ये शख्स है देश का 'ब्रेक-शू' किंग, UPSC की जॉब छोड़ी-ठेकेदारी तक...अब हैं 2,555 करोड़ रुपये की कंपनी के मालिक

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Nov 4, 2023, 9:33 PM IST

यूपीएससी क्लियर करने के लिए एस्पिरेंट रात दिन पढ़ाई करते हैं। ऐसे लोगों के बीच एक शख्स ऐसा भी है, जिसने क्लास वन की नौकरी छोड़कर मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में कदम रखा और इतिहास रच दिया। हम बात कर रहे हैं एएसके ऑटोमोटिव लिमिटेड (ASK Automotive Limited) के प्रबंध निदेशक और अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठी की। 

नई दिल्ली। यूपीएससी क्लियर करने के लिए एस्पिरेंट रात दिन पढ़ाई करते हैं। ऐसे लोगों के बीच एक शख्स ऐसा भी है, जिसने क्लास वन की नौकरी छोड़कर मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में कदम रखा और इतिहास रच दिया। हम बात कर रहे हैं एएसके ऑटोमोटिव लिमिटेड (ASK Automotive Limited) के प्रबंध निदेशक और अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठी की। आइए उनके बारे में विस्तार से जानते हैं।

कौन हैं कुलद‍ीप सिंह राठी?

हरियाणा के तत्कालीन रोहतक और अब झज्जर जिले के खरड़ गांव के निवासी कुलदीप सिंह राठी ने सेंट स्टीफेंस कॉलेज से स्नातक किया। इस कॉलेज को दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) का टॉप कॉलेज माना जाता है। ग्रेजुएशन करने के बाद साल 1974 में उनका चयन केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में सीधे डिप्टी एसपी के पद पर हुआ। साल 1978 तक नौकरी की और मन नहीं लगा तो जॉब छोड़ दी। वह सीपीडब्ल्यूडी (CPWD) में वर्क्स महानिदेशालय के लिए क्लास I (बी एंड आर) के ठेकेदार भी थे। नौकरी छोड़ने के बाद ठेकेदारी भी की। उसमें भी उनका मन नहीं रमा तो ऑटो पार्ट्स (Auto Parts) की फैक्ट्री शुरु कर दी, जो एएसके ऑटोमोटिव लिमिटेड (ASK Automotive Limited) के नाम से जाना जाता है। उन्हें भारत का ब्रेक किंग भी माना जाता है। कहा जाता है कि मार्केट में दिख रहे हर दूसरे वाहन में उनकी कंपनी का ब्रेक शू लगा होता है। रियल स्टेट सेक्टर का भी अनुभव उनके पास है।

सेंट स्टीफेंस कॉलेज से 1970 में ग्रेजुएशन

किसान परिवार में जन्मे कुलदीप सिंह राठी के पिता दिल्ली में केंद्र सरकार के अधीन एक कार्यालय में काम करते थे। इसी वजह से उनकी एजूकेशन दिल्ली से ही हुई। शुरुआती दिनों से ही कुलदीप पढ़ाई में होशियार थे तो उनका दाखिला दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में हो गया। साल 1970 में इकोनॉमिक्स आनर्स से ग्रेजुएशन के बाद दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स में दाखिला लिया। वह इकोनॉमिक्स से ही एमए करना चाहते थे।

यूपीएससी एग्जाम का ऐड दिखाकर अलविदा हुए पिता

कुलदीप सिंह राठी जब पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे थे। उसी दरम्यान उनके पिता की सेहत खराब हो गई। वह रोहतक के एक हॉस्पिटल में एडमिट थे और कुलदीप अपने पिता का देखने हॉस्पिटल गए थे। उसी दरम्यान पिता ने कुलदीप को यूपीएससी का एक ऐड दिखाया। जिसमें केंद्रीय अर्धसैनिक बल में असिस्टेंट कमांडेंट की भर्ती का विज्ञापन निकला था। उन्होंने बेटे से यह एग्जाम पास करने के लिए कहा और फिर उनके पिता की मौत हो गई।

पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने को दिया एग्जाम

कुलदीप सिंह राठी ने पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए आखिरकार यूपीएससी का एग्जाम दिया। पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई छोड़ दी। पहले ही अटेम्पट में उनका सेलेक्शन हो गया और माउंट आबू में ट्रेनिंग के बाद उन्होंने तीन साल तक नौकरी की। मन की जॉब न होने के बाद इस्तीफा दे दिया। कहा जाता है कि जब उन्होंने क्लास वन की जॉब छोड़ी थी। तब उनके जेब में महज 500 रुपये थे।

4 साल में क्लास-5 से बने क्लास-1 के ठेकेदार

कुलदीप सिंह राठी, केंद्रीय अर्धसैनिक बल की नौकरी छोड़ने के बाद पीडब्लूडी में ठेकेदारी करने लगे। हालांकि इस काम का अनुभव उनके पास नहीं था। कलास 5 के ठेकेदार से काम शुरु किया और सिर्फ 4 साल में ही क्लास वन के ठेकेदार बने। इसके पीछे की कहानी भी बड़ी ही दिलचस्प है। दरअसल, जब उन्होंने क्लास वन की नौकरी छोड़ी थी। तब उनके जेब में सिर्फ 500 रुपये थे। उन्हीं 500 रुपये से उन्होंने सीपीडब्लूडी का एक हजार रुपये का काम किया। जिसमें उनकी 100 रुपये की बचत हुई। वह ठेकेदारी का जो भी काम मिलता। उसे जल्द से जल्द निपटा देते। इसकी वजह से उनके काम की चर्चा विभाग में भी थी। बस, बड़े अधिकारी भी उन्हें पसंद करने लगे थे और उन्हें अपनी महेनत का फल भी मिला। 

ब्रेक-शू बनाने का काम करने के पीछे ये है कहानी

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कुलदीप सिंह राठी का मन ठेकेदारी में भी नहीं रमता था। इसीलिए उन्हें इंडस्ट्री लगाने का विचार आया। इसी सिलसिले में वह कंसलटेंट से मिलते थे। एक बार उन्हें ब्रेक शू बनाने का सुझाव मिला, यह बात उन्हें व्यावहारिक भी लगी, क्योंकि दोपहिया चलाते वक्त ब्रेक शू जल्द घिस जाता था। यह उनका खुद का अनुभव था तो उन्हें यह काम जंच गया और उन्होंने साल 1988 में ब्रेक शू बनाने का प्लांट लगा दिया। शुरुआती दिनों में दिक्कतें आईं। करीबन एक साल की मेहनत के बाद देश की एक बड़ी टू व्हीलर कंपनी के रिसर्च विंग ने उनका सैम्पल पास किया और पहली बार उनकी कम्पनी को बड़ी मात्रा में ब्रेक शू बनाने का आर्डर मिला। एक लाख पैकेट ब्रेक शू बनाने के बाद कुलदीप ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

2555 करोड़ रुपये है कम्पनी का राजस्व

अब उनकी कम्पनी सिर्फ टू व्हीलर के ही नहीं, बल्कि कामर्शियल व्हीकल के भी ब्रेक शू बनानती है। व्हीकल्स के कलपुर्जों के अलावा इलेक्ट्रिक व्हीकल के भी पार्ट्स बनाने लगे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार 2023 के वित्तीय वर्ष में कम्पनी का राजस्व ₹2,555 करोड़ तक पहुंच गया है। कम्पनी के देश में 17 मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट के अलावा विदेशों में भी ​निर्यात का काम करती है।

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