बेंगलुरु। कर्नाटक के कलबुर्गी के एक गरीब परिवार में जन्मे दत्तू अग्रवाल पर बचपन से ही मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। एडाप्टेड पैरेंट्स (दत्तक माता-पिता) ने उन्हें पाला। सिर्फ 3 साल की उम्र में ब्लाइंडनेस के शिकार हो गए। जीवन के हर पड़ाव स्ट्रगल करते हुए आगे बढ़ें। पोस्ट ग्रेजुएशन तक पढ़ें। गवर्नमेंट कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी मिल गई। अब कलबुर्गी शहर में ब्लाइंड गर्ल्स के लिए आवासीय विद्यालय चला रहे हैं। 75 से अधिक लड़कियों के जीवन में एजूकेशन से रोशनी ला रहे हैं। माई नेशन हिंदी से दत्तू अग्रवाल ने अपनी लाइफ जर्नी के बारे में जो चीजें शेयर की हैं, वह औरों के लिए प्रेरणा हैं। आइए उनके बारे में विस्तार से जानते हैं।

इलाज से नहीं हुआ फायदा, पैरेंट्स हुए परेशान

दत्तू अग्रवाल का जीवन आम बच्चों की तरह नहीं रहा, क्योंकि वह 3 साल की उम्र में ही एक भयानक बीमारी के शिकार हो गए और जीवन भर के लिए ब्लाइंडनेस की दुनिया में भटकना उनकी नियति बन गई। दत्तू अग्रवाल के इलाज में उनके पैरेंट्स को काफी परेशान होना पड़ा। इलाज के लिए अलग-अलग हॉस्पिटल्स में दिखाया गया। पर उसका कोई फायदा नहीं मिला। 

गुलबर्गा विश्वविद्यालय से पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन

दत्तू अग्रवाल कहते हैं कि कलबुर्गी में नेत्रहीन लड़कों के स्कूल से हाॅयर सेकेंडरी तक पढ़ा और फिर ग्रेजुएशन के लिए कॉलेज गए। गुलबर्गा यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। दत्तू अग्रवाल ने अपनी स्टूडेंट लाइफ में भी हार नहीं मानी, बल्कि मुसीबतों के सामने डटे रहें। उन्हें यह पता था कि शिक्षा के जरिए ही कुछ किया जा सकता है और उन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण की। 

 

32 साल तक गवर्नमेंट कॉलेज में लेक्चरर की जॉब

दत्तू अग्रवाल का चयन साल 1985 में एक गवर्नमेंट कॉलेज में लेक्चरर के पद पर हो गया। गवर्नमेंट जूनियर कॉलेज में दत्तू अग्रवाल ने 32 वर्षों तक राजनीति विज्ञान के लेक्चरर के रूप में सेवा दी। प्रोफेशल कामों के साथ उनकी सोशल वर्क में भी रूचि थी। उन्हें हमेशा अपनी मां की याद आती थी। उन्होंने ही दत्तू अग्रवाल को पढ़ा-लिखाकर उनके पैरों पर खड़ा किया था। उनकी याद में दत्‍तू अग्रवाल ने ब्‍लाइंड गर्ल्‍स के लिए आवासीय स्‍कूल खोलने का निर्णय लिया।   

रेजिडेंशियल स्कूल खोलकर ब्लाइंड गर्ल्स को कर रहे इम्पावर

दत्तू अग्रवाल खुद नेत्रहीन थे। नेत्रहीन लड़के तो थोड़े प्रयास के बाद पढ़-लिख भी लेते हैं। पर नेत्रहीन लड़कियों की पढ़ाई में दिक्कत होती है। दत्तू अग्रवाल को यह बात पता थी। नेत्रहीन लड़कियों को इम्पावर करने के मकसद से उन्होंने साल 2007 में कलबुर्गी शहर में ही एक रेजिडेंशियल स्कूल की शुरुआत कर दी।  माथोश्री अंबुबाई आवासीय विद्यालय उन्होंने अपनी मां की याद में बनवाया। 

6-18 साल की ब्लाइंड गर्ल्स को फ्री एजूकेशन

दत्तू अग्रवाल कहते हैं कि माथोश्री अंबुबाई आवासीय विद्यालय में मौजूदा समय में 75 से अधिक ब्लाइंड गर्ल्स हैं। यह लड़कियां अपनी पढ़ाई के लिए कड़ी मेहनत करती हैं। रेजिडेंशयल स्कूल में 6-18 आयु वर्ग की नेत्रहीन लड़कियों को फ्री एजूकेशन, ट्रेनिंग के साथ-साथ हॉस्‍टल की सुविधा भी दी जाती है। वह कहते हैं कि हर साल एसएसएलसी परीक्षा का परिणाम शत-प्रतिशत रहा है। विद्यार्थियों ने 85 प्रतिशत से अधिक अंकों के साथ प्रथम श्रेणी में परीक्षा पास कर विद्यालय का नाम रोशन किया है। स्टूडेंट्स ने डांस, ड्रामा, म्यूजिक, स्पोर्ट्स आदि में डिस्ट्रिक्ट और स्टेट लेबल की प्रतियोगिताओं में अवार्ड्स जीते हैं।

ये भी पढें-अपनों के ठुकराए 486 बुजुर्गों का सहारा बने कोलकाता के देब कुमार मलिक, डेली खिलाते हैं खाना-देते हैं दवाई