आप सोच रहे होंगे कि श्रीमद्भगवद गीता प्रेम और रिश्तों पर क्या बता सकती है। कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान दिया था। उसमें प्रेम और रिश्तों पर मूल्यवान बातें बताई थीं।
भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो कुछ भी करो, लालच, अहंकार, वासना, ईर्ष्या से नहीं, बल्कि प्रेम, करुणा, विनम्रता और भक्ति से करो। सफलता के लिए पूरी तरह समर्पण की जरुरत होती है।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि सच्चा प्रेम केवल देने से बनता है, बिना किसी अपेक्षा या खाली भाव के। मतलब आसक्ति रहित प्रेम ही शुद्ध और दिव्य होता है। उसमें कुछ पाने की इच्छा नहीं होती।
भगवान कृष्ण का कहना है कि प्रेम और भक्ति के माध्यम से ही ईश्वर को पाया जा सकता है। मतलब खुद को पूर्ण रूप से उच्च शक्ति को सौंपकर प्रेम का अनुभव करें।
गीता के अनुसार, सात्विक कर्म वह है जो बिना आसक्ति और पुरस्कार की इच्छा के किया जाए। इसका अर्थ होता है कि प्रेम और भक्ति के साथ कर्म करें। इससे कर्म सात्विक बन जाता है।
गीता के अनुसार, दान या हेल्प करने से से जीवन का व्यापक दृष्टिकोण मिलता है। बिना कुछ पाने की अपेक्षा किए, दान और उदारता से प्रेम फैलता है।
भगवान कृष्ण कहते हैं कि प्रेम के माध्यम से आप मुझसे जीत सकते हैं, और मैं खुशी से जीत जाऊँगा। प्रेम फैलाकर और विश्वास जीतकर, आप लोगों को अपने विचारों की ओर आकर्षित कर सकते हैं।
गीता के अनुसार, मनुष्य जन्म धन्य है, क्योंकि यह सच्चे ज्ञान और शुद्ध प्रेम का अनुभव प्रदान करता है। बिना शर्त प्यार और सहानुभूति के साथ जीवन जीने का प्रयास करें।