Fevicol man Balvant Parekh: बलवंत पारेख ने मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद भी वकालत या उससे जुड़ा हुआ काम नहीं किया। जिंदगी के कुछ साल बेहद गरीबी और संघर्ष में गुजरें। एक कम्पनी में चपरासी की नौकरी की। जर्मनी भी गएं और एडहेसिव बनाने वाली कम्पनी पिडिलाइट (Pidilite) की स्थापना की।
Fevicol man Balvant Parekh: बलवंत पारेख ने मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद भी वकालत या उससे जुड़ा हुआ काम नहीं किया। जिंदगी के कुछ साल बेहद गरीबी और संघर्ष में गुजरें। एक कम्पनी में चपरासी की नौकरी की। जर्मनी भी गएं और एडहेसिव बनाने वाली कम्पनी पिडिलाइट (Pidilite) की स्थापना की। पीडिलाइट का प्रॉडक्ट फेविकोल (Fevicol) देश में इतना लोकप्रिय हुआ कि अब 'ग्लू' का दूसरा नाम ही फेविकोल पड़ गया। एक अनुमान के मुताबिक, साल 2023 में कम्पनी की इनकम ₹1,282 करोड़ (US$160 million) आंकी गई है। आइए विस्तार से जानते हैं, उनकी सफलता की कहानी।
लॉ की पढ़ाई की पर वकालत नहीं
बलवंतराय कल्याणजी पारेख का जन्म गुजरात के भावनगर जिले के छोटे से कस्बे महुवा में हुआ था। बिजनेस करना चाहते थे, पर घर वालों की मर्जी थी कि वह लॉ की पढ़ाई करें तो मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज में दाखिला लिया। वह भारत छोड़ो आंदोलन का दौर था। बलवंत पारेख आंदेलन में शामिल हुए और फिर मुंबई लौटकर पढ़ाई पूरी की। पर वकालत के क्षेत्र में काम करने से इंकार कर दिया।
शादी के बाद कर्ज के बोझ से दबे
बलवंत पारेख ने वकालत नहीं की, कोई व्यापार भी नहीं था। उसी दरम्यान उनकी शादी हो गई और उसके बाद वह कर्ज के बोझ तले दबते गए। परिवार का पालन पोषण करना था तो एक लकड़ी के व्यापारी के यहां चपरासी की नौकरी कर ली। पत्नी के साथ व्यापारी के गोदाम में ही गुजर बसर करने लगें। बेसिक जरुरतें पूरी हुईं तो कुछ नया काम करने का विचार आया। उन्होंने प्रिंटिंग प्रेस में भी काम किया। उसी दरम्यान बलवंत पारेख को जर्मनी जाने का मौका मिला।
जर्मनी की कंपनी के साथ काम कर बदली किस्मत
दरअसल, बलवंतराय अपना बिजनेस करना चाहते थे। एक निवेशक की मदद से उन्होंने पश्चिमी देशों से कुछ चीजें आयात कर व्यापार शुरु किया। उस समय जर्मनी की एक कंपनी Hoechst का देश में फेडको प्रतिनिधित्व करती थी। कहा जाता है कि बलवंत पारेख ने उस कंपनी के साथ 50 फीसदी की साझेदारी कर ली थी। साल 1954 में Hoechst के आमंत्रण पर बलवंत एक महीने के लिए जर्मनी भी गए। कम्पनी के एमडी की मौत के बाद बलवंत ने अपने भाई के साथ मिलकर पिगमेंट एमल्शंस यूनिट शुरु कर दी। इंडस्ट्रियल केमिकल, डाई वगैरह का निर्माण और ट्रेडिंग शुरु कर दी। उस समय बलवंत पारेख की कम्पनी का नाम Parekh Dyechem Industries था।
1959 में लॉन्च किया फेविकोल
बीतते समय के साथ पारेख ने फेडको में ज्यादा हिस्सेदारी खरीदनी शुरु कर दी और खुद का एक ग्लू बनाया। इसका आइडिया भी उन्हें लकड़ी के कारोबारी के यहां काम करने के दौरान आया था। उन्हें पता था कि मजदूर लकड़ी जोड़ने के लिए जिस ग्लू का इस्तेमाल करते हैं। वह बदबूदार होता था। वह मजदूरों की दुश्वारियों से वाकिफ थे। उन्होंने रिसर्च के बाद एक नया ग्लू बनाया और जर्मन शब्द कोल से प्रेरित होकर ग्लू का नाम फेविकोल रखा। साल 1959 में Fevicol को बाजार में लॉन्च किया। साल 1959 में कंपनी का नाम बदला और पिडिलाइट इंडस्ट्रीज हो गया।
ग्लू का पर्याय बन गया फेविकोल
शुरुआत में कंपनी सिर्फ एक प्रोडक्ट ही बनाती थी। एक छोटी से दुकान से शुरु हुई थी। अब कंपनी के बाजार में Fevicol, फेविक्विक (FeviKwik), Dr. Fixit, एम—सील (M-seal) नाम से कई प्रोडक्ट हैं। साल 2013 में बलवंत पारेख दुनिया छोड़ गए। उनके बनाए गए प्रोडक्ट आज देश के बच्चे बच्चे की जुबान पर हैं। 'ये फेविकोल का जोड़ है, टूटेगा नहीं...' ये टैगलाइन आपने जरुर सुनी होगी।