मैं फाइटर हूं! न शिक्षा-न घर-न पैसा, पिता ने भूखे सुलाया, बहन का मर्डर, कैंसर ने घेरा...फिर भी मिसाल बनी आंचल

By Kavish Aziz  |  First Published Jul 28, 2023, 3:31 PM IST

आंचल के पास न शिक्षा थी,न घर था,न पैसा। जीने के लिए लगन थी मेहनत थी हौसला था और यही उनका हथियार था, पति की मार सही, पिता ने भूखे पेट सुलाया, बहन को जीजा ने मार डाला, नौकरी में नुकसान बर्दाश्त किया, घर पर बुलडोज़र चला और फिर हो गया कैंसर। आंचल ने हर मुश्किल से लड़ाई की और आज समाज के लिए मिसाल बन कर खड़ी हो गईं हैं. 

दिल्ली. मैं सर्वाइवर नहीं फाइटर हूँ, जब से पैदा हुई लड़ रहीं हूं ,कभी पिता से, कभी समाज से, कभी कैंसर से.... ये कहना है दिल्ली की ब्रेस्ट कैंसर सर्वाइवर आंचल शर्मा का जिन्हे 32 साल की उम्र में कैंसर का पता चला वो भी थर्ड स्टेज में लेकिन वो इस जानलेवा बीमारी से डरी नहीं बल्कि प्लान किया कि परिवार को बताए बिना कैसे इस बीमारी से लड़ा जा सकता है. माय नेशन हिंदी से आंचल ने अपने जीवन के अब तक के सफर को साझा किया। 

अंचल को भाई की शादी के जश्न में पता चला कैंसर के बारे में 

15 जनवरी 2017 उस दिन घर में भाई की शादी की चहल पहल थी, मैं दोस्तों के साथ बहुत खुश थी तभी मुझे अपने स्तन के दाहिनी तरफ कुछ दर्द हुआ और एक गांठ दिखी, हालांकि  पहले भी मटर के दाने जैसी गांठ दिखी थी लेकिन नज़र अंदाज़ कर दिया था, लेकिन ये  गांठ बड़ी हो रही थी, मैं डॉक्टर के पास गयी तो पता चला की कैंसर अपनी हद पार कर चुका है और तीसरी स्टेज में हैं। मैंने घर वालों को कुछ नहीं बताया, सुबह हॉस्पिटल जाती शाम को सज संवर कर भाई की शादी एन्जॉय करती, डॉक्टर ने सर्जरी के लिए कहा तो मैंने भाई की शादी के बाद की डेट ली ताकि घर में ख़ुशी का माहौल बरकार रहे। भाई की शादी हो गयी और दूसरे दिन मेरी सर्जरी थी, मैं अकेले गयी सर्जरी कराने, जब सर्जरी करा कर लौटी तो घर वालों को बताया, और बताते ही घर में सब रोने पीटने लगे. मेरी जंग थी सो घर वालों को समझाया की मेरा हौसला न तोड़े, लेकिन सब उदास थे।  

अपने जैसे लोगों से मिलना शुरू किया 

आंचल  कहती हैं, मैं ज़िंदगी और मौत के दोराहे पर खड़ी थी मेरे पास तीसरा कोई विकल्प नहीं था, तो सोचा सर्वाइवर से बेहतर हैं फाइटर बनना,मैं कैंसर पीड़ित बच्चों से मिलने लगी, उनका दर्द साझा करने लगी। फिर मैंने मील्स ऑफ़ हैप्पीनेस नाम से संस्था खोली जिसमे कैंसर पीड़ितों  की काउंसलिंग किया, गरीबों को खाना बाटना शुरू किया, कैंसर पीड़ित मासूम बच्चो को देखते ही लगता था मैं तन्हा अपनी जंग नहीं लड़ रही, कीमो थेरेपी का दर्द होता था लेकिन जंग में दर्द तो लाज़िम है तो हंसती रही और आखिर 2018  में मैंने कैंसर को हरा दिया। मैं जीत गई।

पिता शराब पीकर मां को मारते थे, अक्सर भूखे पेट सोना पड़ता था    

दिल्ली के जमरूदपुर में एक कमरे में  हम 6 लोग रहते थे।  पिता एक ऑटो ड्राइवर थे और शराबी थे, मां  एक्सपोर्ट हाउस में धागा काटने का काम करती थी। पिता का मूड ख़राब होता तो वो घर में खाना नहीं बनने देते थे, हम अक्सर भूखे पेट सोते थे, अक्सर रोटी पानी और लाल मिर्च खाया, हमारे खाने में पिता थूक देते थे। मैंने और मेरे भाई ने फैसला किया की हम पढाई छोड़ कर काम करेंगे।  आठवीं के बाद मेरी पढाई छूट गयी, जल्द ही मुझे 4000 रूपये की टेलिकॉलर की नौकरी मिल गई और भाई को मेकेनिक की नौकरी मिल गई। 

बहन की लव मैरिज के बाद हत्या 

आंचल को पता चला की उनकी बहन किसी से प्रेम करती है और शादी करना चाहती है, उनका पूरा परिवार इस शादी के खिलाफ था क्योंकि इंटरकास्ट मैरिज थी, और उनके परिवार में ऐसी शादियां नहीं होती थी, आंचल ने अपनी बहन का साथ दिया और 2006 में बहन की  शादी करा दी, 6  महीने बाद बहन की डेड बॉडी एक नाले के पास मिली, बहन के पति ने उसका मर्डर कर दिया, घर वाले पहले ही उसे छोड़ चुके थे इसलिए उन्हें फर्क नहीं पड़ा लेकिन मैंने सोच लिया था की उसे सजा दिला कर रहूंगी। 7 साल कोर्ट के चक्कर काटने के बाद आखिर साल 2013 में उसके पति को उम्रकैद हुई।  

पति ने इतना मारा कि बेहोश हो गयी 

बहन की मौत के बाद परिवार के लोगों ने आंचल की शादी एक दिव्यांग व्यक्ति से करा दी,आंचल कहती वो शारीरिक तौर पर दिव्यांग था लेकिन मानसिक तौर पर बीमार था , वो नहीं चाहता था कि मैं अपने घर वालों की मदद करूं, मेरा पति पैसों के लिए मुझे मारने पीटने लगा। एक दिन इतना मारा की मेरे मुंह से खून निकल आया और मैं बेहोश हो गयी, मैंने सोच लिया था की मैं मार नहीं खाउंगी, मैंने तलाक के पेपर फ़ाइल किये तो घर वाले समझाने लगे की तलाक मत लो समाज क्या कहेगा, कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा। 7 महीने में मेरा तलाक हो गया।  

11 साल की उम्र में चाचा ने मोलेस्ट किया 

आंचल के माता पिता दोनों काम करने के लिए घर से चले जाते थे जिसका फायदा उनके चाचा ने उठाया, वो अक्सर गलत तरीके से छूते थे, जब घर वालों को ये बता बताई तो सबने चुप करा दिया ये कहकर की बाहर किसी को मत बताना, अब दोबारा ऐसा नहीं होगा। 

तलाक के बाद मिला रियल एस्टेट में काम 

तलाक के बाद आंचल को रियल एस्टेट में मार्केटिंग एग्ज़ेक्युटिव की नौकरी मिल गयी, इस काम को करते करते ठीक थक अंग्रेजी सीख लिया और फर्राटे के साथ बोलने लगी थी। साइट विज़िट के लिए मैं गर्मी ज्यादा बरसात ट्रैवल करके गुड़गाव तक जाती थी , ढाई लाख का कमीशन इकठ्ठा हो चूका था लेकिन ऐन वक़्त पर कम्पनी ने देने से इंकार कर दिया। आंचल रोई धोई लेकिन हार नहीं मानी और दूसरी जगह काम तलाशना शुरू कर दिया जहां उन्हें  सालाना 8  लाख के पैकेज पर रख लिया गया। 

शिफ्ट होने से पहले नए घर पर चला बुलडोज़र 

आंचल कहती है पैसा जमा कर के मैंने छतरपुर में एक घर बनवाया, पूरा घर तैयार हो गया था, अब हम शिफ्ट होने वाले थे लेकिन अवैध कालोनी होने के कारण मेरा घर ध्वस्त कर दिया गया। ये मेरे लिए बहुत बड़ा झटका था क्यूंकि एक एक पाई जोड़  मैंने ये घर बनाया था ताकि मेरे मां बाप सुकून से रह सकें, इसे भी मैंने ज़िंदगी का एक इम्तेहान ही समझा और नौकरी करती रही। ज़िंदगी पटरी पर आ चुकी थी लेकिन तभी मुझे कैंसर डायग्नोस हुआ और एक बार फिर मैं टूट गयी लेकिन ये जंग भी मैंने हंस कर लड़ी और कैंसर को भी मात दे दिया। 

आज आंचल सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं 

आंचल ने ज़िंदगी में एक के बाद एक ठोकर खाई लेकिन हार नहीं मानी कोविड के दौरान आंचल ने ढाई लाख लोगों को खाना खिलाया, उन्होने अपनी संस्था मील्स ऑफ़ हैप्पीनेस को एनजीओ में तब्दील क्र दिया जहाँ कैंसर पेशेंट्स के लिए काम किया जाता है। आंचल  के संघर्ष पर एक फिल्म भी बनी है ' द गर्ल इन रेड लिपस्टिक' आज आंचल मोटिवेशनल स्पीकर हैं सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं और अपने एनजीओ के ज़रिये हज़ारो लोगों के जीवन में खुशियां बिखेर रही हैं।  

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