बागपत। आमतौर पर किसान गन्ने की खेती में कीड़े लगने, आवारा पशुओं से नुकसान और समय से पेमेंट न मिलने की वजह से परेशान रहते हैं। बागपत के खपरौली ब्लाक के बासोली गांव के रहने वाले धर्मेंद्र तोमर ने इन परिस्थितियों से निकलने की राह खोजी। लेमन ग्रास की खेती कर किसानों को राह दिखाई। वर्षों की मेहनत ने अब रंग लाना शुरु कर दिया है। स्थानीय किसान लेमन ग्रास की खेती से कमाई कर रहे हैं। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए धर्मेंद्र कहते हैं कि खेती-किसानी में दिक्क्तों को देखने के बाद सोचा कि किसानों को ऐसी फसल अपनानी चाहिए, जो उन्हें 12 महीने पैसे दे। इसी सोच के साथ लेमन ग्रास की खेती शुरु की। 

तेल और ग्रीन-टी बनाने में यूज होता है लेमन ग्रास

लेमन ग्रास की खास बात यह है कि इसकी खेती में ज्यादा लागत नहीं आती है। ज्यादा पानी की भी जरुरत नहीं होती। एक बार बुवाई के बाद 10 से 12 साल तक काम आती है। कटाई के कुछ ही दिनों बाद दोबारा पौधा तैयार हो जाता है। इसका यूज तेल और ग्रीन-टी बनाने में होता है। किसानों के पास लेमन-टी और आयल की डिमांड देश के कोने-कोने से आ रही है। 25 हजार की लागत में एक एकड़ की खेती से लगभग 2 से 2.50 लाख की कमाई होती है।

कैसे आया आइडिया?

धर्मेंद्र तोमर कहते हैं कि गन्ने की खेती में 12 महीने का समय देना पड़ता है। आवारा जानवरों का आतंक अलग झेलना पड़ता है तो मैंने सोचा कि ऐसी खेती की जाए जो मुनाफा दे। वह साल 2008 से ही एनिमल सीमेन मैन्यूफैक्चरिंग के बिजनेस से जुड़े थे। एक बार सीमेन की सप्लाई लेकर सुल्तानपुर जिले में गए तो वहां एक जगह सड़क के किनारे लहलहा रही लेमन ग्रास की फसल को देखा। आसपास के लोगों से खेत के मालिक के बारे में जानकारी कर उनके घर पहुंचे और फसल के बारे में जानकारी ली और फिर लखनऊ से लेमन ग्रास की जड़ें लेकर आएं और उनकी खेतों में बुवाई की।

 

2016 में किसान समूह बनाकर शुरुआत

धर्मेंद्र कहते हैं कि लेमन ग्रास की खेती के बारे में किसानों को ट्रेनिंग भी दिलाई गई। तीन साल से यह खेती कर रहे हैं। कोरोना महामारी के समय इसकी खूब डिमांड थी। लोग एडवांस पैसा दे रहे थे। इस साल फायदा हुआ है। तेल और टी की डिमांड आई है। दो मशीने लगाई गई हैं। धीरे धीरे दूसरे किसान भी अवेयर होंगे तो इलाके में बड़े पैमाने पर लेमन ग्रास का उत्पादन होगा। उन्होंने 2016 में किसान समूह बनाकर शुरुआत की थी और वही समूह साल 2019 में उन्नत किसान बायोएनर्जी फॉर्मर प्रोड्यूसर (एफपीओ) में बदल गया। अभी उनसे करीबन 1000 किसान जुड़े हैं। जिनमें से 465 किसान ​रजिस्टर्ड हैं। एफपीओ का टर्नओवर एक करोड़ के आसपास है।

एफपीओ को खुद तैयार करनी होगी अपनी मार्केट

धर्मेंद्र कहते हैं कि परंपरागत खेती में शामिल गेहूं, धान, गन्ने का एक निश्चित मार्केट है। किसान को पता है कि वह अपनी फसल फलां मार्केट में जाकर बेच आएगा। मेडिसिनल फसलों की कोई निश्चित मार्केट नहीं है। यही सबसे बड़ी समस्या है। एफपीओ को अपनी मार्केट खुद तैयार करनी होगी। हमारे कस्टमर धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं।

पहली बार ड्रोन से कराया गन्ने के खेत में छिड़काव

धर्मेंद्र तोमर ने पहली बार अगस्त-सितम्बर के महीने में ड्रोन से गन्ने के फसल में दवाओं का छिड़काव कराया। गन्ने के फसल में वह पिपरमिंट की सहफसली खेती कराते हैं। साथ ही कुछ किसान मधुमक्खी पालन के काम से भी जुड़े हैं। इस साल बी-कीपिंग के भी काम में फायदा हुआ है। एक किसान यूनिमार्ट भी है। उसमें इस साल 45 लाख का बिजनेस हुआ है।

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