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भक्ति कैसे करें? समझ लें प्रेमानंद महाराज की ये बात

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भक्ति का अर्थ

प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि भक्ति केवल बाहरी चिन्हों, जैसे तिलक लगाना या कंठी बांधना, तक सीमित नहीं है। असली भक्ति का मतलब है आंतरिक श्रद्धा और समर्पण।
 

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परिवार की सहमति

वह कहते हैं कि परिवार के सदस्य जब राजी हों, तब ही वृंदावन जाएं और दर्शन करें। 

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अकेले वृंदावन आने की सलाह नहीं

उन्होंने कहा कि आप छिपकर वृंदावन आएं। कोई घटना घट जाए। अकेले आने के लिए हम कभी भी सलाह नहीं देंगे।

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ऐसी भक्ति नहीं जो रोज कलह कराए

वह कहते हैं कि बाहरी चिन्ह तब तक न धारण करें। जब तक परिवार बाहरी चिन्हों को स्वीकार न करे। आप पूरा तिलक और रज लगाएं। आपके परिवारजन विरोध करें। ऐसी भक्ति क्या जो रोज कलह कराए।

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आंतरिक श्रद्धा बढ़ाएं

वह कहते हैं कि हमें चाहिए कि पहले हम अपनी श्रद्धा पुष्ट करें। अंदर ही अंदर भजन का अभ्यास करें। नाम जप करें।

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भक्ति का सही मार्ग

वह कहते हैं कि विरोध करने वाले हमारे परिवार के पूज्य जन हैं। हमें उनका चरण छूना चाहिए। हमें ऐसा दिखावा करना चाहिए कि हम उनका बहुत आदर करते हैं। उनके विरोध से कोई फर्क नहीं।
 

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