गुजरात के डीसा में सुदामा वृद्धाश्रम चलाने वाली 33 वर्षीय आशा बेन राजपुरोहित ने पिता को दिया गया वचन पूरा करने के लिए खुद की गृहस्थी छोड़ दी। 22 बुजुर्गों का सहारा बनी हैं। आइए डिटेल में जानते हैं उनकी प्रेरणादायक कहानी।
अहमदाबाद। गुजरात के डीसा में ‘सुदामा वृद्धाश्रम’ चला रहीं 33 वर्षीय आशा बेन राजपुरोहित की कहानी प्रेरणादायक है। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए आशा कहती हैं कि 2 मई 2020 की तारीख थी। कोरोना महामारी का समय था। लॉकडाउन लगा हुआ था। मैं मम्मी के घर आई हुई थी। पापा कांतिलाल राजपुरोहित ने बुलाया तो सब्जी की गाड़ी पर बैठकर आश्रम पहुंची, पापा से मिली। कोरोना महामारी की वजह से लगभग 12 साल के बेटे को साथ नहीं लाई थी।
12 बजे दिया वचन, 3 बजे नहीं रहे पापा
आशा राजपुरोहित कहती हैं कि पापा से बातचीत चल रही थी। उस समय दोपहर के लगभग 12 बजे थे। पापा ने कहा कि जब मैं चला जाऊंगा तो यह वृद्धाश्रम कौन चलाएगा? बात ही बात में मैंने पापा को वचन दिया कि वृद्धाश्रम मैं चलाऊंगी, कसम भी खाई। उसी दिन करीबन 3 बजे होंगे। पापा फोन पर बात कर रहे थे। बात करते-करते उनका फोन गिर गया। मैंने पापा से कहा, ये क्या कर रहे हैं पापा? पास जाकर देखा तो वह नहीं रहें। तब से पापा को दिया गया वचन पूरा करने के लिए वृद्धाश्रम चला रही हूॅं।
वृद्धाश्रम चलाने के काम में गृहस्थी छूटी, बेटा से भी नहीं मिलीं
आशा राजपुरोहित के पिता कांतिलाल राजपुरोहित ने 14 साल पहले इस ओल्ड एज होम की शुरुआत की थी। उनकी मौत के बाद लोगों में यह चर्चा होने लगी कि अब वृद्धाश्रम कौन चलाएगा। पिता का क्रिया-कर्म बीतने के बाद आशाबेन राजपुरोहित ने कहा कि वृद्धाश्रम वह चलाएंगी। उनका यह फैसला सुनकर रिश्तेदारों में खुसुर-पुसुर शुरु हो गई। उनके ससुराल वालों ने कहा कि यदि वृद्धाश्रम चलाओगी तो हम तुमको स्वीकार नहीं करेंगे। उसके बाद आशा राजपुरोहित कभी अपने ससुराल नहीं गईं। यहां तक कि अपने 15 साल के बेटे से भी नहीं मिली। उनका बेटा आशा के बड़े भाई के घर चला गया।
आसान नहीं था आशा राजपुरोहित के लिए ये काम
आशा राजपुरोहित के लिए यह फैसला आसान नहीं था। लोग उनसे कहते थे कि तुमने ठीक नहीं किया। उनकी उम्र का हवाला देकर कहते थे कि बहुत बुरा काम किया। पर आशा ने वृद्धाश्रम चलाने की ठान ली थी। पिता को दिया गया वचन पूरा करने के लिए वह किसी भी हद से गुजरने को तैयार थीं। अब, जब उन्हें वृद्धाश्रम चलाते हुए 3 साल पूरे हो गए हैं तो लोग उनकी तारीफ करते हैं। आशा कहती हैं कि वृद्धाश्रम में ज्यादा अच्छा लगता है। अभी स्थानीय विधायक भी आए थें, उन्होंने जमीन देने की बात कही है तो उस पर मैं वृद्धाश्रम बनाऊंगी। उनका वृद्धाश्रम अभी किराए के मकान में चल रहा है।
22 बुजुर्गों की देखभाल करती हैं आशा बेन
कांतिलाल राजपुरोहित ने 10 साल तक ओल्ड एज होम चलाया। पहले इस वृद्धाश्रम में 10 से 14 बुजुर्ग रहते थे। अब बुजुर्गों की संख्या 22 हो गई है। आशा बेन राजपुरोहित लोगों से मदद लेकर आश्रम चला रही हैं। इतने समय में उनके आश्रम की आसपास के इलाकों में भी अच्छी पहचान बन चुकी है। लोग खास मौकों पर जैसे-बर्थडे या कोई अन्य अवसर सेलिब्रेट करने आश्रम आते हैं। आशा बेन वृद्धाश्रम के कामों को खुद ही निपटाती हैं, चाहे खाना बनाना हो या सफाई के अलावा अशक्त बुजुर्गों को खाना खिलाना हो। आशा बेन समय समय पर उन्हें दवाई भी देती हैं और उनकी सेवा में हाजिर रहती हैं।