राजस्थान के जयपुर की हर्षित रेवड़िया ऐसी पहली सिंगर है, जो अल्ट्रा सुप्रीम ओपेरा सिंगर की कला में माहिर हो गई है। हर्षिता को डेब्यू सॉन्ग के लिए दादा साहब फाल्के फिल्म फेस्टिवल अवार्ड भी मिल चुका है।
जयपुर। राजस्थान के जयपुर की रहने वाली 12वीं फेल होने के बाद एक युवती ने अपनी संगीत की धुन में ऐसा मुकाम हासिल कर लिया कि आज राज्य ही नहीं बल्कि पूरा देश उसकी काबिलियत और उपलब्धि पर गर्व करता है।अपनी संगीत साधना के बूते यह लड़की कांच का गिलास तोड़ देती है। इस तरह के गायक गायिका को अल्ट्रा सुप्रीम ओपेरा सिंगर कहा जाता है। जो अभी तक विदेश में ही प्रचलित था। राजस्थान के जयपुर की हर्षित रेवड़िया ऐसी पहली सिंगर है, जो इस गायकी कला में माहिर हो गई है।
संगीत का ऐसा जुनून सवार था की 12वी परीक्षा साइंस बायो में हो गई थी फेल
राजस्थान की जयपुर की हर्षित रेवाड़िया ही पूरे देश में केवल एक ऐसी सिंगर हैं, जो अपनी आवाज से कांच का गिलास तोड़ देती हैं। उन्हें जानने वालों का कहना है की असल में हर्षिता रेवाड़िया का मन पढ़ाई लिखाई में काम ही लगता था। उन्हें गाने का बहुत शौक था वह हमेशा कुछ न कुछ गुनगुनाती रहती थी। वह साइंस लेकर पढ़ाई कर रही थी, लेकिन 12वीं क्लास में साइंस बायो में वह फेल हो गई। जिससे परिवार के लोग बहुत परेशान हो गए उन्हें क्या मालूम कि उनकी लाडली इस डिग्री से भी कई गुना बड़े मुकाम पर पहुंचने की धुन में लगी हुई है। उसे संगीत और सिंगिंग का इंटरेस्ट लगातार रहा।
कालेज पहुंचने पर खुद लेने लगी थी म्यूजिक की क्लास
वह कॉलेज पहुंची तो म्यूजिक की क्लास खुद लेने लगी और सेल्फ कॉन्फिडेंट बन गई। इसी दौरान उन्हें ओपेरा सिंगिंग के बारे में पता चला। बस फिर क्या था। धुन की पक्की हर्षिता ने दिन रात एक करके इसकी तैयारी शुरू कर दी। और आखिर कर एक दिन ऐसा आया कि हर्षिता ने अपना वह मुकाम हासिल कर लिया और उन्हें पेरिस अंडरग्राउंड म्यूजिक फेस्टिवल, मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल जैसे दर्जनों खिताब हासिल एक एक करके मिले।
डेब्यू सॉन्ग के लिए मिल चुका है दादा साहब फाल्के फिल्म फेस्टिवल अवार्ड
हर्षिता को डेब्यू सॉन्ग के लिए दादा साहब फाल्के फिल्म फेस्टिवल अवार्ड भी मिल चुका है। यह खिताब जीतने वाली वह राजस्थान की पहली महिला है। हर्षिता ने एक बार इंडिया गॉट टैलेंट में भी पार्टिसिपेट करते हुए अपनी आवाज से कांच का गिलास तोड़ दिया था। हर्षिता का कहना है कि असल उनका नाम ऋषिता था, परंतु उनके चाहने वाले ऋषिता नहीं बोल पाते थे, इसलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर हर्षिता रख लिया। अब इसी नाम से उनकी पहचान बन गई है। उनकी इस उपलब्धि पर आज घर परिवार और राज्य ही नहीं पूरे देश को फक्र है।
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