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पेजर साधारण रेडियो डिवाइसेस होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, इसमें छुपाए गए विस्फोटकों को RFID जैसी तकनीक से दूर से ट्रिगर किया गया, जो आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक युद्ध का हिस्सा है।
यह पहला मौका है जब पेजर ब्लास्ट के लिए इस्तेमाल किए गए। इससे पहले मिसाइल सिस्टम में इजरायल ने स्टक्सनेट सॉफ्टवेयर का उपयोग किया था, लेकिन पेजर ब्लास्ट पहली बार हुआ है।
हिजबुल्लाह के लड़ाके पेजर का उपयोग करते हैं क्योंकि ये स्मार्टफोन से अधिक सुरक्षित माने जाते हैं। इनमें मोटोरोला LX2 और गोल्ड अपोलो AR924 जैसे पेजर्स शामिल हैं।
1980 के दशक से ही हिजबुल्लाह ने पेजर्स और फाइबर नेटवर्क जैसी पुरानी तकनीकों का उपयोग करना शुरू किया, ताकि इनका इंटरसेप्शन न हो सके।
इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और इंसानी खुफिया नेटवर्क की मदद से पेजर सिस्टम में घुसपैठ की और विस्फोटक तैयार किए।
इजरायल ने इंसानी खुफिया नेटवर्क और संचार की निगरानी करके पेजर सप्लाई चेन को ट्रैक किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये हिजबुल्लाह के लड़ाकों के पास पहुंचे।
इजरायल ने हिजबुल्लाह के संचार नेटवर्क का गहन अध्ययन किया और सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले पेजर्स को टारगेट किया।
मोबाइल फोन की ट्रैकिंग आसान होती है, इसलिए हिजबुल्लाह ने सुरक्षित संचार के लिए पेजर को प्राथमिकता दी, जो ट्रैक और हैक करना कठिन होता है।
पेजर्स जैसे यंत्रों में विस्फोटक छिपाकर उन्हें दूर से ट्रिगर किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए बेहद जटिल योजना और सही जानकारी की जरूरत होती है।
आतंकवादी समूहों ने कई बार मोबाइल का इस्तेमाल हमलों के लिए किया है, लेकिन मोसाद जैसी खुफिया एजेंसी द्वारा पेजर अटैक एक अनोखी घटना है।