नयी दिल्ली। झाड़ू घर की सफाई के काम में आता है। इसी झाड़ू ने एक परिवार की किस्मत बदल दी। कभी परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था। वही परिवार अब लाखो रुपये का कारोबार कर रहा है। हम बात कर रहे हैं मेरठ के राली चौहान गांव की सोनिका की। पति पेंटिंग का काम करते थे। महीने में कुछ दिन का ही काम मिल पाता था। ऐसी परिस्थिति में सोनिका ने झाड़ू बनाने का काम सीखा और घर पर ही झाड़ू बनाना शुरू कर दिया। डिमांड इतनी बढ़ी कि अब उसी झाड़ू ने उनकी गरीबी साफ कर दी है। आइए जानते हैं उनकी सक्सेस स्टोरी। 

झाड़ू बनाने की 6 दिन की ट्रेनिंग

सोनिका के हसबैंड की पेंटिंग से कमाई इतनी कम थी कि बच्चों को पढ़ाना और घर चलाना मुश्किल हो रहा था। सोनिका भी परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के बारे में सोचती थीं। उन्हें कहीं से झाड़ू से अच्छी कमाई की जानकारी मिली। परिवार की मंजूरी से उन्होंने झाड़ू बनाने की ट्रेनिंग शुरू कर दी। जेल चुंगी स्थित केनरा आरसेटी से 6 दिन की ट्रेनिंग मिली। अब काम शुरू करना चुनौती थी, क्योंकि उसके लिए पूंजी की आवश्यकता था। सोनिका ने 25 हजार रुपये उधार लिया और घर से ही झाड़ू बनाने का काम शुरू कर दिया।

दुकानदारों को पसंद आया उनका झाड़ू

सोनिका के बनाए झाड़ू का मार्केट में अच्छा रिस्पांस मिला। दुकानदारों को भी उनका प्रोडक्ट पंसद आया तो उनके झाड़ू की सेल बढ़ गई। सोनिका को झाड़ू बनाने का आर्डर मिलने लगा। अब उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर गांव की महिलाओं को जोड़ा और काम आगे बढ़ाया। यह काम इतना आसान भी नहीं था। काम के दौरान लोगों ने उनका मजाक भी उड़ाया। पर सोनिका ने लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया। वर्तमान में उनके साथ काम कर रही महिलाएं आत्मनिर्भर बन गई हैं।

कभी बाजार में बेचने जाती थी झाड़ू, अब ट्रक से सप्लाई

शुरूआती दिनों में सोनिका को बाजार में झाड़ू बेचने बाजार जाना पड़ता था। समय बदला तो अब उनका माल ट्रक से जाता है। उनके बनाए झाड़ूओं की दिल्ली में भी बिक्री होती है। सोनिका के पति भी काम में हाथ बंटाते हैं। वैसे सोनिका लागत निकालकर महीने में लगभग 50 हजार रुपये बचा लेती हैं। पर उनका कारोबार बढ़कर 10 से 12 लाख रुपये तक पहुंच चुका है। ट्रेंड वुमन्स को 800 से 1000 रुपये और अप्रशिक्षित महिलाओं को 400 से 500 रुपये का भुगतान करती हैं। सोनिका मेरठ के आसपास के ग्रामीणों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभरी हैं। आसपास के जिलों की महिलाओं को ट्रेनिंग भी देती हैं। उनकी कहानी बताती है कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। मेहनत और लगन के बल पर मंजिल पाई जा सकती है।

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