नौकरी छोड़कर शुरू की तैयारी, खाने में कटौती करके किताबें खरीदी, नतीजा- UPSC 2020 में टॉपर बने सुमित कुमार

By Team MyNation  |  First Published Dec 29, 2021, 12:05 PM IST

Asianetnews Hindi संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) में सिलेक्ट हुए 100 कैंडिडेट्स की सक्सेज जर्नी (Success Journey) पर एक सीरीज चला रहा है। इसी कड़ी में हमने सुमित कुमार से बातचीत की। आइए जानते हैं उनकी सक्सेज जर्नी।
 

करियर डेस्क. सुमित कुमार पांडेय (Sumit Kumar Pandey) की UPSC 2020 में 337वीं रैंक आई है। उनकी पढ़ाई के दौरान फाइनेंसियल समस्याएं कम नहीं थी। पढ़ाई के दौरान टिफिन में कटौती करके किताबें खरीदते थे। कठिन परिस्थितियों के बावजूद उनका आत्मविश्वास डिगा नहीं। ग्रेजुएशन के बाद पहले उन्होंने नौकरी लेकिन उनका फोकस UPSC था। नौकरी छोड़कर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी और तीसरे प्रयास में वह आईएएस बन गए। संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) के नतीजे 24 सितंबर, 2021 को जारी किए गए। फाइनल रिजल्ट (Final Result) में कुल 761 कैंडिडेट्स को चुना गया। Asianetnews Hindi संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2020) में सिलेक्ट हुए 100 कैंडिडेट्स की सक्सेज जर्नी (Success Journey) पर एक सीरीज चला रहा है। इसी कड़ी में हमने सुमित कुमार से बातचीत की। आइए जानते हैं उनकी सक्सेज जर्नी।

मुश्किल दौर में की पढ़ाई
गोपालगंज, बिहार के जगीरदारी बगहा गांव निवासी सुमित के जीवन में फाइनेंसियल स्ट्रगल रहा। भोरे प्रखंड स्थित गांधी स्मारक विद्यालय से दसवीं कक्षा तक पढ़ाई की। सेंट्रल हिंदू स्कूल वाराणसी से इंटरमीडिएट के दौरान उनके कमरे का किराया 400 रूपये प्रति माह था। घर से हर माह मिलने वाली धनराशि नाकाफी साबित होती थी। टिफिन महंगा होता था। ऐसे में कभी-कभी खाने में कटौती कर किताबें खरीदते थे। जब आईआईटी में उन्हें स्कालरशिप मिली तो राह थोड़ी आसान हुई। उन्होंने माइनिंग इंजीनियरिंग से बीटेक किया। 2017 में उनका ग्रेजुएशन पूरा हुआ। कैम्पस प्लेसमेंट के जरिए जॉब मिली। उन्होंने कुछ महीनों तक एक निजी कम्पनी में नौकरी की। वर्ष 2018 फरवरी से उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू की। उस वर्ष उनका प्रीलिम्स नहीं निकला था। वर्ष 2019 की परीक्षा में भी उन्हें सफलता मिली थी। तब उन्हें आईआरएस (कस्टम) कैटेगरी मिली।

जरूरी नहीं कि आपकी समझ यूपीएससी के अनुरूप हो
सुमित कहते हैं कि अब पीछे देखते हैं तो लगता है कि सब ठीक है। जब हम प्रक्रिया में होते हैं तो उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। निगेटिविटी भी होती है। बीच-बीच में निराशा होती है कि चयन होगा या नहीं। जब टेस्ट सीरिज में कम मार्क्स आते हैं तो भी ऐसा ही लगता था। इस बार परीक्षा में लग रहा था कि जीएस का पेपर खराब गया है। ऐसी स्थिति में उस परीक्षा के बाद शेष परीक्षाओं पर भी असर पड़ता है। ऐसा लगता है कि यह पेपर खराब गया है तो चयन होगा ही नहीं, पर यह जरूरी नहीं है कि इस बारे में आपकी समझ यूपीएससी के अनुरूप हो। जब आपको निराशा हो तो आपके अंदर यह विश्वास होना चाहिए कि आपने यह जर्नी शुरू क्यों की थी।

कम उम्र में बड़ी लीडरशिप की भूमिका सिविल सर्विस का बड़ा आकर्षण
सुमित ने कॉलेज के समय ही तय कर लिया था कि उन्हें सिविल सर्विस में जाना है। उनका मानना है कि पढ़ाई के बाद कार्पोरेट सेक्टर में कई सारे करियर आपश्न होते हैं, जैसे-कैम्पस प्लेसमेंट लो और उसी जॉब में रहो। फिर एमबीए करने के बाद एडमिनिस्ट्रेटिव पद मिल जाते हैं। सैलरी वगैरह अच्छी हो जाती है। इन सबमें उनको सिविल सर्विस करियर का अच्छा अवसर लगा। इस सर्विस का सबसे बड़ा आकर्षण कम उम्र में बड़ी लीडरशिप की भूमिका और कार्यों में विविधता है। जैसे-एक आईएएस अफसर शिक्षा के क्षेत्र में भी काम करता है तो हेल्थ सेक्टर में भी अपनी भूमिका निभाता है। उसके काम का समाज पर सीधा असर पड़ता है। पहले उन्होंने सोचा था कि वह एक से दो साल तक प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करेंगे। पर नौकरी में काम के दौरान उन्होंने खुद से ही सवाल पूछा कि वह ये क्या कर रहे हैं? यदि वह अपना योगदान गवर्नमेंट सेक्टर में दें, तो ज्यादा ठीक रहेगा।

परिवार को देते हैं सफलता का श्रेय
सुमित अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार को देते हुए कहते हैं कि परिवार वालों का सपोर्ट रहता है तो मेंटल बैलेंस बना रहता है। वरना तैयारी मुश्किल हो जाती। उनके बड़े भाई अमित ने अपने छोटे भाईयों की पढ़ाई के लिए काफी त्याग किया। उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़कर काम शुरू कर दिया था। ताकि उससे कुछ पैसे आएं तो छोटे भाइयों की पढ़ाई जारी रह सके। दोस्तों का ग्रुप भी पढ़ाई में काफी सहायक रहा। मां सरस्वती देवी गृहिणी हैं। बड़े भाई अमित प्राइवेट जॉब करते हैं, जबकि दुर्गेश टीचर हैं। ममता देवी व सरिता देवी उनकी दो बहनें भी हैं।

मॉक टेस्ट से बोलचाल का प्रवाह होता है सही
पहली बार जब एस्पिरेंटस इंटरव्यू देने जाते हैं तो उन्होंने यह सुन रखा होता है कि बोर्ड में काफी अनुभवी लोग बैठे रहते हैं, इस वजह से नर्वसनेस सी फील आती है। प्रश्न काफी प्रासंगिक पूछे जाते हैं। यदि इंटरव्यू से पहले 7 से 8 मॉक टेस्ट दिए जाएं तो उससे बोलचाल का प्रवाह काफी सही हो जाता है। सुमित वर्ष 2019 में भी इंटरव्यू तक पहुंचे थे। इसलिए वह यूपीएससी 2020 के इंटरव्यू के दौरान सहज थे।

हार्डवर्क का कोई विकल्प नहीं
सुमित का मानना है कि हॉर्डवर्क का कोई विकल्प नहीं है। यह भी कहा जाता है कि प्रतिभा काम नहीं करती, मेहनत प्रतिभा को मात देती है। पढ़ाई में कंसिस्टेंसी होनी चाहिए। परीक्षा की डिमांड समझनी चाहिए। मेंस की परीक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। ऐंसर राइंटिग स्किल काफी महत्व रखती है। इसे अभ्यास करके डेवलप किया जा सकता है। डिमोटिवेशन आए तो मेंटल सपोर्ट बहुत जरूरी है। वह भी एक ऐसा मेंटल सपोर्टर होना चाहिए, जिसे यह भी फर्क नहीं पड़ता है कि परीक्षा क्लियर होगी या नहीं। फाइनेंसिलय कंडिशन ठीक नहीं है और आप घर से पैसा मांग रहे हैं, तो एक प्रेशर बनता है कि यह पैसा यूज कर रहे हैं, परीक्षा क्लियर होगी या नहीं। कोशिश करें कि कुछ दिन काम करके फाइनेंसियल प्राब्लम खुद से ही सिक्योर करें।

ब्लाइंडली किसी को फॉलो करना जरूरी नहीं
सुमित कहते हैं कि ब्लाइंडली किसी को फॉलो करना जरूरी नहीं है। हमें अपनी ताकत और कमजोरी को ध्यान में रखकर ही किसी प्लान को फॉलो करना चाहिए। जैसे यदि किसी ने कह दिया कि न्यूजपेपर पढ़ना जरूरी है तो इसका मतलब यह नहीं कि आप डेली तीन से चार घंटे अखबार ही पढ़ रहे हैं। परीक्षा की डिमांड समझना बहुत जरूरी है कि उसको कैसे अचीव किया जा रहा है। तैयारी के दौरान इसका आंकलन करते रहना होगा।

सोशल मीडिया से रहें दूर
सुमित का मानना है कि तैयारी के दौरान सोशल मीडिया का यूज कम होना चाहिए। व्हाटसएप की थोड़ी बहुत यूटिलिटी हो सकती है। उस पर कुछ ग्रुप बन जाते हैं, जिनसे पर स्टडी मैटेरियल मिलता है। कुछ ग्रुप पर डिस्कशन होता है जो परीक्षा से रिलेटेड प्रश्न होते हैं। बाकि सोशल मीडिया को नजरअंदाज ही करना चाहिए। यदि आप सोशल मीडिया पर रहेंगे तो आप देखेंगे कि आपके साथ के लोग क्या कर रहे हैं, वह कार्पोरेट में काम कर रहे हैं, पैसा कमा रहे हैं तो सोचेंगे कि आप क्या कर रहे हैं। इससे निराशा होती है।

बिना विश्वास के नहीं मिलती सफलता
सुमित का मानना है कि खुद पर विश्वास होना चाहिए। उसके बिना चीजें नहीं होती है। सबसे ज्यादा प्रश्न यही होता है कि सिविल सर्विस में आईआईटी से इतने ज्यादा लोगों का चयन क्यों होता है। इसका सबसे बड़ी वजह आत्मविश्वास है। जब आप एक प्रतियोगी परीक्षा क्लियर करते हो तो लगता है कि दूसरी परीक्षा भी क्लियर हो जाएगी। फिर आपके पीयर ग्रुप से  भी लोग इस परीक्षा को क्लियर करते हैं। आप देखते हैं कि हमारे जैसे लोग हैं, जो परीक्षा क्लियर कर रहे हैं तो मुझसे भी हो जाएगा। यह रूरल बैकग्राउंड वालों में नहीं हो पाता है। यदि हो जाता है तो सब आसान हो जाएगा। आत्मविश्वास के साथ हार्डवर्क करना है और कंसिस्टेंसी के साथ पढ़ना है।  

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