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आजादी के 77 साल पूरे होने पर देश अमृत महोत्सव मना रहा है। ऐसे में आज हम आपको उन वीर वीरांगनाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने आजादी में अपना योगदान दिया।
जब भी महिलाओं की बात होती है तो वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई का नाम जरूर आता है। 1857 में स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने अप्रतिम शौर्य से अंग्रेजों के दांत खट्टे किए।
विजय लक्ष्मी पंडित ने भी आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया सविनय अवज्ञा आंदोलन का हिस्सा बनने के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा। भारत के इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं।
सुचेता कृपलानी ने महात्मा गांधी संग कार्य किया था। आजादी के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य की मुख्यमंत्री चुना गया।
सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला टीचर थीं जिन्होंने महिलाओं के उत्थान में काम किया इसके साथ ही वह भारत के नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता, समाज सुधारक और मराठी कवित्री भी थीं।
सरोजनी नायडू स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ही नहीं बहुत अच्छी कवियत्री भी थीं। उन्होंने खिलाफत आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ली और अंग्रेजों को भारत से निकलने में अहम योगदान दिया।
लक्ष्मी सहगल पेशे से डॉक्टर थीं लेकिन वह सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं। वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अटूट अनुयायी थीं। 1998 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मान दिया गया था।
महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी ने आजादी की लड़ाई में गांधीजी के मना करने के बाद भी जेल जाने और संघर्ष में शिरकत करने का निर्णय लिया।
जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू लौह स्त्री के तौर पर जानी जाती हैं, उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ भूख हड़ताल की और असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
दुर्गाबाई देशमुख महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थी, उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और भारत की आजादी में वकील, सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अहम भूमिका निभाई।
अरुणा आसफ अली कोने एक कार्यकर्ता के नाते नमक सत्याग्रह में भाग लिया। उन्हें 1998 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।