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प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से शुरू होगा महाकुंभ। यह 12 वर्षों में एक बार आयोजित होता है। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान का विशेष महत्व।
मान्यता है कि कुंभ स्नान से पापों का नाश होता है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए कुंभ स्नान बेहद आवश्यक। धर्म, अध्यात्म और संस्कृति का अनूठा संगम है महाकुंभ।
महाकुंभ में सबसे पहले नागा साधु स्नान करते हैं। इसे ‘प्रथम स्नान अधिकार’ कहा जाता है। नागा साधुओं की उपस्थिति शाही स्नान को खास बनाती है।
नागा साधु धर्म और समाज की रक्षा के लिए जाने जाते हैं। वे नग्न रहते हैं और शरीर पर भस्म लगाते हैं। उनकी कठिन तपस्या और संयम कुंभ के महत्व को बढ़ाते हैं।
नागा साधु सबसे पहले शाही स्नान करते हैं। इसके बाद अन्य साधु-संत और प्रमुख अखाड़े स्नान करते हैं। नागा साधुओं के स्नान के बाद श्रद्धालु और पर्यटक संगम में आस्था की डुबकी लगाते हैं।
कुंभ स्नान से आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है। पूरे जीवन में एक बार कुंभ स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। यह स्नान आत्मा को शुद्ध कर मोक्ष की ओर ले जाता है।