नई दिल्ली: भाजपा द्वारा संकल्प पत्र के नाम से जारी लोकसभा चुनाव का घोषणा पत्र तथा इस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री अरुण जेटली एवं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के वक्तव्यों को साथ मिलाकर विचार करें तो थोड़े शब्दों में कहा जाएगा कि यह भारतीय राष्ट्र की विचारधारा पर कायम हुए राष्ट्रवाद की भावना के साथ समग्र आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक विकास का व्यावहारिक दस्तावेज है। इसके कवर पृष्ठ पर संकल्पित भारत सशक्त भारत शब्द प्रयोग है तो पीछे के पृष्ठ पर विचारधारा के तीन प्रमुख बिन्दू हैं- राष्ट्रवाद हमारी प्रेरणा, अन्त्योदय हमारा दर्शन, सुशासन हमारा मंत्र। 

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यही तीन तत्व हैं जिन पर संकल्प पत्र का पूरा दस्तावेज तैयार किया है। इस तरह भाजपा के संकल्प पत्र में ऐसी अलग ध्वनियां हैं जो पार्टी के रुप में उसकी पहचान को अन्य दलों से अलग करती है। 

प्रधानमंत्री सहित अन्य नेताओं की बातों के अनुसार शेष दो बिन्दू उसके सरकार के कामकाज के प्रमुख वैचारिक आधार रहे हैं। इस तरह भाजपा ने पार्टी और सरकार दोनों के बीच विचारधारा एवं शासकीय कार्यों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में भारत के वर्तमान और भविष्य की कल्पना को स्पष्ट करने की कोशिश की। 

उन्होंने कहा कि हमने संकल्प पत्र में ऐसा नहीं लिखा है लेकिन हमारा ध्यान स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे होने यानी 2047 के भारत पर है। अगर 21 वीं सदी को एशिया की सदी माना जा रहा है तो भारत उसका नेतृत्व करेगा या नहीं यह प्रश्न हमारे सामने है। नेतृत्व करना है तो 2047 भारत सभी मामलों में दुनिया का सर्वोपरि राष्ट् होगा जिसका सुदृढ़ आधार 2019 से 2024 के बीच बन जाएगा। संकल्प पत्र को उन्होंने इसी को पूरा करने की सोच एवं रुपरेखा बताया। 


इस प्रकार मोदी ने अपने संकल्प पत्र को सामान्य चुनावी घोषणा पत्रों से अलग विचार एवं कार्यों दोनों स्तरों पर एक व्यापक एवं सुस्पष्ट कल्पना का संकल्प साबित करने का प्रयास किया। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि यह कायम रहने वाली सरकार के कायक्रम हैं। सभी नेताओं का स्वर यही था कि 2014 में उस समय की चुनौतियों व परिस्थितियों के अनुसार हमने घोषणा पत्र तैयार किया था। सरकार में आने पर उन दिशाओं में काम करते हुए देश को आगे ले आए हैं और अगले पांच वर्षों में उसे सुदृढ़ करेंगे। 


जेटली, सुषमा एवं शाह तीनों ने पांच वर्ष में किए गए कार्यों एवं प्राप्त उपलब्धियों की संक्षेप में चर्चा की। इसका उद्देश्य यही बताना था कि हमने अपने लक्ष्य में सफलताएं पाईं हैं इसलिए हमारा आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है और उनसे अनुभव लेते हुए हमने बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 


मोदी ने स्पष्ट किया कि यह संकल्प पत्र  2024 तक के लिए है। लेकिन हमने स्वतंत्रता के 75वें वर्ष यानी 2002 तक का भी लक्ष्य निर्धारित किया है ताकि जनता हमारा अंतरिम हिंसाब ले सके। उनके अनुसार हमारे महापुरुषों ने सैंकड़ों वर्षों के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान भारत का लो लक्ष्य निर्धारित किया जो सपने देखे उनकी दिशा में हम महत्वपूर्ण कार्य कर लेंगे। वास्तव में संकल्प पत्र में 75 वर्ष, 75 लक्ष्य और 75 कदम के रुप में क्रमवार लक्ष्यों व कार्यों का विवरण दिया गया है। उनमें वो सारी बातें जिनके आधार पर सरकार से पूछा जा सकता है आपने जो वायदे किए थे उनमें कहां तक काम हुआ है। 

प्रधानमंत्री ने संकल्प पत्र को राष्ट्रनिर्माण के एक मिशन एवं दिशा का सूचक बता दिया। यानी जनभागीदारी के साथ लोकतांत्रिक मूल्यों को महत्व देते हुए देश को समृद्ध बनाया जाएगा जिसकी सबसे बड़ी कसौटी यही होगी समाज के आम आदमी तक कितना पहुंचा है। 


यह पहले से साफ था कि राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रीय सुरक्षा घोषणा पत्र का मूल स्वर होगा तथा इसमें अपनी परंपरागत विचारधारा तथा उससे जुड़े मुद्दों को प्रखरता के साथ रखा जाएगा। इसमें. राष्ट्रवाद के प्रति पूरी प्रतिबद्धता दिखाई गई है तो आतंकवाद के समाप्त करने तक शून्य सहिष्णुता की नीति पर अडिग रहने का संकल्प है। सख्ती से अवैध घुसपैठ को रोकने तथा नागरिकता कानून को हर हाल में पारित कराने वायदा है। साफ कहा गया है कि सुरक्षा के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जाए। 


 यह सब कुछ करते हुए आश्वासन दिया गया है कि भारत की सांस्कृतिक पहचान पर आंच नहीं आने देंगे, बल्कि उनकी रक्षा करेंगे। जहां से संकल्पों की शुरुआत होती है यानी पृष्ठ 13 से उसमें पहला बिन्दू ही है,राष्ट्र सर्वप्रथम। इसके बाद आतंकवाद पर सुरक्षा नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा का शीर्षक है। राष्ट्रीय सुरक्षा में ही रक्षा क्षेत्र का आधुनिकीकरण एवं आत्मनिर्भरता, सुरक्षा बलों को सुदृढ़ करने, सैनिकों का कल्याण, पुलिस बलों का आधुनिकीकरण, सीमा सुरक्षा  तटवर्ती सुरक्षा, वामपंथी उग्रवाद का मुकाबला आदि उप शीर्षक से समयबद्ध लक्ष्य निर्धारित है। 


उदाहरण के लिए वामपंथी उग्रवाद यानी माओवाद के खतरे को खत्म करनेतथा प्रभावित क्षेत्रों में जारी विकास अभियान को और तेज करने की बात है। ध्यान रखिए, माओवाद के बारे सीधी घोषणा है कि सख्त कदमों के द्वारा उनको कुछ हिस्सों में सिमटा दिया गया है और इसे जारी रखते हुए अगले पांच वर्षों में उनको पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। हालांकि इसके समानांतर माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में विकास की गति तीव्र करने का वायदा है जो कि जरुरी है। किंतु इसमें कहीं भी नहीं लिखा है कि सामाजिक-आर्थिक विकास की कमी माओवादी हिंसा का कारण है या इसको गति देने से माओवाद कम होगा। 


यह पहला घोषणा पत्र है जिसमें माओवादियों ही नहीं ऐसे किसी भी हिंसक तत्वों के साथ तनिक भी लचीला रुख नहीं अपनाया गया है। भाजपा के परंपरागत समर्थक, संघ परिवार के कार्यकर्ता तथा राष्ट्रवाद की विचारधारा को मानने वाले भाजपा से ऐसी ही मुखर स्वर एवं उसके अनुरुप काम करने की उम्मीद करते हैं।

 
इस तरह देखा जाए तो भाजपा ने न केवल अपने मूल मतदाताओं के सामने वर्तमान समय के अनुरुप राष्ट्रवाद, सुरक्षा, जम्मू कश्मीर एवं विदेश नीति को लेकर को एकदम साफ चेहरा सामने रख दिया है। यह एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें भाजपा वाकई अन्य पार्टियों से एकदम अलग दिखाई पड़ती है। 


राष्ट्र प्रथम है और सुरक्षा इसकी पहली शर्त है। शेष बातों का स्थान उसके बाद आता है। और सुरक्षा का मतलब सुरक्षा ही है। इसमें सेना को सभी आवश्यक शस्त्रास्त्रों-उपकरणों से सुसज्ति करना, सुरक्षा बलों के कल्याण के कार्यक्रम को ईमानदारी से लागू कर उनका मनोबल बनाए रखना, उनके संघर्ष के लिए आवश्यक काननू ढांचे को बनाए रखने का वायदा है। इसमें किसी भी क्षेत्र में हिंसक और अलगाववादी, मजहबी कट्टरपंथियों से बातचीत या उनके प्रति नरमी के एक शब्द नहीं हैं। 


देश इस समय सुऱक्षा के प्रति ऐसी ही दृढ़ता की अपेक्षा सरकार से रखता है। इसमें हमारी रक्षा के लिए जान जोखिम में डालकर संघर्ष कर रहे सुरक्षा बलों को साफ संदेश है कि आप निर्भय होकर अपनी सैन्य नीति का ईमानदारी, संवेदनशीलता और दृढ़ता भूमिका निभाएं। संघर्ष स्थल पर कैसी भूमिका निभानी है यह वे ही तय करेंगे। आतंकवाद के समाप्त होने तक शून्य सहिष्णुता की नीति का मतलब ही है कि जब तक एक भी आतंकवादी है या आतंकवादी पैदा होने की संभावना है, सीमा पार से घसपैठ के आधार बने हुए हैं तब तक बिल्कल असहिष्णु रहते हुए सुरक्षा बलों की कार्रवाई जारी रहेगी। 

जम्मू कश्मीर में जो अलगाववादी और मजहबी कट्टरपंथी हैं उनके लिए शामत की नीति जारी रहने वाली है। ऐसे तत्वों के लिए यह संकल्प पत्र एक चेतावनी है।  वास्तव में 2014 के संकल्प पत्र की तुलना में राष्ट्रवाद और सुरक्षा के वायदे ज्यादा स्पष्ट एवं मुखर हैं। इसका कारण पांच सालों का अनुभव माना जा सकता है। 

पहली बार जम्मू कश्मीर में नागरिकता का निर्धारण करने वाला संविधान का अनुच्छे 35A को खत्म करने का ऐलान है। जम्मू कश्मीर के दो प्रमुख दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस एवं पीडीपी की तीखी प्रतिकिया बता रही है कि उन्हें यह कितना नागवार गुजरा है।        35A को आराम से सरकार हटा सकती है। धारा 370 को खत्म करने जैसे शब्द नहीं हैं लेकिन कहा गया है कि हम जनसंघ से इस मुद्दे पर अपने रुख पर कायम हैं। रुख यही है कि इस धारा को खत्म किया जाए। 


वस्तुतः 370 हटाने के रास्ते जो संवैधानिक एवं राजनैतिक बाधायें हैं उनको ध्यान रखते हुए ही शायद अगले पांच वर्षों में उसे संविधान से बाहर करने का स्पष्ट ऐलान नहीं है। बावजूद इसके उसे खलनायक मानना और रुख पर कायम रहने का मतलब यही है कि जैसे मौका मिलेगा उस दिशा में कदम उठाया जाएगा। 


इस तरह भाजपा ने अपने संकल्प पत्र से देश के सामने साफ कर दिया है कि इस समय दो प्रकार की विचारधारा राष्ट्र के संदर्भ में हैं। एक का नेतृत्व भाजपा के हाथों हैं जिसका राष्ट्वाद संस्कृति से आच्छादित तो है, पर सुरक्षा उसके लिए सर्वोपरि है जिसमें कोई किंतु-परंतु नही। दूसरी ओर एक विचारधारा है जो सुरक्षा की बात करते हुए भी 370 कायम रखने के प्रति प्रतिबद्धता जताता है, देशद्रोह कानून खत्म करने का वायदा करता है, सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून अफस्पा को कमजोर करने का ऐलान कर रहा है, जम्मू कश्मीर में इसकी समीक्षा का वचन देता है तथा सुरक्षा बलों की संख्या कम करने को प्राथमिकता घोषित करता है।


वह सभी पक्षों से बिना शर्त बातचीत को अपनी नीति बता रहा है। सभी पक्षों में अलगाववादी एवं मजहबी कट्टरपंथी तो है हीं, पता नहीं इसमें हिंसक तत्व भी शामिल हों। ऐसे दो विकल्पों में से एक विकल्प का चयन देश को करना है। 


लंबे समय बाद भाजपा का अपने मूल मुद्दों पर इतने मुखर घोषणा पत्र आया है। इसमें नागरिकता कानून को हर हाल में बनाने की बात है तो तलाक कानून को भी। 


ध्यान रखिए, नागरिकता कानून का पूर्वोत्तर में काफी विरोध हुआ था। उससे भाजपा के घटक दल भी एक समय नाराज हो गए थे। इस घोषणा का अर्थ है कि भाजपा राजनीतिक जोखिम उठाते हुए भी पड़ोसी देश से पीड़ित होकर आने वाले हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, जैन और ईसाईयों को नागरिकता देने के अपने स्टैंड पर कायम है। 

इसे हिन्दुत्व का नाम भी दिया जा रहा है। कम से कम यह इसके राष्ट्रवाद की विचारधारा का विस्तार तो है ही। सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण एवं संवर्धन का स्वर भी इसमें है। 

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए रास्ता प्रशस्त करने को लेकर इस बार पिछले वर्षों की तुलना में ज्यादा स्पष्टता है। इसके लिए संविधान के तहत सभी मान्य कदम उठाने की बात है। यह प्रश्न किया जा सकता है कि भाजपा ने पांच वर्षों में जब अयोध्या पर एक भी कदम नहीं उठाया तो आगे उस पर कैसे विश्वास किया जाए? आखिर मंदिर समर्थकों के सामने एकमात्र पार्टी भाजपा ही तो है जो खुलकर अपने घोषणा पत्र में इसे जगह दे रही है। दूसरे पक्ष में तो किसी दल में  यह कहने का साहस भी नहीं है। दूसरे, पिछले छः महीने में भाजपा ने अपने मुद्दों पर जिस तरह मुखर हुई है उससे उम्मीद बंधती है कि अगर यह सत्ता में आई तो जरुर काम करेगी। 

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने वक्तव्य में कहा भी कि कुछ मूल एजेंडा पर काम करने से कुछ लोगों को तकलीफ भी होती है। यानी सत्ता में लौटने के बाद अपने एजेडे पर काम करने में वे इसका विचार नहीं करेंगे कौन लोग विरोध में खड़े हैं। वे विरोध करेंगे ही यह मानकर सरकार चलेगी। 

भाजपा ने स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने यानी 2022 तक के लिए भी खुद संकल्प लिया है। 75 लक्ष्य 75 कदमों के रुप में सामाजिक-आर्थिक विकास का जो समयबद्ध और व्याख्यायित लक्ष्य तय किया गया है अगर वाकई उस दिशा में काम हुआ तो अगले तीन साल बाद हमें आज की तुलना में ज्यादा बेहतर सामाजिक-आर्थिक रुप से विकसित तथा बढ़े हुए आत्मविश्वास का भारत मिलेगा। 

उदाहरण के रुप में कुछ विन्दुओं पर नजर दौड़ा सकते हैं।
1. किसानों की  आय दोगुना करने का लक्ष्य हासिल करना। 
2. 60 वर्ष की आयु के सभी लोगों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना। 
3. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत वर्षो से रुकी सभी परियोजनाओं को पूरा करना।
4. मूलधन के सामान्य के भुगतान की शर्त पर एक लाख कृषि कर्ज। 
5. भूमि रिकॉर्ड का डिजटलीकरण। 
6. प्रत्येक परिवार को पक्का मकान। 
7. सभी ग्रामीण परिवारो को एलपीजी गैस। 
8. सभी घरों का 100 प्रतिशत विद्युतीकरण। 
9. बचे हुए 10 प्रतिशत घरों में शौचालय बनवाकर प्रत्येक घर तक शौचालय का लक्ष्य पूरा करना। 
10. सभी घरों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना। 
11. शहरों और गांवों में 100 प्रतिशत कचरा संग्रह सुनिश्चित करना। 
12. बुनियादी ढांचे का तीव्र विस्तार। 
13.115 गीगावाट नवीकरणीय उर्जा क्षमता तक पहुंचना। 
14. रेलवे को पूरी तरह ब्रोडगेज में परिवर्तन करना। 
15.रेलवे का सम्पूर्ण  विद्युतीकरण भी। 
16.आयुष्मान भारत के तहत प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र एवं वेलनेस केन्द्रों का व्यापक विस्तार। गरीबों को दरवाजे पर ही गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सुनिश्चित करना। 
17.  प्रशिक्षित डॉक्टर जनसंख्या के बीच का अनुपात 1:14 कर देना। 
18. कुपोषण में भारी कमी। 
19. प्रत्येक व्यक्ति को पांच किलोमीटर के अंदर बैंक उपलब्ध कराना।
20. सम्पूर्ण डिजिटाइजेशन। 

ये सारे कार्य समयबद्ध यानी 2022 तक पूरा करने का संकल्प है तो मान लीजिए शत-प्रतिशत नहीं हुआ तब भी जितना हो जाएगा वह नए भारत के निर्माण की दिशा में सशक्त रुप से आगे बढ़ना ही होगा। प्रधानमंत्री ने स्वयं कहा कि हमारा संकल्प 2019 से 2024 तक के लिए है लेकिन हम 2022 तक का लक्ष्य बनाकर अंतरिम मूल्यांकन की भी जगह दे रहे हैं। एक साथ समय सीमा लगाते हुए इतनी उपलब्धियां हासिल करने का संकल्प साहस की ही बात है। नरेन्द्र मोदी को पता है नहीं हुआ तो विरोधी उनका जीना मुहाल कर देंगे।
 
इसमें और भी बातें हैं जो आर्थिक एवं सामाजिक विकास को ताकत देंगे। इसमें अगले पांच वर्षो में कृषि क्षेत्र में 25 लाख करोड़ रुपया तथा बुनियादी ढांचे में एक लाख करोड़ रुपया का निवेश। 

लक्ष्य सीधा है। कृषि, ग्रामीण विकास से लेकर शहरी क्षेत्रों के विकास तथा उद्योगों एवं कारोबार को बढ़ावा देने वाले सभी तरह की बुनियादी ढांचा उपलब्ध करा देना। गांव पूरी तरह सड़कों से जुड़ जाएं, सिंचाई उपलब्ध हों, कृषि से संबंधित उद्योगों को मध्यम एवं लघु उद्योग के अंदर बढ़ाया जाए, इसके लिए कौशल बढ़ाने का योजनाबद्ध कार्य हो तो अगले पांच वर्ष में भारत काफी हद तक बदल सकता है। इसलिए आठ प्रतिशत विकास दर तथा निर्यात दोगुणा करने का लक्ष्य अव्यवाहारिक नहीं है। 


कारोबार रैंकिंग में प्रथम 20 देशों में आने का निवेशकों पर कितना बड़ा असर होता है यह हम सब जानते हैं। किसानों के लिए क्रेडिट कार्ड से एक लाख तक का कर्ज पांच वर्ष तक शून्य प्रतिशत ब्याज पर मिलेगा। सीमांत किसानों और छोटे दुकानदारों को पेंशन की सुविधा देने का वायदा भी महत्वपूर्ण है। 

सरकार ने पहले असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए पेंशन योजना आरंभ की है। यह योजना उसी का विस्तार माना जा सकता है। इसका व्यावहारिक रास्ता बजट में आएगा। व्यापार को सुगम करने के लिए एक प्रभावी राष्ट्रीय व्यापारिक आयोग के गठन से बहुत पुरानी मांग पूरी होगी। अब व्यापारियों को अपनी मांग या शिकायत आदि के लिए एक आयोग उपलब्ध होगा। 

विकास में व्यक्तियों के बीच तथा क्षेत्रों के बीच कायम असंतुलन को दूर करने का भी संकल्प लिया गया है। मोदी सरकार पूरब के राज्यों को दक्षिण के समान विकास के धरातल पर लाने के लिए पहले से काम कर रही है। सत्ता में आने के बाद उस और तीव्र किया जाएगा। समाज के सबसे निचले स्तर के व्यक्ति के लिए यदि विकास का समावेशी होना जरुरी है तो क्षेत्रों पर भी यह सिद्धांत लागू होता है। 

बहरहाल,कुल मिलाकर हम भाजपा के संकल्प पत्र को अपनी पहचान कायम रखते हुए राष्ट्र के समग्र उत्थान का एक व्यापक विजन का व्यावहारिक रुपांतरण कह सकते हैं। कम से कम भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष को प्रेरणा लेने के महत्वपूर्ण अवसर के रुप में सामने रखा तो। प्रधानमंत्री ने स्वयं कहा कि सैकड़ों वर्ष की गुलामी में संघर्ष करने  वालों ने आजाद भारत का जो लक्ष्य निर्धारित किया, जो सपना देखा उनको पूरा करने की दिशा में हम काम करेंगे। 


हम निभायेंगे के नाम से अपना घोषणा पत्र बनाते समय कांग्रेस पार्टी को स्वतंत्रता के 75 वर्ष की महत्ता का भान नहीं हुआ। इस मायने में भी हम भाजपा के संकल्प पत्र को वर्तमान राजनीति में एकदम अलग सोच वाला कह सकते हैं। 

दूसरे, प्रधानमंत्री ने अपने प्राक्कथन में स्वतंत्रता के 100 वें वर्ष यानी 2047 के भारत की बात की है। उन्होंने अपने संबोधन में कहा भी कि हमारा संकल्प पत्र 2024 तक का है लेकिन इसमें 2047 तक के भारत के लक्ष्य को आधार देने का विचार शामिल है। इतनी कल्पना करने का माद्दा तो आज न किसी दूसरे दल में दिखता है, न किसी नेता में। तो अब संकल्प पत्र हमारे सामने है। इसके आधार पर हमें मत बनाना है।

अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं)