा एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र का हिस्सा है। यह मंदिर शिव और विष्णु जैसे बड़े हिंदू देवताओं के संयुक्त स्वरुप माने जाने वाले एक विशेष देवता का है।

अयप्पा जो कि सबरीमाला मंदिर के अधिष्ठाता देवता हैं, क्या वह धर्मनिरपेक्ष देवता हैं। क्या मंदिर के पुजारी केवल धर्मनिरपेक्ष कर्मचारी हैं? क्या इनका धर्म से कोई लेना देना नहीं हैं? फिर क्यों मंदिर में नियमित रूप से रोज प्रार्थनाएं और मंत्रों का जाप होता है, जबकि इसे एक धर्मनिरपेक्ष स्थल कहा जा रहा है। 
यह स्पष्ट है कि इसका उद्देश्य धार्मिक और आध्यात्मिक है ना कि सांसरिक या फिर धर्मनिरपेक्ष। 

हमें बताया जा रहा है कि सबरीमाला मंदिर एक धर्मनिरपेक्ष स्थल है, क्योंकि यहां पर विभिन्न धर्मों के सदस्य दर्शन के लिए जा सकते हैं। न केवल हिंदुओं बल्कि ईसाइयों और मुसलमानों को भी इस मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत है। जैसा कि हम जानते हैं हिंदू धर्म सभी धर्मों का सम्मान करता है। 
इसका मतलब यह है कि हिंदू धर्म पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है। 
जिसका तात्पर्य यह हुआ कि हिंदू धर्म एक धर्म नहीं है और इसको किसी भी तरह की सुरक्षा की जरूरत नहीं है। इसका निष्कर्ष यह निकलता है कि हम सभी हिंदू मंदिरों को धर्मनिरपेक्ष कह सकते हैं। जिसे धर्मनिरपेक्ष अधिकारियों द्वारा संचालित किया जाता है।  

वास्तव में, केरल के कम्युनिस्ट सबरीमला मंदिर को विवादित स्थल के रूप में पेश करना चाहते हैं, ताकि हिंदू यहां अपने स्वामित्व का दावा नहीं कर सकें। हालांकि यहां पर सदियों से होने वाली पूजा हिंदू रीति रिवाजों के मुताबिक होती है, न कि किसी और धर्म की परंपराओं के मुताबिक।  

पश्चिम में धर्मनिरपेक्षता का मतलब न्यायालयों और सरकार का धर्म के मामलें में किसी तरह के हस्तक्षेप न होने से लगाया जाता है। 

हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि दुनिया के बाकी हिस्सों में धर्मनिरपेक्ष अदालतें और सरकारें अभ्यास, धर्मशास्त्र और दर्शन के मामलों में किसी भी धर्म, धार्मिक संस्था या मंदिर में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। धर्म के मामले में किसी तरह का सरकारी हस्तक्षेप
धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ माना जाता है, धर्मनिरपेक्षता कानून का हिस्सा नहीं होती। अमेरिका और यूरोप में चर्च, या इस्लामी देशों में मस्जिद विनियमन या राजस्व को हटाना राज्य का विषय नहीं हैं, वहीं भारत में हिंदू मंदिर बहुत पुराने समय से राज्य के अधीन होते हैं।
 
अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में सरकारें हिंदू धर्म में हस्तक्षेप नहीं करती हैं।  इसका मतलब यह है कि हिंदू मंदिरों को भारत के मुकाबले दूसरे देशों में धार्मिक स्वतंत्रता ज्यादा है। जबकि धर्मनिरपेक्षता पश्चिम में हिंदू मंदिरों की रक्षा करती है लेकिन दूसरी तरह से। वहीं भारत में मंदिरों को प्रतिबंधित और दंडित करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग किया जाता है।

अब हमारे पास केरल में कम्युनिस्टों की एक अजीब स्थिति हमारे सामने आई है। वे लोग सबरीमाला मंदिर को लेकर ईसाई और इस्लाम धर्म के लोगों से इस बात पर परामर्श करना चाहते हैं। ऐसा लग रहा है कि धर्मनिरपेक्ष एजेंडा हिंदुओं के हिस्से को परिवर्तित कर रहा है। हिंदू मंदिरों का अपमान करना लंबे समय से कम्युनिस्ट एजेन्डे का हिस्सा रहा है। जिसे अब धर्मनिरपेक्षता का नाम दिया जा रहा है। 

स्पष्ट रूप से धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा शब्द है जिसका अब भारत में उपयोग नहीं होना चाहिए क्योंकि यह बहुत सारी विकृतियों से भरा हुआ है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंदू के पवित्र स्थलों को वहीं सम्मान प्राप्त होना चाहिए जो भारत में अन्य धर्मों के मंदिरों को प्राप्त है। हिंदुओं को धार्मिक अधिकारों से वंचित नहीं करना चाहिए। 

उसे भी वह संरक्षण प्राप्त होना चाहिए जो ईसाइयों और मुस्लिमों को दिए जाते हैं। अगर उसे यह अधिकार नहीं प्राप्त है तो इसका मतलब वह अभी भी हिंदुओं को अपमानित करने और उनका शोषण करने की औपनिवेशिक युग की नीति पालन कर रहा है।

हिंदूओं को इस समस्या का समाधान केवल तभी मिल सकता है जब हिंदू इसके खिलाफ आवाज उठाए और उन धर्मनिरपेक्षवादियों को बाहर निकालें जिनके पास स्पष्ट रूप से एक हिंदू विरोधी एजेंडा है। उनके मस्तिष्क में हिंदू मंदिरों, समारोहों या प्रथाओं के लिए बहुत कम सम्मान है। 
अन्यथा इस बात की भी आशंका है कि भारत में हर हिंदू मंदिर, प्रत्येक हिन्दू त्यौहार और कुंभ मेले जैसे आयोजनों को धर्मनिरपेक्ष दिशानिर्देश के आधार पर कुछ हिंदू विरोधी गुटों द्वारा प्रभावित किया जाएगा। 
यह समय हिंदुओं के संघर्षरत रहने का है ना कि भ्रम में पड़ने का।