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देश को जूडो में पहला पैरालंपिक पदक दिलाने वाले कपिल परमार 80 प्रतिशत दृष्टिबाधित हैं।
कपिल आंखों की रोशनी जाने के बाद मां के साथ मजदूरी करते थे। मां दूसरे के खेतों में गेहूं काटती थी और वह उसका हाथ बंटाते थे।
पानी के पंप से करंट लगने के बाद वह 6 महीने तक कोमा की स्थिति में थे। पिता ने उनके जीवित बचने की उम्मीद छोड़ दी थी। पर मां ने हिम्मत नहीं हारी और उनकी सेवा करती रहीं।
कपिल ने घर चलाने के लिए चाय बेची, सब्जी का का ठेला भी लगाया।
कपिल ने जब जूडो शुरू किया तो गांव वाले ताने मारने लगे कि वह कैसे खेलेगा, पर उन्होंने अपना गेम जारी रखा।
कपिल को सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती थी। जब वह राष्ट्रमंडल चैंपियन बन गए, पर कोई उन्हें अपनी एकेडमी में नही रखना चाहता था। सबको लगता था कहीं चोट लगने के बाद यह गले न पड़ जाए।
जूडो कोच मुनव्वर अंजार ने उनका दर्द समझा। उन्होंने ब्लाइंड जूडो पैरा एसोसिएशन का गठन किया। उन्हीं से ट्रेनिंग लेकर कपिल ने पैरालंपिक में गोल्ड जीता।