बेगर्स चाइल्ड का जीवन संवारने को छोड़ी गवर्नमेंट जॉब...देते हैं फ्री खाना-शिक्षा, ये पथिकृत साहा की कहानी

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Dec 9, 2023, 11:54 PM IST

पथिकृत साहा दमदम में गवर्नमेंट जॉब कर रहे थे। उनकी सरकारी नौकरी सोशल वर्क के काम में रोड़ा बन रही थी तो साल 2017 में सरकारी जॉब छोड़ दी और जीवन यापन के लिए फूड डिलीवरी एजेंट का काम चुना।

कोलकाता। पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के रहने वाले पथिकृत साहा फूड डिलीवरी एजेंट हैं। कस्टमर के द्वारा कैंसिल किए गए फूड आइटम को फुटपाथ पर गुजर-बसर करने वाले बच्चों को खिलाते हैं। ऐसे बच्चों को दम दम कैंटोनमेंट में पढ़ाने का भी काम कर रहे हैं। इसमें आने वाला खर्च लोगों के डोनेशन से पूरा होता है। खुद की कमाई भी सड़क पर भीख मांगने वाले बच्चों को इंसान बनाने के लिए खर्च कर रहे हैं। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए 26 वर्षीय पथिकृत साहा ने अपनी जर्नी शेयर की है।

खुद के नाम से मिली प्रेरणा

पथिकृत साहा अपने नाम के अनुरुप काम भी कर रहे हैं। दरअसल, पथिकृत का मतलब लोगों को राह दिखाने वाला होता है। बचपन में वह जब स्कूल में शरारत करते थे तो टीचर उन्हें यही कहते थे कि तुम्हारा नाम ही पथिकृत है। जिसका मतलब होता है पथप्रदर्शक। तुम लोगों को क्या राह दिखाओगे? यही बात पथिकृत के मन में बचपन से ही बैठ गई थी। उन्होंने कम उम्र में ही कुछ अलग करने की ठानी थी। साल 2013 में दोस्तों के साथ मिलकर हेल्प फाउंडेशन की स्थापना की और जरुरतमंदों को कंबल, कपड़े और खाने की चीजें बांटने लगें। संयोग से 2015 में उन्हें दम दम में ही सरकारी नौकरी मिल गई।

अखर गया रेलवे स्टेशन पर बच्चे का पैसा मांगना

पथिकृत कहते हैं कि एक बार दम दम कैंटोनमेंट रेलवे स्टेशन के पास एक बच्चे ने उनसे पैसा मांगा। पहले तो उन्होंने 6 साल के मासूम को एवाइड करने का प्रयास किया। पर वह पैसे देने की रिक्वेस्ट करते हुए कह रहा था कि ​यदि वह पैसा नहीं ले गया तो मां उसे घर से निकाल देगी। मासूम के इस कनफेशन ने पथिकृत को ऐसे बच्चों की हालत के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया। फिर उन्होंने सड़क पर भीख मांगने वाले बच्चों की हालत सुधारने के लिए काम करना शुरु कर दिया। वह बच्चों के लिए कुछ ऐसा करना चाहते थे, जो उनके लिए परमानेंट सॉल्यूशन बने।


 

3 बच्चों के साथ शुरु की पाठशाला

पथिकृत कहते हैं कि यदि मैं चाहता तो उस मासूम को पैसे देकर अपना पिंड छुड़ा सकता था। पर इससे बच्चे आत्मनिर्भर नहीं बनते। एजूकेशन ही वह माध्यम है। जिससे उनका भविष्य बेहतर हो सकता है तो मैंने अपने दोस्तों के साथ बच्चों को खाना देने और पढ़ाने का काम शुरु किया। दम दम कैंटोनमेंट में सिर्फ 3 बच्चों के साथ पढ़ाने का काम शुरु किया। अब, बच्चों की संख्या 30 हो गई है। 

सोशल वर्क के आड़े आई गवर्नमेंट जॉब तो छोड़ दी

उधर, पथिकृत साहा दमदम में गवर्नमेंट जॉब भी कर रहे थे। उनकी सरकारी नौकरी सोशल वर्क के काम में रोड़ा बन रही थी तो साल 2017 में सरकारी जॉब छोड़ दी और जीवन यापन के लिए फूड डिलीवरी एजेंट का काम चुना। उसी दौरान उन्होंने कम्पनी की पॉलिसी देखी कि यदि डिलीवरी एजेंट खाना कस्टमर को पहुंचाने के लिए निकल चुका है। ऐसे में यदि आर्डर कैंसिल हो जाता है तो डिलीवरी बॉय यह खाना वापस कर सकता है या खुद रख सकता है। पथिकृत ने कैंसिल किया गया खाना फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों को देने की ठानी। 

'रोल काका' के नाम से मशहूर, सरकारी स्कूल में कराया ए​डमिशन

पथिकृत कहते हैं कि अब ज्यादा खाना कैंसिल नहीं होता है, पर बच्चे पढ़ाई के लिए पाठशाला में आते हैं। बच्चों को खाना देने की वजह से वह 'रोल काका' के नाम से भी मशहूर हैं। पथिकृत पढ़कर आगे बढ़ रहे बच्चों का सरकारी स्कूल में भी एडमिशन करा रहे हैं। लोगों के डोनेशन की मदद से वह बच्चों को कापी, किताबें वगैरह भी मुहैया कराते हैं। मौजूदा समय में पथिकृत के प्रयास से करीबन 2 दर्जन बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं। पथिकृत साहा का एक प्रयास बड़ा बदलाव लेकर आया है और वह समाज में एक रोल मॉडल के रूप में उभरे हैं।

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