मंदिर के नारियल से बनाया होम डेकर, दिव्यांग होकर भी बन गए सक्सेसफुल बिजनेसमैन

By Kavish Aziz  |  First Published Dec 27, 2023, 9:28 PM IST

कहते हैं ललक हो तो इंसान के आगे ना उसकी बीमारी आड़े आती है, न  कोई मुसीबत उसे रोक पाती है। उड़ीसा के सब्यसाची को बचपन से आर्ट एंड क्राफ्ट का शौक था। उनको बचपन से रीड की हड्डी की ऐसी बीमारी थी कि वह ज्यादा देर तक खड़े नहीं हो सकते थे । लेकिन बचपन के शौक को उन्होंने अपना बिजनेस बना लिया और आज फेसबुक और अमेजन के जरिए बिजनेसमैन बन गए हैं।

उड़ीसा।  कोविड में जब लोगों की नौकरियां जा रही थी, दुकाने  बंद हो रही थी उस वक्त कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी क्रिएटिविटी से रोजगार के अवसर पैदा किया। इन्हीं में एक है उड़ीसा के सब्यसाची पटेल। सब्यसाची को बचपन से रीड की हड्डी में प्रॉब्लम थी जिसकी वजह से वह ज्यादा देर खड़े नहीं रह सकते थे लेकिन कोविड में उन्होंने खुद को आत्मनिर्भर बनाया । माय नेशन हिंदी से सब्यसाची में अपने बारे में विस्तार से बताया

कौन है सब्यसाची
सब्यसाची उड़ीसा के बलांगीर जिला के पुइनतला गांव के रहने वाले हैं। सब्यसाची ने साल 2010 में कोलकाता स्टेट इंस्टीट्यूट होटल मैनेजमेंट में फूड प्रोडक्शनिंग में डिप्लोमा किया है । उनके पिता किसान हैं और खुद की एक एकड़ जमीन में खेती करते हैं, उनकी मां हाउसवाइफ है एक छोटा भाई है। फूड प्रोडक्शनिंग डिप्लोमा के दौरान सब्यसाची ने होटल में 6 महीने की ट्रेनिंग भी लिया। बाद में उन्होंने ग्रेजुएशन किया। सब्यसाची को बचपन से रीड की हड्डी में परेशानी थी जिसकी वजह से वह ज़्यादा देर तक खड़े नहीं रह सकते थे। लेकिन यह बीमारी कभी उनके काम के बीच रोड़ा नही बनी।

नहीं मिली नौकरी
सब्यसाची ने बताया कि मैंने होटल की ट्रेनिंग सिर्फ इसलिए किया था क्योंकि मुझे खबर थी की आईआरसीटीसी फूड कैटरिंग विभाग में डिप्लोमा के बाद सरकारी नौकरी मिल जाती है इसलिए मैंने फूड प्रोडक्शनिंग में डिप्लोमा के बाद होटल में 6 महीने की ट्रेनिंग लिया।  और मुझे पूरा यकीन था कि दिव्यांग कोटा में मुझे नौकरी मिल जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैं जानता था कि मैं ज्यादा देर तक खड़ा नहीं रह सकता हूं लेकिन फिर भी मैंने होटल की ट्रेनिंग लिया ताकि मुझे नौकरी मिल जाए लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से मुझे नौकरी नहीं मिली।


किराने की दुकान खोली
सब्यसाची बताते हैं मुझे बचपन से ही आर्ट एंड क्राफ्ट का शौक था लेकिन मैं काम करना चाहता था इसलिए मैंने पिता के कहने पर किराने की दुकान खोली साथ ही होटल की ट्रेनिंग में फल और सब्जियों की कार्विंग का काम जो सीखा था वह शादी समारोह में करने लगे। फल और सब्जियों की कार्विंग के बारे में सब्यसाची के गांव में सभी को पता था इसलिए उन्हें ऑर्डर्स मिलते रहते थे।


लॉकडाउन ने लगा दिया ग्रहण
सब्यसाची कहते हैं कि मुझे फल और सब्जियों की कार्विंग के लिए बुलाया जाता था लेकिन लॉकडाउन में यह काम भी छूट गया।  सभी आयोजनों पर बैन लगा दिया गया और ऑर्डर मिलने बंद हो गया लेकिन इसी समय मैंने अपने बचपन के शौक को परवाज दिया। वह बताते हैं कि मेरे घर के पास एक मंदिर था जहां से मैं नारियल लाता था और उस नारियल से चाय पीने का कप  बनाता था। लॉकडाउन में भी लोग मंदिर दर्शन करने के लिए आते थे और नारियल मंदिर के बाहर रखकर चले जाते थे सब्यसाची ने मंदिर के पुजारी से संपर्क किया और रोज नारियल का खोल अपने घर लेट और उससे डेकोरेशन के समान बनाने लगे।


इस तरह हुई बिजनेस की शुरुआत
सब्यसाची ने  बताया की एक बार उन्होंने अपने बनाई हुई तस्वीरों को फेसबुक पर अपलोड कर दिया जिसे कई लोगों ने पसंद किया। फिर एक दिन एक लड़की ने फेसबुक के थ्रू वाइन ग्लास और कप बनाने का आर्डर दिया जिसके सब्यसाची को ₹300 मिले। धीरे-धीरे सब्यसाची को फेसबुक के जरिए सामान बनाने के ऑर्डर मिलने लगे। वह अपने इलाके में अपने काम को लेकर मशहूर होने लगे और मीडिया के लोग उनके घर पहुंचने लगे। इस चर्चा का असर यह हुआ कि उड़ीसा के अमेजॉन कंसलटेंट सुधीर ने सब्यसाची से संपर्क किया और अमेजॉन पर सेलर बनने के लिए कहा। सुधीर अमेजॉन पर सेलर्स को रजिस्टर करने का काम करते थे। सब्यसाची के बने सामान की कीमत कम थी लिहाजा अमेजॉन पर उनके प्रोडक्ट को सब्यसाची क्राफ्ट के नाम से रजिस्टर्ड करवाया गया।



आज सब्यसाची के प्रोडक्ट अमेजॉन पर भी मौजूद है और फेसबुक के जरिए उनको ऑर्डर्स मिलते रहते हैं। यही नहीं सब्यसाची नारियल की खोल के अलावा जूट  के प्रोडक्ट्स भी बनाकर बेचते हैं।

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