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मां के गर्भ में क्या सोचता है शिशु? जान जाएंगे तो दिमाग चकरा जाएगा

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14 अक्टूबर तक रहेगा श्राद्ध पक्ष

श्राद्ध पक्ष 14 अक्टूबर तक रहेगा। श्राद्ध से जुड़ी कईं बातें गरुड़ पुराण में बताई गई हैं। इस ग्रंथ में ये भी बताया गया है कि जब शिशु मां के गर्भ में होता है तो वह क्या-क्या सोचता है…
 

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क्या लिखा है गरुड़ पुराण में?

गरुड़ पुराण के अनुसार, जब गर्भ में पल रहा शिशु पांच महीने का हो जाता है तो उसे भूख-प्यास लगने लगती है। माता द्वारा खाए गए अन्न आदि चीजों से वह शिशु बढ़ने लगता है।

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गर्भ में कष्ट भोगता है शिशु

गरुड़ पुराण के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान माता जो भी कड़वा, तीखा, रूखा, कसैला आदि भोजन करती है, उसके स्पर्श होने से शिशु के कोमल अंगों को बहुत कष्ट होता है।

 

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शिशु हिल भी नहीं पाता

जब शिशु का मस्तक नीचे की ओर तथा पैर ऊपर की ओर हो जाते हैं, तो वह इधर-उधर हिल नहीं सकता। पिंजरे में रूके हुआ पक्षी की तरह शिशु माता के गर्भ में दु:ख से रहता है। 

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भगवान का स्मरण करता है

जब गर्भ का शिशु सात महीने का हो जाता है तो वह सोचता है कि ‘इस गर्भ से बाहर जाकर मैं ईश्वर को भूल जाऊंगा। ऐसा सोचकर वह दु:खी होता है और गर्भ में घूमने की कोशिश करता है।
 
 

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मुक्ति की रखता है इच्छा

गरुड़ पुराण के अनुसार, 7 माह का गर्भस्थ शिशु भगवान विष्णु का मन ही मन ध्यान करता है और सोचता है कि संसार में जाकर मैं ऐसे कर्म करूंगा जिससे कि मुझे इस बार मुक्ति प्राप्त हो सके।
 

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सोचता है ये बातें भी

गर्भ में पल रहा शिशु भगवान से कहता है कि ‘मैं इस गर्भ से अलग नहीं होना चाहता क्योंकि संसार में पापकर्म करने पड़ते हैं, जिससे नरक मिलता हैं। मैं आपकी शरण में ही रहना चाहता हूं।’

 

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जन्म के समय इसलिए रोता है

गरुड़ पुराण के अनुसार, इस प्रकार गर्भ में शिशु नौ महीने तक भगवान की स्तुति करता है। जैसे ही शिशु गर्भ से अलग होता है, वह ज्ञान रहित हो जाता है, इसी कारण जन्म के समय वह रोता है।
 

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