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एक भक्त ने प्रेमानंद महाराज से सवाल पूछा कि श्राद्ध कर्म के अलावा कोई और भी ऐसा काम है। जिनके करने पर पितृ प्रसन्न होंगे और उनकी कृपा प्राप्त होगी।
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि श्राद्ध कर्म से सिर्फ पितरों का पोषण होता है। जैसे हम यहां से पिंड दान-पितृ तर्पण करते हैं तो वह जल और वस्तु उनको पोषण देती है। लेकिन प्रसन्नता नहीं।
वह कहते हैं कि पितरों को भजन करने से प्रसन्नता होती है। जितना हम भगवान का नाम जप करके पितरों को देते हैं। उनकी उतनी ही उन्नति होती है।
प्रेमानंद जी कहते हैं कि पितरों की उन्नति धर्मानुष्ठान से होती है। भागवत, गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करा दिया। खूब नाम कीर्तन और जप करके पितरों को दिया। उससे उनकी उन्नति होगी।
वह कहते हैं कि खोया के लड्डू, तिल और पानी से पितरों का पोषण होगा। जो हम देवताओं और पितरों को अर्पित करते हैं। वह उनको प्राप्त होगा। यह पोषण की वस्तु है। इससे उनकी उन्नति नहीं होगी।
यदि पितृ लोक से परमात्मा लोक में जाना है तो उसमें भागवतिक अनुष्ठान काम करेगा। वह अपने पितरों को दिए जाते हैं। जिससे उनका परम मंगल होता है।