नई दिल्ली: देश के प्रथम स्वातंत्र्य वीर मंगल पांडे को उनके जन्मदिवस पर कोटि कोटि नमन। उनका जन्‍म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दुगवा गांव में हुआ था। वह  ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज की 34वीं बंगाल नेटिव इनफेन्ट्री में तैनात थे।

दलित साथी की आवाज पर शुरु की थी मंगल पांडे ने आजादी की जंग
अंग्रेजों ने अपनी सेना के लिए नवीनतम एनफील्ड 'p53’ रायफल का इस्तेमाल शुरु किया था। इसमें पहले की बंदूकों से अलग तरह का कारतूस प्रयोग किया जाता था। जिसे दांत से काटकर खोलना होता था। इन कारतूसों का निर्माण जिस फैक्ट्री में किया जाता था। वहां काम करने वाले ज्यादातर मजदूर दलित समुदाय के आते थे। 

एक बार फैक्ट्री में काम करने वाला एक दलित मजदूर छावनी आया। उस मजदूर का नाम मातादीन था। मातादीन को जबरदस्त प्यास लगी थी। उन्होंने मंगल पांडेय नाम के सिपाही से पीने का पानी मांगा। जिसपर मंगल पांडे ने उसे नीची जाति का होने का ताना दिया।    

इससे नाराज होकर मातादीन ने कहा कि 'मंगल पांडे और उनके साथी किस जाति की बात कर रहे हैं। उनका धर्म तो पहले ही भ्रष्ट हो गया है। क्योंकि वह जिन कारतूसों का प्रयोग कर रहे हैं उसमें गाय और सूअर की चर्बी लगी है। जिससे हिंदू और मुसलमान दोनों का धर्म भ्रष्ट हो रहा है।'

जिसके बाद मंगल पांडे ने शांति से बिठाकर मातादीन को पानी पिलाया और उससे पूरी कहानी सुनी। गाय और सूअर की चर्बी की बात जानकर हिंदू और मुसलमान दोनों भड़क गए। इसके बाद नाराज मंगल पांडे ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ जंग छेड़ दी। 

इस घटना के बाद अंग्रेजों ने जो रिपोर्ट दर्ज की थी, उसमें घटना के कारण के तौर पर बकायदा मातादीन के नाम का जिक्र है। मातादीन को भी फांसी दी गई थी। आमिर खान अभिनीत फिल्म मंगल पांडे में भी मातादीन का रोल बेहद अहम दिखाया गया है। लेकिन उन्हें फैक्ट्री मजदूर की जगह झाड़ू लगाने वाला बताया गया है। 

कैसे शुरु हुआ मंगल पांडे का विद्रोह
गाय और सूअर की चर्बी वाली इस कारतूस को 26 फरवरी 1857 को पहली बार इस्तेमाल किया जाना था। इसके बाद 29 मार्च 1857 में जब गाय और सूअर की चर्बी वाला नया कारतूस पैदल सेना को बांटा जाने लगा, तो मंगल पांडेय ने उसे लेने से इनकार कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप अंग्रेजों ने उनके हथियार छीन लिये जाने व वर्दी उतार लेने का हुक्म दिया गया। मंगल पांडेय ने उस आदेश को मानने से इनकार कर दिया। उनकी राइफल छीनने के लिए जब अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन आगे बढे तो मंगल ने उस पर आक्रमण करके उसे मौत के घाट उतार दिया। मंगल ने ह्यूसन को मारने के बाद एक और अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को भी मार डाला। 
 लेकिन इसके बाद मंगल पाण्डेय और उनके सहयोगी ईश्वरी प्रसाद को अंग्रेज सिपाहियों ने पकड़ लिया।

मंगल की लोकप्रियता से घबराकर अंग्रेजों ने दस दिन पहले ही दे दी फांसी
अंग्रेज अधिकारियों पर गोली चलाने के बाद मंगल पांडेय की गिरफ्तारी और कोर्ट मार्शल हुआ। गिरफ्तारी के बाद मंगल पांडे की लोकप्रियता बढ़ने लगी। लोगों के बीच उनके समर्थन के लिए मुहिम शुरु हो गई।  उन्हें 6 अप्रैल को फांसी की सजा सुना दी गई और 18 अप्रैल को फांसी दिया जाना तय किया गया। लेकिन कई छावनियों में ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ असंतोष भड़कता देख, जिसके चलते अंग्रेजों ने मंगल पांडेय को 8 अप्रैल, 1857 को ही फांसी पर चढ़ा दिया।

मंगल पांडे को फांसी देने के लिए कोलकाता से मंगवाए गए जल्लाद
मंगल पांडे जाति के ब्राह्मण थे। ऐसे में उनकी मौत से ब्रह्म हत्या का पाप लगने का भय था। इसके अलावा मंगल पांडे इतने लोकप्रिय हो गए थे कि उन्हें फांसी देने वाले जल्लादों को बाद में अपने अंजाम का डर सता रहा था। इसलिए बैरकपुर के जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से मना कर दिया था, क्योंकि वह उनके खून से अपने हाथ नहीं रंगना चाहते थे। बैरकपुर के जल्लादों के मना करने के बाद कलकत्ता से चार जल्लाद बुलाए गए थे। जिन्होंने मंगल पांडे को फांसी दी। 

मंगल पांडे की शहादत का असर 90 साल बाद भी दिखा
लेकिन बहुत से लोग इस बात को नहीं जानते हैं कि मंगल पांडे ने 1857 में जिस सिपाही विद्रोह का सूत्रपात किया था, उसका असर 1947 में अंग्रेजों द्वारा हड़बड़ी में भारत को आजाद किए जाने के कदम में भी दिखा। 

क्लिमैन्ट रिचर्ड एटली जो कि 1945 से 1951 तक ब्रिट्रेन के प्रधानमंत्री रहे। उनके समय में ही भारत को आजादी मिली। उनसे एक बार ब्रिटेन के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि आखिर आपने भारत क्यों छोड़ा? आप दूसरा विश्वयुद्ध जीत चुके थे। सबसे बुरा समय बीत चुका था। 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन फ्लॉप हो चुका था। आखिर ऐसी क्या जल्दी थी कि ब्रिटिश सरकार ने 1947 में अचानक यह कहना शुरु कर दिया कि नहीं हमें तुरंत भारत छोड़ना है? 

एटली ने जवाब दिया – 'ऐसा नहीं था। यह उस चिंगारी की वजह से था जो  भारतीय सेना में पैदा हो गई थी। हम 1857 का सिपाही विद्रोह देख चुके थे। 25 लाख भारतीय सैनिक द्वितीय विश्वयुद्ध जीतकर लौट रहे थे। इस बीच कराची नेवल बेस, जबलपुर, आसनसोल जैसी कई जगहों पर भारतीय सैनिकों के विद्रोह की खबरें आ रही थीं'। आजाद हिंद फौज में शामिल होने वालों की तादाद तेजी से बढ़ रही थी। हम जान गए थे कि अब ज्यादा दिनों तक भारत पर कब्जा बनाए रखना मुश्किल है। अगर हमने इस देश को छोड़ा नहीं तो हमें खूनी क्रांति का सामना करना पड़ेगा'।

एटली के इस बयान में साफ झलकता है कि सन् 1857 की क्रांति के दौरान भारतीय सैनिकों के विद्रोह के कारण जितनी बड़ी संख्या में अंग्रजों की जान गई थी। उसी डर के कारण 1947 में अंग्रेजों ने भारत को आजादी दे दी थी। ना कि  खादी और चरखे के किसी अहिंसक आंदोलन की वजह से। 

इस खबर से सबंधित पूरा विडियो आप यहां देख सकते हैं-अजीत डोभाल ने किया सनसनीखेज खुलासा, खादी और चर्खे से नहीं मिली आजादी, बहुत भारी कीमत चुकाई है हमने आजादी की

"