मिलिए धनबाद के देव कुमार वर्मा से, जिनके पिता पान की गुमटी चलाते थे, बचपन में सुबह उठकर खुद कोयला चुनने जाते थे। ट्यूशन पढ़ाया-एलआईसी एजेंट बनें। पढ़ाई पूरी कर सरकारी नौकरी हासिल की। अब देश भर में बच्चों के एजूकेशन के लिए एकल विद्यालय खोल रहे हैं। आइए जानते हैं उनकी कहानी।
रांची। झारखंड के धनबाद के रहने वाले देव कुमार वर्मा के पिता राजेंद्र सोनी पान की गुमटी चलाते थे। बचपन में खुद सुबह उठकर कोयला चुनने जाते थे। पान की दुकान भी चलाई। ट्यूशन पढ़ाया-एलआईसी एजेंट बनें। पढ़ाई पूरी कर सरकारी नौकरी हासिल की। अब कोयला चुनने वाले और गरीब तबके के बच्चों के लिए देश भर में पाठशाला के नाम से एकल विद्यालय खोलने की मुहिम में जुटे हैं। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए देव कुमार वर्मा कहते हैं कि दिसम्बर 2022 से हमने एक पदयात्रा शुरु की। लगभग 17 राज्यों का दौरा किया। लक्ष्य था कि हर राज्य में एकल विद्यालय 'पाठशाला' लॉन्च करनी है।
संघर्षों से भरा रहा बचपन
धनबाद जिले के कतरास गांव में जन्मे देव कुमार वर्मा का बचपन संघर्षों से भरा था। उनके इलाके के लोग शराब के नश में धुत रहते थे। इलाके के 4 साल से अधिक उम्र के बच्चे अल सुबह सिर पर बोरी रखकर कोयला चुनने जाते थे। वह खुद भी बचपन में कोयला चुनने निकलते थे। पिता पान की गुमटी चलाते थे। उससे परिवार का जीवन यापन बहुत मुश्किल से हो पाता था। करीबन 10 से 15 साल तक उनकी भी रूटीन यही रही।
ट्यूशन व एलआईटी एजेंट की कमाई से पढ़ें, हासिल की नौकरी
इधर, कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण हुआ तो उनकी जमीनें भी अधिग्रहीत कर ली गईं। उसके बदले में उनके पिता को बीसीसीएल में नौकरी मिल गई। अब देव कुमार वर्मा खुद पान की दुकान चलाने लगे और सरकारी स्कूल में पढ़ाई करते रहें। साल 2000 में 10वीं पास की। देव कुमार वर्मा कहते हैं कि 10वीं के बाद ट्यूशन पढ़ाना शुरु किया। उसके बदले में 30 से 70 रुपये तक मिलते थे। उससे आगे की पढ़ाई जारी रखी। दो बहनों की शादी हुई। उसकी वजह से परिवार पर कर्ज चढ़ गया। घर की माली हालत इतनी खराब हुई कि ट्यूशन से ही पढ़ाई का खर्च निकालना पड़ता था। 18 साल का हुआ तो एलआईसी का एजेंट बन गया और ट्यूशन पढ़ाता रहा। उससे इनकम हुई तो एनआईटी दुर्गापुर से ग्रेजुएशन और एमबीए किया।
2014 में पैतृक आवास से शुरु की पाठशाला
फिर देव कुमार वर्मा को कोल इंडिया में नौकरी मिल गई। उनकी पहली पोस्टिंग कोलकाता मुख्यालय में हुई। पर उनकी इच्छा थी कि यदि उनका तबादला धनबाद हो जाए तो वह कोयला चुनने वाले बच्चों के लिए कुछ कर सकेंगे। 5 साल बाद उनकी यह इच्छा भी पूरी हुई और उनका तबादला धनबाद हुआ तो उन्होंने साल 2014 में अपने पैतृक निवास से ही पाठशाला की शुरुआत की। साल 2015 में उसे रजिस्टर्ड कराया। दूसरी पाठशाला देव कुमार वर्मा ने अपने जन्म स्थान और तीसरी पाठशाला जमुई में खोली। यहां बच्चों को फ्री में सभी आवश्यक चीजें मुहैया कराई जाती हैं। चूंकि उनकी पाठशाला सिर्फ प्राइमरी तक है। आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को एडमिशन दूसरे स्कूलों में कराया जाता है। उसमें आने वाला खर्च भी देव कुमार वर्मा ही वहन करते हैं।
कई राज्यों में चल रहे हैं 50 से ज्यादा एकल विद्यालय
देव कुमार वर्मा कहते हैं कि दिसम्बर 2022 में हमने देश के 17 राज्यों की पदयात्रा शुरु की। हमारा मकसद राज्यों में जरुरतमंद व गरीब तबके के बच्चों के लिए एकल विद्यालय लॉन्च करना था। उसमें सफलता मिली। मौजूदा समय में विभिन्न राज्यों में 50 से ज्यादा एकल विद्यालय चल रहे हैं। इसका लाभ उन बच्चों को मिल रहा है, जो गरीबी की वजह से स्कूलों में पढ़ाई करने नहीं जा सकते हैं। उन्हें वहां जरुरत की चीजें मुहैया कराई जाती हैं।