नैनीताल (उत्तराखंड न्यूज)। आमतौर पर यूथ पढ़ाई के बाद मोटी सैलरी वाली जॉब करना चाहते हैं। यदि नौकरी मिल गई तो बेहतर अवसर की तलाश में रहते हैं। इसके उलट उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रहने वाले चंदन नयाल ने पर्यावरण बचाने के लिए नौकरी छोड़ दी। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहते हैं कि पढ़ाई के लिए बाहर गया। पर जब ग​र्मी की छुट्टियों में गांव आता था। अक्सर चीड़ के जंगलों में आग लगती थी। यह देखकर बहुत दुख होता था। तभी पर्यावरण बचाने के लिए काम करने की ठानी। 

पर्यावरण बचाने को नौकरी छोड़ गांव में हुए शिफ्ट

ओखलाकाण्डा ब्लॉक के नाई गांव के एक साधारण परिवार में जन्मे चंदन नयाल के पिता किसान थे। चंदन अपने चाचा के साथ रामनगर, हल्द्वानी, नैनीताल तक गए। ​इंजीनियरिंग डिप्लोमा की डिग्री ली और प्राइवेट सेक्टर में नौकरी शुरू कर दी। पर उन्हें चीड़ के जंगलों में लगी आग का दृश्य कभी भूलता नहीं था। अब उन्होंने काम के साथ पेड़ लगाना शुरू कर दिया और एक दिन नौकरी छोड़कर पूरी तरह गांव में शिफ्ट हो गए। पौधारोपण और जागरूकता अभियान शुरू कर दिया।

पहले लोग कहते थे पागल

ऐसा नहीं कि चंदन नयाल के लिए यह निर्णय लेना इतना आसान था। जब वह गांव लौटें और पर्यावरण बचाने की मुहिम शुरू की तो गांव के लोगों ने उन्हें पागल तक कहा। लोग कहते थे कि पढ़ाई करके अच्छी खासी नौकरी कर रहे थे। यही सब करना था तो पढ़ाई करने की जरूरत क्या थी। चंदन कहते हैं कि उस समय मेरे अंदर भी पर्यावरण के लिए काम करने का जुनून था। इसलिए मैं किसी की बात पर ध्यान नहीं देता था। 

6000 से ज्यादा चाल-खाल बनाएं, 53,000 से ज्यादा प्लांटेशन

चंदन नयाल ने अकेले ही पौधारोपण की मुहिम शुरू कर दी। परिवार और समाज के लोगों ने शुरूआती दिनों में भले ही विरोध किया। पर उनका काम देखने के लिए बाद लोग उनसे जुड़ने लगें। लोगों के सहयोग से उन्होंने 53,800 से ज्यादा पौधे लगाएं। जल संरक्षण के लिए पहाड़ों पर 6000 से ज्यादा चाल-खाल का निर्माण किया। उसका असर यह पड़ा कि इलाके के प्रमुख जल स्रोत पुनर्जीवित हो उठे हैं। भारत सरकार का जल शक्ति मंत्रालय भी उन्हें 2020 में वॉटर हीरो अवार्ड से सम्मानित कर चुका है। पीएम मोदी भी अपने मन की बात प्रोग्राम में उनकी तारीफ कर चुके हैं।

क्या है चाल-खाल?

पहाड़ों पर पानी रोकने के लिए कैचमेंट एरिया में बने वह उथले गड्ढे, जो ढलान की उन नालियों से जुड़े होते हैं, जिनके जरिए बरसात के मौसम में पानी गड्ढो या पोखर में कलेक्ट किया जाता है। यह पानी साल भर पशुओं के काम आता है। 

अपना शरीर भी कर दिया डोनेट

चंदन नयाल ने साल 2017 में अपना शरीर भी सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज, हल्द्वानी को डोनेट कर दिया है। वह कहते हैं कि ऐसा मैंने इसलिए किया, ताकि मेरी मौत के बाद शरीर जलाने के लिए एक भी पेड़ काटने की जरूरत न पड़े। स्थानीय लोगों की मदद से उन्होंने हजारों की संख्या में पेड़ लगाकर एक छोटा जंगल भी तैयार किया है। खुद की नर्सरी में आडू, अखरेाट, माल्टा, नींबू आदि के पौधे तैयार करते हैं। 

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