लखनऊ के शरद पटेल अब तक 450 भिखारियों को आत्म निर्भर बना चुके हैं। कल तक जो भिखारी सड़क पर, मंदिर के बाहर मांग कर खाते थे वो शरद की मेहनत से अब कमा कर खाते हैं। शारद ये काम साल 2014 से कर रहे हैं। इसके लिए बाकायदा उन्होंने नगर निगम से रैन बसेरा ले रखा है साथ ही इन भिखारियों की काउंसलिंग के साथ साथ उन्हें मेडिकल ट्रीटमेन्ट भी देते हैं।
लखनऊ। आपने अक्सर सड़क पर चलते हुए भीख मांगने वाले लोग देखे होंगे। कुछ लोग उन्हें भीख देते हैं और कुछ लोग बिना दिए निकल जाते हैं और कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो उन भिखारियों को अच्छी ज़िन्दगी देने की कोशिश करते हैं। इन्हीं में एक ही शरद पटेल जो भीख मांगने वालों को सेल्फ डिपेंड बनाते हैं। उनको रोज़गार मुहैया कराते हैं। ये सिलसिला कैसे शुरू हुआ माय नेशन हिंदी से शरद ने शेयर किया।
कौन हैं शरद पटेल
शरद इस वक़्त शकुंतला मिश्रा पुनर्वास राजकीय विद्यालय से सोशल में पीएचडी कर रहे हैं। उनका टॉपिक भी भिक्षा वृत्ति की समस्या है। शरद के परिवार में तीन भाई एक बहन और उनके पिता है। उनके पिता हरदोई में खेती किसानी करते हैं वहीं शरद की माता का निधन साल 2003 में कैंसर से हो गया था। साल 2014 से शरद ने भीख मांगने वालों को आत्म निर्भर बनाने का निष्चय किया था।
कहां से आया भिक्षावृत्ति रोकने का आईडिया
शरद ने बताया की साल 2013 में वो लखनऊ यूनिवर्सिटी से सोशल वर्क में मास्टर्स कर रहे थे। यूनिवर्सिटी से लौटते समय एक 50 साल के आदमी ने 10 रूपये मांग लिया। उस इंसान की लाचारी शरद से देखी नहीं गयी। शरद उसे खाने की स्टाल पर ले गए और पेट भर कर कचौड़ी खिलाई। इस घटना ने शरद को अंदर तक कचोट दिया और शारद ये सोचने लगे की आज इसका पेट भर गया है , कल फिर भीख मांगेगा , क्यों न इनके लिए कुछ किया जाए जिससे ये मांग कर खाने के बजाय खुद कमा कर खाना शुरू करे।
इस तरह की जाती हैं काउंसलिंग
अक्टूबर 2014 में शरद ने अपने दोस्त जयदीप और महेंद्र प्रताप के साथ मिलकर भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान की शुरुआत की। और इसके लिए इन लोगों को मोब्लाइज़ कर के शरद रेन बसेरे तक लाने की कोशिश करने लगे। 2019 में नगर निगम से शरद को रेन बसेरा मिल गया जो कॉन्ट्रैक्ट बेस पर है। रैनबसेरे में लाने के बाद इन भिखारियों का बायोडाटा फॉर्म भरा जाता है और काउन्सलिंग सेशन होता है। कोई मेडिकल प्रॉब्लम हुई तो उसका ट्रीटमेंट कराया जाता है। काउंसलिंग में इन लोगों की बुरी आदतों को छुड़ाने का प्रयास किया जाता है और इनको पॉजिटिव विचार की तरफ माइल करने की कोशिश की जाती है।
स्किल मैपिंग से मुहैया होता है रोज़गार
काउंसलिंग के बाद शरद इन भिखरियों की स्किल मैपिंग करते हैं की भीख मांगने से पहले इन लोगों ने क्या क्या किया और इनके काम फ्लॉप क्यों हुए। सेमी स्किल को नर्चर कर के इन लोगों को छोटे छोटे रोज़गार मुहैया कराया जाता है। शरद ने अब तक 450 भीख मांगने वालों को आत्म निर्भर बनाया है।
पब्लिक डोनेशन से होता है काम
शरद ने बताया की उनका ये काम डोनेशन बेस्ड है जिसके लिए उन्हें लोरेटो स्कूल से हेल्प मिलती हैं। क्लास के सेक्शन डिवाइडेड हैं। बच्चे घर से लंच का सामान शरद के केंद्र पर भेजते हैं और टीचर्स रॉ मटेरियल भेजते हैं। शरद के केंद्र पर जो भी फर्नीचर, कम्प्यूटर, गद्दा तख़्त वगैरह हैं वो दिल्ली की संस्था गूंज द्वारा डोनेट की गयी है।
शरद के साथ हुआ धोखा
शरद कहते हैं उन्हें सोशल जस्टिस और एम्पावरमेंट मिनिस्ट्री में बुलाया गया था। तो वहां शरद की प्रेजेंटेशन के बाद उनका प्रोजेक्ट बदलाव पायलट प्रोजेक्ट की तरह प्रोजेट हुआ लेकिन उन्हें कोई सपोर्ट नहीं मिला। नगर निगम में स्टेट लेवल पर करप्शन हुआ और उनका प्रोजेक्ट दूसरी संस्था को दे दिया गया। जिसे लेकर शारद मायूस ज़रूर हैं लेकिन उनके हौसले बुलंद है और अपने काम को वो यूंही करते रहेंगे।
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