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ईद में डाइनिंग टेबल की सिग्नेचर डिश होती है सेवईं। जो मेवे और खोये से बनती है लेकिन क्या आपको पता है की ये सेवईं तैयार कैसी की जाती है। चलिए बताते हैं कैसे तैयार होती है सेवईं।
पुराने लखनऊ के बलागंज, मौलवी गंज और अमीनाबाद में सेवईं के कारखाने हैं जहां सेवईं बनने का पूरा प्रोसेस एक दिलचस्प सफ़र रहा। दरअसल सेवईं मैदे से बनती है।
पहले इस मैदे को अच्छे से छाना जाता है फिर आटे की तरह गूंथा जाता है और फिर इसे मशीन से छाना जाता है। जिसमे ये लम्बे लम्बे आकर में परदे की साइज़ में निकलती हैं,
अब इन सिवइयों को अच्छी तरह से धूप में सुखाया जाता है। ये ध्यान रखा जाता है की सिवईं में ज़रा भी नमी न रहे।
जब ये सिवईं सूख जाती हैं तो इन्हें तह कर के अख़बार में लपेट कर बाज़ार में बेचने के लिए भेजा जाता है।
लखनऊ में सिवईं के कई बाजार हैं। कुछ जगहों पर सिर्फ ईद और बकरीद में सिवईं मिलती है लेकिन पुराने लखनऊ में सिवईं पूरे साल मिलती है।
अमीनाबाद में सेवईं बनाने वाले मोहम्मद कहते हैं रमजान का महीना हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस एक महीने में हमारी कम से कम 2 लाख तक की कमाई होती है जिससे काफी राहत मिलती है।
मोहम्मद ने बताया की सेवईं दो तरह की होती है, सादी सेवईं और बनारसी सेवईं बनारसी सेवईं लच्छे दार होती है जबकि सादी सेवईं सीधी परदे जैसी होती है।