साइकिल पर दूध बेचा, 12वीं में सिर्फ 21 नंबर... ये लड़का कैसे बना IPS अफसर

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Oct 3, 2024, 3:53 PM IST

12वीं में अंग्रेजी में केवल 21 नंबर लाकर फेल होने से लेकर आईपीएस अधिकारी बनने तक, महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव के उमेश खंडबहाले की प्रेरणादायक कहानी।

नई दिल्ली: महाराष्ट्र के नासिक जिले के एक छोटे से गांव महिरावाणी के उमेश खंडबहाले एक साधारण किसान के बेटे थे। 12वीं क्लास में अंग्रेजी में सिर्फ 21 नंबर मिले थे, ​फेल हो गए। दूध बेचने और खेती में पिता की मदद की, ऐसे संघर्षों में तपकर निकले और एक दिन आईपीएस अधिकारी बन कर इतिहास रच दिया। आइए जानते हैं उनकी सफलता की कहानी।

बोर्डिंग स्कूल में शुरूआती पढ़ाई

उमेश की शुरुआती शिक्षा एक बोर्डिंग स्कूल में हुई थी। 10वीं कक्षा तक सब ठीक रहा, लेकिन 12वीं की अंग्रेजी परीक्षा में उन्हें केवल 21 नंबर मिले, और वे फेल हो गए। यह उनके लिए बड़ा झटका था। 12वीं में असफल होने के बाद उमेश ने बोर्डिंग स्कूल छोड़ दिया और वापस अपने गांव आ गए। उन्होंने अपने पिता के साथ दूध का काम शुरू कर दिया। हर दिन वे अपने गांव से दूध इकट्ठा करते और साइकिल पर उसे नासिक के बाजार में बेचने जाते थे। इस दौरान उमेश को ताने भी सुनने पड़ते थे। 

ओपने यूनिवर्सिटी से 12वीं पास

एक दिन नासिक जाने के रास्ते में पड़ने वाले यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी के परिसर गए। अधिकारियों से पढ़ाई के बारे में बात की और फिर दाखिला ले लिया। 2005 में 12वीं पास करने के बाद पुणे यूनिवर्सिटी के केटीएचएम कॉलेज में दाखिला लिया। वहीं से बीए, बीएड और एमए की डिग्री ली। उसी दरम्यान उन्हें यूपीएससी एग्जाम के बारे में जानकारी हुई। पहले कुछ महीने कोचिंग की और फिर दिल्ली का रूख किया। 

तीसरे प्रयास में बने आईपीएस

उमेश ने साल 2012 में यूपीएससी का पहला अटेम्पट दिया, असफल रहें। दूसरे प्रयास में भी सक्सेस नहीं मिली। 2014 में तीसरे प्रयास में 704वीं रैंक हासिल हुई। पश्चिम बंगाल कैडर के आईपीएस बने। वह अपने गांव से आईपीएस बनने वाले पहले शख्स थे।

अंग्रेजी सब्जेक्ट से की पढ़ाई

रिपोर्ट्स के मुताबिक, उमेश को 2 साल बाद YCMOU के बारे में पता चला था, इसका उन्हें दुख है। यदि उन्हें पहले पता चल गया होता तो वह अपनी 12वीं की पढ़ाई पहले ही शुरू कर चुके होते। वह कहते हैं कि 12वीं का फेलियर यहां बाधा नहीं बना, बल्कि उन्हें आसानी से दाखिला मिल गया। उन्होंने ग्रेजुएशन और पोस्टग्रेजुएशन की पढ़ाई भी अंग्रेजी में पूरा करने का प्रयास किया, क्योंकि उसी सब्जेक्ट में वह फेल हुए थे।

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