2 साल की उम्र में पिता का निधन हो गया। मां ने पाला। स्कूल में दौड़ते देख कोच की नजर पड़ी तो प्रतिभा में निखार आया। वेटलिफ्टर बन गईं। ओडिशा की रहने वाली प्रीतिस्मिता ने मात्र 15 साल की उम्र में इतिहास रच दिया।
नयी दिल्ली। ओडिशा के पिछड़े इलाके ढेंकनाल की रहने वाली प्रीतिस्मिता ने छोटी सी उम्र में देश का नाम रोशन किया है। पेरू की राजधानी लीमा में आयोजित विश्व युवा वेटलिफ्टिंग चैंम्पियनशिप में सिर्फ स्वर्ण पदक ही नहीं जीता, बल्कि एक नया वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया है। 40 किलो भार वर्ग में कुल 133 किलो वजन उठाया। क्लीन एंड जर्क में 75 किलो का वर्ल्ड रिकॉर्ड ध्वस्त किया। इस उपलब्धि के साथ प्रीतिस्मिता युवा वर्ग में विश्व कीर्तिमान बनाने वाली देश की पहली वेटलिफ्टर बन गई हैं। आइए जानते हैं उनकी सफलता की कहानी।
मां ने दिया पिता का प्यार
बचपन में ही प्रीतिस्मिता के सिर से पिता का साया उठ गया था। तब वह सिर्फ दो साल की थीं। एक तरफ परिवार पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा था तो दूसरी ओर अब मां के कंधों पर बच्चों को पालने की जिम्मेदारी आ पड़ी थी। मॉं ने अपनी दोनों बेटियों प्रीतिस्मिता और विदुस्मिता को पिता का भी प्यार दिया और ढेंकनाल के केंद्रीय विद्यालय में बच्चों का एडमिशन कराया।
स्कूल मीट में कोच की नजर पड़ी, बन गईं वेटलिफ्टर
दोनों बहनों की शिक्षा शुरू हुई। खेल में उनकी रूचि थी। एक बार दोनों बहने स्कूल मीट में दौड़ रही थीं। दोनों बहनें 100 और 400 मीटर दौड़ में पहला और दूसरा नम्बर हासिल कर रही थीं। उसी समय कोच गोपाल कृष्ण दास की नजर उन पर पड़ी। तभी उन्होंने दोनों बहनों को ट्रेनिंग देकर वेटलिफ्टर बनाने का निर्णय लिया। कोच ने उनकी मॉं जमुना देवी से बात की। हालांकि वह इस खेल को लेकर तैयार नहीं थीं कि उनकी बेटियां वजन उठाने वाला खेल खेलें। पर काफी समझाने के बाद वह तैयार हुईं। आपको बता दें कि विदुस्मिता भी राष्ट्रीय यूथ वेटलिफ्टिंग, खेलो इंडिया में पदक हासिल कर चुकी हैं।
सफलता के पीछे कठिन परिश्रम और अभ्यास
प्रीतिस्मिता की सफलता के पीछे कठिन परिश्रम है। अभ्यास और समर्पण की बदौलत उन्होंने दुनिया भर में ओडिशा का नाम रोशन किया है। ढेंकनाल के भारोत्तोलन उच्च प्रदर्शन केंद्र से ट्रेनिंग ले रही हैं। इस साल उन्होंने विश्व चैंपियनशिप के लिए तैयारी की थी। युवा ओलंपिक और राष्ट्रमंडल खेलों में सफलता उनका लक्ष्य था। वर्ल्ड रिकॉड बनाने के लिए वह कड़ी मेहनत कर रही थीं। कहते हैं कि जब लक्ष्य स्पष्ट हो तो रास्ते खुद ब खुद बन जाते हैं और प्रीतिस्मिता के मामले में भी यही हुआ।