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1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने हवा महल निर्माण का करवाया था।
हवा महल रानियों के लिए बनवाया गया था, झरोखे और खिड़कियों से रानियां शहर के नीचे हो रहे इवेंट को देखती थी ।
हवा महल का नाम यहां की 5 वीं मंजिल के नाम पर रखा गया है, क्योंकि 5 वीं मंजिल को हवा मंदिर के नाम से जाना जाता है।
ठोस नींव की कमी के कारण यह घुमावदार और 87 डिग्री के कोण पर झुकी हुई है।
गर्मियों में जयपुर का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है लेकिन हवा महल की 953 छोटी खिड़कियों से आने वाली हवा इस महल को ठंडा रखती है।
हवा महल में चढ़ने के लिए सीढ़ियां नहीं हैं, रैंप के जरिए हर एक मंजिल तक पहुंच सकते हैं।
हवा महल दुनिया के गगनचुंबी इमारतों की तुलना में उतना लंबा नहीं है, लेकिन इसे बिना किसी नींव के दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों में से एक माना जाता है।
हवा महल में रंग-बिरंगे शीशे लगे हुए हैं जो कि रात को चांद की रोशनी में बहुत ही खूबसूरत नजर आते हैं।