जिन नवजात शिशुओं को मॉं-बाप मृत्यु के द्वार पर छोड़कर चले गए। हरे राम पाण्डेय ने ऐसे अनाथ बच्चों को पाला। एक दो नहीं बल्कि 35 अनाथ बच्चों के लिए भगवान बने। उनके पालन-पोषण में 23 वर्षो में 15 बीघा से ज्यादा जमीन बिक गई। संघर्षों की कहानी ऐसी कि मेगा स्टार अमिताभ बच्चन भी सुनकर रो पड़े थे।
झारखंड के देवघर स्थित कृष्णापुरम में नारायण सेवा आश्रम चलाने वाले हरे राम पाण्डेय 35 अनाथ बच्चों के पिता हैं। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहते हैं कि यह सिलसिला कैसे शुरु हुआ, आज तक नहीं समझ पाया। 45 साल की उम्र में बाबा बैजनाथ की पावन भूमि (देवघर) आया। साधना करता था। सुबह साधना से उठा तो देखा कि कुछ लोग भागदौड़ कर रहे थे। जानकारी की तो पता चला कि कोई एक बच्चा झाड़ी में फेंक कर चला गया है। पास जाकर देखा तो वह एक बिटिया थी। जिसकी नाभि में चींटियां लगी हुईं थी और वह कोमा में चली गई थी।
25 हजार कर्ज लेकर कराया इलाज
हरे राम कहते हैं कि उसका ललाट छूकर देखा तो धक-धक कर रहा था। मुझे लगा जिंदा है। उसकी बॉडी पर लगी चीटियों को गमछे से झाड़ा और बेटी को उठाकर इलाज के लिए ले गया। इलाज खर्चीला था। मेरे पास पैसा नहीं था तो 25 हजार रुपये किसी से कर्ज लिए। डॉक्टर बोला कि बच्ची बचेगी नहीं। पर इलाज के बाद बेटी बच गई तो बड़ी खुशी हुई। पत्नी भी खुश हुई।
पहली बच्ची के जन्मदिन पर मिली दूसरी नवजात
हरे राम कहते हैं कि उस बिटिया के जन्मदिन पर पत्नी भवानी देवी ने कहा कि अखंड कीर्तन का आयोजन किया जाए। उसी के लिए घर फूल-माला से सजा रहा था । तभी भोर की बेला में हमारे पड़ोसी ने फोन कर बताया कि बाबा एक और बेटी को कोई फेंक कर चला गया है। 9 दिसम्बर 2004 का दिन था। दौड़कर वहां गए तो देखा कि शीतलहर के मौसम में बिटिया बिना कपड़ों के पड़ी थी, नाभि लगी हुई थी। उसे डॉक्टर के पास ले गए, बच्ची बच गई। अब दोनों बच्चियों का जन्मदिन एक ही दिन पड़ता है।
...इस तरह अस्तित्व में आया नारायण सेवा आश्रम
पांडेय कहते हैं कि जब दो बेटियां हो गईं तो अर्न्तमन से आवाज आई और मैंने अपनी पत्नी से कहा कि इस तरह के बच्चे जहां-तहां फेंक दिए जाते हैं। हम लोग एक आश्रम बनाएं और उसमें इसी तरह की बेटियों की सेवा करेंगे। तत्कालीन डीसी मस्तराम मीना ने भी समर्थन किया और नारायण सेवा आश्रम ट्रस्ट अस्तित्व में आया, पर सहयोग किसी का नहीं मिला।
बेटियों को पालने के लिए दिन भर जूझते थे हरे राम
हरे राम पाण्डेय कहते हैं कि 23 साल पहले यह काम शुरु किया था। पिछले साल तक 35 बच्चे थे। अब 12 बच्चे और बढ़े हैं। उनमें से तीन लड़के हैं, बाकि बेटिया हैं। 4 बेटियों की शादी करके विदाई भी कर चुके हैं। पर यह काम करना इतना आसान नहीं था। बेटियों को पालने में हरे राम को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। दिन भर 10 से 20 लोगों से संपर्क करते थे कि कोई कुछ खाने-पीने का सामान उपलब्ध करा दे। ऐसे भी दिन गुजरते थे। जब कुछ नहीं मिलता था। दिन भर बेटियों के पालन-पोषण की व्यवस्था करने के लिए जूझते रहते थे।
बेटियों के पालन-पोषण के लिए बेच दी 15 बीघा जमीन
समय के साथ बेटियां बड़ी होने लगीं तो उनके लिए घर की जरुरत पड़ी। हरे राम के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था। उन्होंने अपनी जमीन बेचकर बच्चों के लिए घर बनाया। धीरे-धीरे उनकी 15 बीघा 5 कट्ठा जमीन बिक गई। उन्होंने अपना सर्वस्व बेटियों के पालन-पोषण के लिए न्यौछावर कर दिया। जब भी उन्हें पैसों की जरुरत पड़ती तो अपनी प्रॉपर्टी बेचकर पैसों का बंदोबस्त करते थे।
बच्चे बड़े हुए तो एजूकेशन की टेंशन
उन्होंने पहले बच्चों की जान बचाई। पर नवजात बच्चों को पालना भी कठिन तपस्या थी। वह भी जब परिवार में एक नहीं कई नवजात बच्चे हों। समय के साथ बच्चे बड़े होने लगे तो हरे राम को उनके एजूकेशन की चिंता सताने लगी। वह कहते हैं कि आश्रम के पास ही एक स्कूल है। उन्होंने हमारी सेवा को देखते हुए बच्चों की फीस माफ कर दी। हालांकि कपड़ा, ड्रेस, जूता मोजा सब लेना पड़ता है। दो बेटियां डॉक्टर बनने का प्रयास कर रही है। एक आईपीएस बनना चाहती है।
हरे राम बन गए बेसहारा बच्चों के पिता
बेसहारा बच्चों की पढ़ाई शुरु कराने में भी हरे राम को दिक्कतें झेलनी पड़ीं। अब समस्या थी कि मॉं-बाप के नाम के बिना स्कूल में बच्चों का एडमिशन कैसे हो। ऐसे समय में हरे राम ही उन बच्चों के पिता बन गए। आश्रम में पलने वाले सभी बच्चों के आधार कार्ड में भी पिता के नाम की जगह हरे राम पांडेय का नाम दर्ज है।
केबीसी से बदल गई जिंदगी
साल 2023 में ऐसा समय आया कि एक झटके में हरे राम पाण्डेय की जिंदगी बदल गई, मशहूर हो गए। सोशल मीडिया के जरिए केबीसी (कौन बनेगा करोड़पति) के लोगों को हरे राम के काम के बारे में जानकारी हुई तो उन्हें मुंबई बुलाया गया, अमिताभ बच्चन के सामने हॉट सीट पर बैठने का मौका मिला। वहां उन्होंने अनाथ बेटियों को पालने की कहानी सुनाई तो अमिताभ बच्चन भी रो पड़े। उनकी संस्था को सम्मानित किया गया। वह अब बच्चों के लिए घर बना रहे हैं। केबीसी के पर्दे पर आने के बाद देश-दुनिया के लोगों को इनके बारे में पता चला। उन्हें मदद मिलनी शुरु हो गई। अब कुछ कंपनियां भी उनके अभियान में सहयोग के लिए कदम बढ़ाने की बात कर रही हैं।
अब यही हरे राम के जीवन का सार
हरे राम कहते हैं कि 16 अक्टूबर 2023 को केबीसी ने हमारी संस्था को सम्मानित किया तो हमने कहा था कि एक मूर्ति हम लोग हाथ से बनाकर पूज रहे हैं और एक मूर्ति स्वयं भगवान ने अपने हाथ से बनाकर बेटी के रूप में भेजा। उनकी सेवा करने से बढ़िया पूजा क्या होगी। यही मेरे जीवन का सार हो गया।