बंगाल में ही क्यों मनाया जाता है सिंदूर खेला ? जानें कारण
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बंगाल में ही क्यों मनाया जाता है सिंदूर खेला ? जानें कारण

मंगलवार को विदा लेंगी मां दुर्गा
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मंगलवार को विदा लेंगी मां दुर्गा

नवमी के साथ मां दुर्गा के शारदीय नवरात्रि खत्म हो गए हैं। मां दुर्गा मंगलवार को विदा लेंगी। विसर्जन से पहले सिंदूर खेला की रस्म होगी लेकिन क्या आप जानते है कि सिंदूर खेला क्या है?

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माता के विदाई लेने का जश्न
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माता के विदाई लेने का जश्न

दुर्गा विसर्जन पर बंगाल में सिंदूर खेला का रिवाज है। यहां मूर्ति विसर्जन से पहले सुहागिन महिलाएं सिंदूर खेलती हैं। जिसे सिंदूर खेला के नाम से भी जाना जाता है।

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450 साल पुरानी है सिंदूर खेला की परंपरा
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450 साल पुरानी है सिंदूर खेला की परंपरा

मान्यताओं के अनुसार सिंदूर खेला की रस्म 450 साल से ज्यादा पुरानी है और इसकी शुरुआत बंगाल से हुई थी। इस रस्म में केवल सुहागिन शामिल होती हैं ना तलाकशुदा ना विधवा और न किन्नर।

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देश के अलग-अलग कोने में मनाया जाता है सिंदूर खेला

बंगाल के अलावा देश के अलग-अलग कोने में सिंदूर खेला की रस्म होती है। जो देखने में भव्य और पारंपरिक होती है लेकिन बंगाल में ये मुख्यता से खेली जाता है। 

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माता को लगता है इन चीजों का भोग

सिंदूर खेला से पहले माता को कोचुर,शाक,इलिश, पंता भात का भोग लगाया जाता है और भूल चूक होने पर माफी मांगी जाती है।

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10 दिन बाद मायके से वापस जाती हैं मां दुर्गा

मान्यता है कि शारदीय नवरात्रि पर माता 10 दिनों के लिए मायके जाती हैं। उनके वापस लौटने पर सिंदूर खेला मनाया जाता है। 

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