Success Story: सब्जी वाले की बेटी ने कैसे क्रैक की UPSC? पैसों की तंगी ऐसी कि मां को गिरवी रखने पड़े थे गहने 

By Rajkumar UpadhyayaFirst Published Jul 6, 2024, 8:06 PM IST
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UPSC Success Story: सब्जी बेचने वाले की बेटी ने यूपीएससी क्रैक किया तो परिवार की आंखों में आंसू आ गए। आर्थिक तंगी और तमाम मुश्किलों के बीच भी स्वाति राठौड़ ने हौसलों से उड़ान भरी।

UPSC Success Story: महाराष्ट्र के शोलापुर की स्वाति राठौड़ के पिता सब्जी बेचते थे और वह बड़ी होकर अफसर बनना चाहती थी। घर की माली हालत इतनी खराब थी कि पढ़ाई के लिए पैसे जुटाना भी मुश्किल था। ऐसी परिस्थितियों के बीच भी स्वाति ने हौसलों से उड़ान भरी। किस्मत ने भी कदम-कदम पर उनका इम्तिहान लिया। लगातार 5 साल असफलता मिली। यूपीएससी 2023 एग्जाम में 492वीं रैंक हासिल कर इतिहास रच दिया। उनकी कहानी एस्पिरेंट्स के लिए प्रेरणादायक है। 

सरकारी स्कूल से 12वीं तक पढ़ाई

शोलापुर के एक सरकारी स्कूल से 12वीं पास करने के बाद स्वाति ने भूगोल में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली। बचपन से ही वह अपने परिवार को आर्थिक तंगी में जूझते हुए देख रही थीं। परिवार को संघर्ष भरी जिंदगी से बाहर निकालने के लिए उन्होंने सिविल सर्विस की तरफ रूख किया और कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही यूपीएससी की तैयारी करने लगीं।

आर्थिक तंगी के बावजूद परिवार ने किया सपोर्ट

आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद परिवार ने स्वाति के फैसले का समर्थन किया और उन्हें सपोर्ट करने लगा। पिता के कंधों पर ही घर चलाने की जिम्मेदारी थी। वह भी सब्जी बेचते थे। ऐसे में पढ़ाई के लिए पैसे कहां से आएं? यह सबसे बड़ा सवाल था। बेटी की पढ़ाई बीच में रूक न जाए। इसलिए मां ने अपने गहने गिरवी रख दिए। स्वाति ने भी मां का विश्वास बनाए रखने के लिए अपनी पूरी ताकत पढ़ाई में झोंक दी। पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। अथक प्रयासों के बाद भी स्वाति को लगातार 5 साल असफलता मिली। 

यूपीएससी 2023 में 492वीं रैंक

यूपीएससी एग्जाम में लगातार फेलियर के बाद भी स्वाति का अफसर बनने का जुनून जरा सा भी कम नहीं हुआ। यूपीएससी 2023 में एक बार फिर उन्होंने अपनी किस्मत आजमाई। नतीजे आए तो परिवार की आंखों से आंसू निकल पड़े। मेरिट लिस्ट में स्वाति ने 492वीं रैंक हासिल की थी। उनकी कहानी उन सभी कैंडिडेट्स के लिए मिसाल है, जो सफलता के लिए आर्थिक तंगी को बड़ा रोड़ा मानते हैं। कहते हैं कि, 'जहां चाह, वहां राह'। स्वाति के साथ ठीक ऐसा ही हुआ। 

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