घरों में झाड़ू पोछा किया, स्कूल कभी गई नहीं, फिर दुर्गा को कैसे मिला पद्मश्री

Published : Aug 11, 2023, 07:22 PM ISTUpdated : Aug 11, 2023, 07:25 PM IST
घरों में झाड़ू पोछा किया, स्कूल कभी गई नहीं, फिर दुर्गा को कैसे मिला पद्मश्री

सार

मध्यप्रदेश के छोटे से गांव  की दुर्गा को पद्मश्री पुरस्कार मिला तो ख़ुशी के साथ लोग हैरत में पड़ गए। दुर्गा कभी स्कूल नहीं गयी थीं। उनका जीवन इतनी गरीबी में गुज़रा की वो घरों में चौका बर्तन करती थीं। दुर्गा को ट्राइबल आर्ट आता था जिसे दुर्गा ने अपनी ताकत बनाया और भोपाल के साथ साथ अलग शहरों में इसकी प्रदर्शनी में हिस्सा लिया।  इसी आर्ट ने दुर्गा को पद्मश्री  तक पहुंचाया।   

मध्य प्रदेश. डिंडोरी के छोटे से गांव बड़वास में दुर्गा बाई व्योम को साल 2022 में पदम श्री पुरस्कार मिला। दुर्गा कभी स्कूल नहीं गई। घरों में झाड़ू पोछा करके उनका जीवन गुज़रा, फिर ऐसा क्या हुआ जो दुर्गा को पदम श्री पुरस्कार मिला ? इन सवालों के जवाब जानने से पहले जरूरी है कि हम जान ले दुर्गाबाई व्योम कौन हैं


गरीब परिवार में जन्म लिया था दुर्गा ने

48 साल की दुर्गाबाई निहायत गरीब परिवार से आती हैं। दुर्गा चार भाई बहन है।  उनके पिता चमरू की इतनी कमाई नहीं थी कि वह चार बच्चों की परवरिश ठीक से कर सकें इसलिए दुर्गा कभी स्कूल नहीं जा पाई। वो और उनकी अन्य बहने घर में चौका बर्तन करती थीं ताकि घर का खर्चा चल सके।  15 साल की उम्र में दुर्गा की शादी सुभाष व्योम से कर दी गई। सुभाष मिट्टी और लकड़ी की मूर्तियां बनाने के लिए मशहूर थे। 


दुर्गा बचपन से ट्राइबल आर्ट बनाती थी

दुर्गा को बचपन से चित्रकारी करने का शौक था। 6 साल की उम्र में दुर्गा ने ट्राइबल आर्ट बनाना शुरू कर दिया था , जिसमें गोंड समुदाय की लोक कथाएं झलकती थी। दुर्गा ने अपनी मां और दादी से दिगना कला सीखी जिसमें घर के दीवारों पर कलाकृतियां बनाई जाती हैं। यह कलाकृतियां आमतौर पर शादी और त्योहारों में बनाई जाती हैं।


दुर्गा ने ट्राईबल आर्ट के नए तरीके सीखे 

1996 में दुर्गा के पति सुभाष को भोपाल के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में लकड़ी से कलाकृति बनाने का काम मिला था। दुर्गा भी अपने पति के साथ भोपाल गई। पहली बार अपने गांव से दुर्गा बाहर निकली थी। यहां दुर्गा की मुलाकात जनगढ़ सिंह श्याम और आनंद सिंह श्याम से हुई जो गोंड  कलाकार थे। उन्होंने दुर्गा की कला को पहचाना और दुर्गा को गोंड कला के नए-नए तरीका सिखाएं। इस दौरान, वो भारत भवन से जुड़ीं.

शहर में रहने के लिए दुर्गा ने घरों में लगाया झाड़ू पोछा

दुर्गा ने भोपाल में रहने का मन बना लिया भोपाल में रहना इतना आसान नहीं था। शहर में रहने के लिए आमदनी का जरिया चाहिए था जिसके लिए दुर्गा ने घरों में झाड़ू पोछा करना शुरू किया और अपनी कला के साथ अपने तीन बच्चों की परवरिश भी करती रहीं। 1997 में दुर्गा की पेंटिंग पहली बार प्रदर्शित हुई। दुर्गा अपनी पेंटिंग को लेकर सीरियस हो चुकी थी और एग्जीबिशन में अपनी पेंटिंग बनाना शुरू कर दिया था । दुर्गा को रानी दुर्गावती राष्ट्रीय अवार्ड और विक्रम अवार्ड जैसे पुरस्कार मिले।


अपनी पेंटिंग के जरिए दुर्गा दुबई और इंग्लैंड पहुंची

दुर्गा की पेंटिंग का चर्चा हर तरफ शुरू हो चुका था। उन्होंने दिल्ली मुंबई चेन्नई के अलावा इंग्लैंड और दुबई में सांस्कृतिक कार्यक्रम में शिरकत किया  जहां लोगों को आदिवासी कला से परिचित कराया। दुर्गा ने बाबा भीमराव अंबेडकर के जीवन को पेंटिंग के जरिए दर्शाया जो 11 अलग-अलग भाषाओं में पब्लिश हो चुका है। अपनी कला के दम पर दुर्गा ने देश के सबसे बड़े पुरस्कार पद्मश्री को हासिल किया और यह साबित किया की गरीबी की जिंदगी में भी अगर आपके अंदर हुनर  है तो आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं।


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