Utility News
अनिल अंबानी ने 1983 में रिलायंस से जुड़कर अपना करियर शुरू किया।
2002 में धीरूभाई अंबानी के निधन के बाद रिलायंस का बंटवारा हुआ। उन्होंने कोई वसीयत नहीं बनाई थी। मुकेश अंबानी रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन और अनिल अंबानी एमडी बने।
2005 में हुए बंटवारे के समय अनिल अंबानी के पास मुकेश अंबानी से ज्यादा संपत्ति थी। 2006 में वह दुनिया के छठें सबसे अमीर आदमी थे। मुकेश अंबानी से 550 करोड़ ज्यादा संपत्ति थी।
अनिल अंबानी के पास बैकअप प्लान की कमी थी, जिससे कंपनियों की हालत खराब होती गई। बंटवारे में उन्हें टेलीकॉम, एनर्जी और फाइनेंस बिजनेस मिले थे। फायदे के बजाए नुकसान होता गया।
अनिल अंबानी ने टेलीकॉम सेक्टर में CDMA टेक्नोलॉजी पर दांव लगाया, लेकिन भविष्य LTE बेस्ड 4G में था। मतलब कम्युनिकेशंस बिजनेस में रहने के बावजूद वह तकनीकी बदलावों को नहीं समझ पाएं।
बिजनेस रणनीति बदलने में देरी की, जिससे नुकसान बढ़ता गया। जिन प्रोजेक्ट्स में इंवेस्ट कर रहे थे। उनमें रिटर्न न के बराबर था। फिर भी समय से स्ट्रेटजी नहीं बदली। कर्ज बढ़ता गया।
एक कारोबार में फोकस न करके नए-नए प्रोजेक्ट्स में निवेश। वह एक बिजनेस शुरू करते और दूसरे कारोबार में शिफ्ट करते रहें। कॉस्टिंग बढ़ी। कर्ज बढ़ा। बिकने के कगार पर पहुंची कंपनियां।
अनिल अंबानी ने बड़े ऐलान किए, लेकिन उन पर अमल नहीं हो सका। कर्ज लेने में कमी नहीं की। रिडक्शन प्लान पर काम नहीं।
SEBI ने अनिल अंबानी को 5 साल के लिए बैन कर दिया और 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया।
महत्वाकांक्षा के चक्कर में बिना स्ट्रेटजी और प्रतिस्पर्धा पर गौर किए बिजनेस शुरू किया। 2008 की ग्लोबल मंदी में चढ़े कर्ज ने दोबारा संभलने का मौका नहीं दिया।