100 साल पुराना इतिहास है 'कोटा डोरिया साड़ी' का, कभी राजपूत के सर का ताज होती थी

By Kavish Aziz  |  First Published May 26, 2024, 2:05 PM IST

गर्मियों में कोटा डोरिया फैब्रिक की डिमांड बढ़ जाती है।  इसके कलर और वर्क में इतनी डीसेंसी होती है कि जो एक बार पहन लेता है वह बार-बार इसे ढूंढता है। इस सदी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कोटा के अलावा कहीं और नहीं बनती और इसे बनाने के लिए मशीन की जरूरत नहीं होती बल्कि यह हाथ से बनाया जाता है। 

लाइफस्टाइल डेस्क। गर्मियों में सबसे ज्यादा तलाश होती है कॉटन कपड़ों की। कॉटन के अलावा रेयॉन और कोटा डोरिया गर्मी में सबसे कंफर्टेबल फैब्रिक होते हैं। आमतौर पर आप सब ने कॉटन का इतिहास पढ़ा होगा लेकिन आज हम आपको कोटा डोरिया (Kota Doria Saree )के बारे में बताएंगे, क्योंकि कोटा डोरिया फैब्रिक की साड़ियां इन दिनों ट्रेंड में है और लोग काफी पसंद कर रहे हैं।

क्या है कोटा डोरिया साड़ी का इतिहास 

कोटा डोरिया साड़ी 17वीं शताब्दी में बनना शुरू हुई थी। इस साड़ी का इतिहास करीब 100 साल पुराना है । मुगल काल में मैसूर का एक परिवार कोटा के कैथून में आया था। इस परिवार ने कोटा डोरिया (History of Kota Doria Saree) साड़ी बनाने का काम शुरू किया था। धीरे-धीरे कोटा डोरिया भारत के इतिहास का हिस्सा बन गई ।इस साड़ी की अहमियत इसलिए भी है क्योंकि इसको बनाने में मशीन का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि हाथों से इसे बनाया जाता है। चूंकि यह साड़ियां कोटा में बनती हैं और डोरिया डोरी को कहा गया है जिसमें बहुत बारीकी से बुनाई करके साड़ी की एक-एक डोरी को सजाया जाता है। अपने काम और जगह को लेकर इसका नाम पड़ गया कोटा डोरिया।

राजपूतों के सर पर सजती थीं कोटा डोरिया 

कोटा डोरिया को लेकर एक और इतिहास है जिसमें यह कहा जाता है कि पहले इसे "कोटा मसूरिया" कहा जाता था क्योंकि यह कपड़ा मैसूर में तैयार होता था लेकिन जब मुगलों ने कोटा में अपना आशियाना बनाया तो मैसूर के कुछ बुनकर मुगलों की सेवा के साथ कोटा चले गए और वहां पर इस कपड़े की बुनाई करने लगे। उस जमाने में कोटा डोरिया कपड़े से राजपूत की पगड़ियां तैयार की जाती थी। धीरे-धीरे राजपूत का अंगरखा बनाए जाने लगा। आज बाजार में कोटा डोरिया का कुर्ता, साड़ी,लहंगा सब कुछ मौजूद है। कोटा डोरिया में चौकोर चेक पैटर्न होते हैं जिसे "खट" भी कहते हैं कपास और रेशम के धागों से मिलकर इनको बनाया जाता है। यह खट ही इस साड़ी की खासियत है।

 

कितने दिन में तैयार होती है एक साड़ी

कोटा डोरिया की साड़ियां बनने में 20 दिन लगते हैं क्योंकि इस सदी में कपास सिल्क सोने और चांदी के धागे का इस्तेमाल होता है इसलिए बहुत बारीकी से इस साड़ी को बनाया जाता है। बड़ी बात यह है की साड़ी को बनाने में मशीन का कोई इस्तेमाल नहीं होता। साड़ी की खासियत यह भी है कि इस पर हर तरह की डिजाइन बन सकती है इसमें पैच वर्क, एप्लिक, थ्रेड वर्क की डिजाइन एंब्रायडर्ड होती है और उसी के हिसाब से इन साड़ियों की कीमत तय होती है। 

लाइट शेड पसंद करने वालों के लिए बेस्ट होती है कोटा डोरिया

जिस तरह लखनऊ का चिकनकारी वर्क हर तरह के लाइट शेड में देखने को मिलता है ठीक वैसे ही कोटा डोरिया में सभी रंगों के लाइट शेड आपकी पसंद के मुताबिक मिल जाते हैं।  इनमें लेमन येलो, लाइट ब्लू, लाइम ग्रीन, लैवेंडर सब मौजूद होता है। पहले यह साड़ी सिर्फ कॉटन के धागों से बनाई जाती थी लेकिन अब इसमें चंदेरी और मूंगा का भी इस्तेमाल किए जाने लगा है। रिपोर्ट के अनुसार कोटा डोरिया साड़ी का सालाना कारोबार 70 से 80 करोड़ के लगभग होता है।  इस साड़ी के लॉयल और रेगुलर ग्राहकों की बात करें तो सबसे ज्यादा दक्षिण भारत में यह साड़ियां पसंद की जाती हैं। इस साड़ी की एक और खासियत होती है कि यह साड़ी बहुत हल्की होती है। बाजार में आपको कोटा डोरिया की साड़ी 500 से लेकर 5000 तक की मिल जाएगी। 

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