कठपुतली कला जिंदा रखने को शादी तक नहीं...कुछ ऐसी है अहमदाबाद के रमेश रावल की संघर्षों से भरी कहानी

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Dec 27, 2023, 11:26 PM IST

अहमदाबाद के रहने वाले 70 वर्षीय रमेश रावल ने कठपु​तली कला को जिंदा रखने के लिए शादी तक नहीं की। शो करने विदेशों तक गए। अपनी जमा पूंजी लगा दी। इस उम्र में भी कठपुतली कला को आगे बढ़ाने का जज्बा रखते हैं।

अहमदाबाद। अहमदाबाद के कठपुतली कलाकार रमेश रावल की कहानी फिल्मी सी है। कठपुतली कला को जीवित रखने के लिए उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। 70 साल की उम्र में भी इस कला को आगे बढ़ाने के लिए संघर्षरत हैं। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए रमेश रावल कहते हैं कि कठपुतली कला को जिंदा रखने के लिए शादी तक नहीं की। अलग-अलग तरह की कठपुतलियां बना रहा हूॅं। समय के लिहाज से लीक से हटकर काम कर रहा हूॅं।

40 साल से कठपुतली बना रहे हैं रमेश रावल

रमेश रावल कहते हैं कि 40 साल से कठपुतली बना रहा हूॅं। यह कला कठपुतली के पुराने कलाकार रानाजी रावत से सीखी। अब इसी कला के सहारे गुजारा कर रहा हूॅं। जीवन कम बचा है। फिर भी इस कला को और आगे बढ़ाना चाहता हूॅं। वह कहते हैं कि मैं शो करने जापान भी गया।  भारतीय लोक कथाओं से जुड़े शो किए। वहां पपेट्री की वैल्यू है। ईरान, चीन और रूस में भी पपेट्री थियेटर हैं। पर भारत में यह राजस्थान और गुजरात से बाहर ही नहीं निकल सकी।

अपनी जमा पूंजी से तैयार की कठपुतलियां

वह कहते हैं कि मैं कुछ वर्कशॉप भी करता हूं। बच्चों को सिखाने के लिए यूनिवर्सिटीज भी जाता हूं। एक एकेडमी में भी काम किया। विदेशों में कठपु​तलियों का शो करने जाता था तो वहां इस कला की वैल्यू देखकर लगा कि हमारे देश में भी पपेट्री के लिए थियेटर और एकेडमी होनी चाहिए। लोगों को इस बारे में जागरूक भी किया। रमेश कहते हैं कि अपनी तीन से चार लाख रुपये की जमा पूंजी से कठपु​तलियां तैयार की, ताकि कला को समृद्ध बनाया जा सके। 

आर्थिक दिक्कतों के आगे भी नहीं झुके

कठपुतली कला को आगे बढ़ाने की जर्नी में रमेश रावल ने आर्थिक दिक्क्तों का भी सामना किया। पर पपेट्री नहीं छोड़ी। वह कहते हैं कि मैंने इसी कला से शादी कर ली है। अब मेरे सपने में भी पपेट्री ही आती है। मौजूदा समय में कठपुतलियों की डिमांड नहीं दिखती है, क्योंकि अब लोग इस कला को अछूत सा समझते हैं। अभी मेले में जाता रहता हूॅं। बाहर से आए लोग जो इस कला के बारे में नहीं जानते हैं। वह खरीदते हैं। होटल, क्लब वगैरह में बिकती है।

संजो कर रखी है कला

एक समय था। जब मनोरंजन के लिए कठपुतलियों का इस्तेमाल किया जाता था। कठपु​तलियों के जरिए कहानी पेश कर लोगों को जागरूक भी किया जाता था। बदलते दौर में सोशल मीडिया ने कठपुतली कला को रिप्लेस कर दिया। अब मुश्किल से पपेट्री शो देखने को मिलते हैं। ऐसी ही लुप्त सी हो चली कला को रमेश रावल ने 40 वर्षों से संजो कर रखा है और आगे बढ़ा रहे हैं।

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