धर्मेंद्र कहते हैं कि शुरूआती दिनों में मैंने किसानों को समझाना शुरू किया कि वह केमिकल वाली खाद का यूज खेतों में न करें। उसकी जगह गोबर की खाद लगाएं। पर किसानों ने ध्यान ही नहीं दिया, क्योंकि गोबर की खाद से उतनी पैदावार नहीं होती। जितनी केमिकल वाली खाद के यूज से होती है।
लखनऊ। यूपी के झांसी जिले के चिरगांव निवासी धर्मेंद्र कुमार नामदेव पेशे से टीचर हैं। जूनियर स्कूल में पढ़ाते हैं। एक बार सड़क पर अचानक उनके सामने छुट्टा जानवर आ गए। एक बड़ी दुर्घटना होते-होते बची। यह देखकर उनका मन दुखी हो उठा। आसपास लोगों को असाध्य रोगों से जूझते हुए भी देख रहे थे। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहते हैं कि यह सब देखकर मैंने सोचा कि यदि छुट्टा गोवंश के जरिए प्राकृतिक खेती की जाए तो केमिकल फ्री अनाज पैदा होगा। उसके सेवन से लोग रोगमुक्त रहेंगे। छुट्टा गोवंश की समस्या भी हल होगी। यही सोचकर साल 2016 से विभिन्न फसलों पर प्रयोग शुरू कर दिया।
नेचुरल फॉर्मिंग के लिए करने लगे प्रयोग
धर्मेंद्र कहते हैं कि शुरूआती दिनों में मैंने किसानों को समझाना शुरू किया कि वह केमिकल वाली खाद का यूज खेतों में न करें। उसकी जगह गोबर की खाद लगाएं। पर किसानों ने ध्यान ही नहीं दिया, क्योंकि गोबर की खाद से उतनी पैदावार नहीं होती। जितनी केमिकल वाली खाद के यूज से होती है। मुझे भी यह बात समझ में आई तो मैंने प्राकृतिक खेती के लिए प्रयोग शुरू कर दिए। गोमूत्र और चने के आटा का घोल तैयार किया और कई प्रयोग किए।
6 महीने में बदल गया मिट्टी का रंग
धर्मेंद्र कहते हैं कि कई प्रयोगों के बाद मुझे एक बार रिस्पांस मिला। जब मैंने पानी के साथ गोमूत्र खेतों में डाला। मटर, धनिया, बैगन, भिंडी और दलहन के पौधों पर उसका अच्छा असर पड़ा। खेत की मिट्टी का रंग 6 महीने में बदल गया। तब मुझे इसकी गंभीरता का पता चला। समझ में आया कि इस तरीके से जैविक खेती करने से फसलों की पैदावार और क्वालिटी में सुधार होता है। उन सब्जियों का स्वाद बिल्कुल नेचुरल होता है।
पैदावार बढ़ाने को साइंटिफिक प्रयोग
रानी लक्ष्मीबाई एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के निदेशक रिसर्च एआर शर्मा ने धर्मेंद्र कुमार की फसलों का निरीक्षण किया। केवल गोमूत्र आधारित खेती देखी। वैज्ञानिक तरीके से पैदावार और गुणवत्ता परखने के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारी कहते हैं कि गोमूत्र से फसल की लागत तो कम होती ही है। साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। संभव है कि जिन खेतों में लंबे समय से रासायनिक खाद का यूज हो रहा हो। वहां शुरूआती दिनों में पैदावार में कमी आए। पर बिना किसी केमिकल का यूज करके ही दलहन और तिलहन की रोगमुक्त, पौष्टिक, स्वादिष्ट फसल उगाई जा सकती है। गोमूत्र आधारित फसलों की पैदावार बढ़ाने को साइंटिफिक प्रयोग भी चल रहे हैं।
खेतों में बढ़ती है गुड बैक्टीरिया
धर्मेंद्र कहते हैं कि पानी के साथ गोमूत्र लगाने से खेतों में नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया की मात्रा बहुत कम हो जाती है। मिट्टी को फायदा पहुंचाने वाले सूक्ष्म जीव फसल की पैदावार बढ़ाने में सहायता करते हैं। यदि आप गोमूत्र आधारित खेती करते हैं तो कुछ ही दिनों में आपके खेत की मिट्टी भी उपजाऊ हो जाएगी। उनसे उपजे अनाज का सेवन करने से असाध्य रोगों से पीड़ित होने के खतरे कम होंगे।