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मिठाइयों ने बदली 2 दोस्तों की जिंदगी, कभी करते थे नौकरी, अब कमा रहें 45 लाख-40 वुमेंस को रोजगार

Rajkumar Upadhyaya |  
Published : Aug 15, 2024, 11:01 PM ISTUpdated : Aug 15, 2024, 11:06 PM IST
मिठाइयों ने बदली 2 दोस्तों की जिंदगी, कभी करते थे नौकरी, अब कमा रहें 45 लाख-40 वुमेंस को रोजगार

सार

कोरोना महामारी में राशन बांटते वक्त आए आइडिया से शुरू हुआ 'मो पिठा' अब ट्रेडिशनल स्वीट्स का सफल स्टार्टअप बन चुका है। जानें कैसे मिठाइयों ने बदली 2 दोस्तों की जिंदगी?

नई दिल्‍ली। 'मिठाइयों ने बदली 2 दोस्तों की जिंदगी।' एकाएक यह सुनकर आप भी सरप्राइज होंगे। पर यह सच है। उड़ीसा के भुवनेश्वर के रहने वाले 2 दोस्तों सौम्य प्रधान और अरबिंद नायक की जिंदगी मिठाइयों ने ही बदल डाली। कभी नौकरी के सहारे जीवन की गाड़ी चला रहे थे। कोरोना महामारी में लोगों को राशन बांटते वक्त मिठाइयों का बिजनेस शुरू करने का आइडिया आया। यही उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट था। एक छोटे से आइडिया से शुरू हुआ काम अब बड़े बिजनेस में तब्दील हो चुका है। 45 लाख की सालाना कमाई है। 40 महिलाओं को रोजगार मिला है। 

कितनी खास हैं ये मिठाईयां?

दरअसल, कोरोना महामारी के वक्त अरविंद नायक एक कम्पनी में क्लस्टर मैनेजर और सौम्य प्रधान एक FMCG कंपनी में सेल्स ऑफिसर थे। जरूरतमंदों को राशन बांटते वक्त उन्होंने लोगों से बातचीत की तो पता चला कि स्थानीय लोगों को ट्रेडिशनल स्वी​ट्स यानी ओड़िया मिठाइयां काफी पसंद आती हैं। पर लोग क्वालिटी और हाईजीन को लेकर चिंतित रहते हैं। यदि मिठाइयों को बनाने में क्वलिटी के साथ हाइजीन का ख्याल रखा जाए तो लोग ऐसी मिठाइयों को पसंद करेंगे। 

पुरी के जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद में शामिल मिठाई

अब दोनों दोस्त ट्रेडिशनल स्वीट्स को लेकर आम लोगों के टेस्ट की नब्ज पकड़ चुके थे। बस, यहीं उन्होंने ट्रेडिशनल ओड़िया स्वीट्स का कारोबार शुरू करने का निर्णय लिया। साल 2021 में 'मो पिठा' स्टार्टअप की नींव रखी। दरअसल, 'पिठा' पुरी के जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनाई जाती है। महाप्रसाद में शामिल होती है। उत्सवों के मौके पर भी बनती हैं। अरविंद और सौम्य ने अपने स्टार्टटप का नाम विभिन्न फेस्टिवल से जुड़े उन्हीं स्वीट्स के नाम पर रखा। 

8 वुमेंस शेफ के साथ 'मो पिठा' की शुरुआत

उन्होंने काम शुरू करने के लिए ऐसी महिलाओं को अपने स्टार्टअप से जोड़ा, जो पारंपरिक मिठाइयां बनाने में कुशल थीं। ज्यादातर महिलाओं के परिवार की माली हालत कोविड महामारी की वजह से खराब हो गई थी। वे फाइनेंशियल क्राइसिस से जूझ रही थीं। घर-घर जाकर महिलाओं से बात की और 8 महिला वर्कर्स के साथ 'मो पिठा' की शुरुआत कर दी। सभी महिला शेफ 7 तरह की पारंपरिक मिठाइयां बनाने में माहिर थीं। उन मिठाइयों में एंडुरी, अरीसा, ककर आदि शामिल थे। साहिद नगर में पहला आउटलेट ओपेन किया। डेली 3 से 4 हजार रुपये की कमाई होने लगी। स्वीट्स की डिमांड बढ़ी तो आउटलेट की संख्या भी बढ़ी।

डेली 500 से 600 रुपये कमाती हैं महिलाएं

'मो पिठा' में 30 से 65 साल तक की वुमेंस शेफ के रूप में काम करती हैं। 20 से अधिक तरह की स्वीट्स बनाती हैं। उससे उनकी डेली 500 से 600 रुपये कमाई होती है। 10 वर्कर ऐसे हैं, जो 10 से 12 हजार रुपये मंथली सैलरी पर काम करते हैं। मौजूदा समय में 40 महिलाएं काम कर रही हैं। आपको बता दें कि उड़िया की पारंपरिक मिठाइयां बनाना आसान काम नहीं है। एक उदाहरण से समझिए। जैसे-'अरीसा' नाम की मिठाई बनाने में भुने हुए तिल का आटा, गुड़ और चावल के आटे का यूज होता है। इसी तरह 'ककर' नाम की मिठाई बनाने में काजू, किशमिश, नारियल, चीनी, सूजी, कद्दूकस किए हुए नारियल और अन्य चीजें मिलाकर बनाई जाती हैं। इतनी मेहनत कर ये महिलाएं लोगों के लिए स्वच्छ और क्वालिटी वाली ट्रेडिशनल मिठाइयां बना रही हैं। जिसे लोकल लेबल पर तारीफ मिल रही है। मतलब एक आइडिया ने दो दोस्तों का जीवन बदला ही। तीन दर्जन से ज्यादा महिलाओं को आत्मनिर्भर भी बनाया।

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